क्या राजस्थान में पिछले 25 वर्षों से अशोक गहलोत (कांग्रेस) और वसुंधरा राजे (भाजपा) का जो युग चल रहा था, वो हो गया समाप्त

Rajsthan CM: राजस्थान में भाजपा की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को कितना दखल रहा है, इसका अंदाजा 12 दिसंबर को भाजपा विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री के लिए भजन लाल शर्मा का नाम प्रस्तावित करने से लगाया जा सकता है।
क्या राजस्थान में पिछले 25 वर्षों से अशोक गहलोत (कांग्रेस) और वसुंधरा राजे (भाजपा) को जो युग चल रहा था, वो हो गया समाप्त
क्या राजस्थान में पिछले 25 वर्षों से अशोक गहलोत (कांग्रेस) और वसुंधरा राजे (भाजपा) को जो युग चल रहा था, वो हो गया समाप्तimage credit: sinceindependence

Rajsthan CM: राजस्थान में भाजपा की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को कितना दखल रहा है, इसका अंदाजा 12 दिसंबर को भाजपा विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री के लिए भजन लाल शर्मा का नाम प्रस्तावित करने से लगाया जा सकता है।

राजे से भजनलाल का नाम इसलिए प्रस्तावित करवाया गया ताकि भाजपा में कोई विवाद नजर नहीं आए। लेकिन ये सवाल उठता है कि भजनलाल का नाम का प्रस्ताव रखने के बाद क्या प्रदेश में भाजपा की राजनीति में राजे की भूमिका समाप्त हो गई है।

इस सवाल का जवाब तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। लेकिन यह सही है कि राजस्थान में पिछले 25 वर्षों से अशोक गहलोत (कांग्रेस) और वसुंधरा राजे (भाजपा) को जो युग चल रहा था, वह समाप्त हो गया है।

भाजपा में वसुंधरा राजे हो गई बहुत कमजोर

लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में कांग्रेस में गहलोत का भविष्य नजर नहीं आता। इसी प्रकार भाजपा में वसुंधरा राजे बहुत कमजोर रह गई है।

मैं ही मुख्यमंत्री बने इसके लिए राजे ने पूरी ताकत लगा दी, लेकिन फिर भी सफलता नहीं मिली पाई। असल में पिछले दस वर्षों में (मोदी के पीएम बनने के बाद) राजे ने जो नकारात्मक भूमिका निभाई उसी वजह से राजे तीसरी बार मुख्यमंत्री नहीं बन सकी।

वर्ष 2013 से 2018 के बीच जब राजे सीएम थीं, तब राजस्थान की राजनीति में बदलाव के प्रयास किए गए, लेकिन उस समय भी राजे ने राष्ट्रीय नेतृत्व के दिशा निर्देशों की अवहेलना की।

2018 में चुनाव हारने के बाद भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व चाहता था कि राजे राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो इसलिए उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया, लेकिन राजे ने राजस्थान नहीं छोड़ा और शक्ति प्रदर्शन करती रही।

राजे सीएम बनने का सपना देखती रही

मई 2019 में जब लोकसभा के चुनाव राजे के सहयोग के बगैर भाजपा ने प्रदेश की सभी 25 सीटें जीती। लेकिन राजे ने तब भी राष्ट्रीय नेतृत्व का इशारा समझ नहीं पाई।

फिर इसके बाद सतीश पूनिया के अध्यक्ष रहते हुए वसुंधरा राजे ने भाजपा को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां तक कि अपने समर्थक बीस विधायकों से प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया के खिलाफ पत्र भी लिखवा दिया।

कांग्रेस के मुकाबले भाजपा जब जब मजबूत नजर आती तब तब वसुंधरा ने भाजपा में फूट होने के कार्य किए। कभी जन्मदिन तो कभी देव दर्शन यात्रा के नाम पर शक्ति प्रदर्शन किया।

यह दिखाने का प्रयास किया गया कि राजस्थान में भाजपा और वसुंधरा राजे अलग अलग है। अगस्त 2020 में जब कांग्रेस ने राजनीतिक संकट उत्पन्न हुआ, तब भी राजे ने भाजपा विधायकों के बीच नकारात्मक रवैया अपनाया।

राजे चाहती थीं कि वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जाए, लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व ने ऐसा नहीं किया, लेकिन फिर भी राजे सीएम बनने का सपना देखती रही।

मोदी-शाह का सही आकलन नहीं, टुट गया सपना

हांलाकी राजे राजनीति की माहिर खिलाड़ी मानी जाती है, लेकिन वसुंधरा राजे नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रणनीति का आकलन नहीं कर सकी।

3 दिसंबर को नतीजे आने के बाद राजे ने कुछ विधायकों की जिस तरह अपने घर पर परेड करवाई उस से साफ लगा कि राजे मुख्यमंत्री बनने के लिए दबाव बना रही है।

राजे ने पिछले दस वर्षों में जो नकारात्मक राजनीति की उसी का परिणाम है कि आज उनके हाथ से राजनीति निकल गई है

राजे ने राजनीति में बहुत कुछ हासिल किया है। 6 बार विधायक और दो बार सांसद रह चुकी हैं।

2003 में राजे को जब सीएम बनाया गया था तब कई वरिष्ठ नेताओं को पीछे धकेला गया। राजे को तब के हालातों का ध्यान रखना चाहिए और अब नए और युवा चेहरों को आगे आना देना चाहिए।

जहां तक लोकसभा चुनाव का सवाल है तो राजे को कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। नरेंद्र मोदी और अमित शाह जो रणनीति बनाएंगे उसमें लगातार तीसरी बार राजस्थान की सभी 25 सीटें भाजपा को मिलेंगी।

अपनी भूमिका खुद तय करने के बजाए वसुंधरा राजे को अब मोदी और शाह  पर अपनी भूमिका का निर्णय छोड़ देना चाहिए।

Dinner party वाली विधायक बन पाऐंगे मंत्री

इसमें कोई दो राय नहीं कि वसुंधरा राजे एक लोकप्रिय नेता हैं और उनकी सनातन धर्म में गहरी आस्था है। यदि राजे सकारात्मक रुख अपनाती है तो वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री पद के बगैर भी राजस्थान में सम्मान हासिल कर सकती हैं ।

हांलाकी 12 दिसंबर को भाजपा विधायक दल की बैठक में भजनलाल शर्मा का नाम प्रस्तावित करने से पहले वसुंधरा राजे और केंद्रीय पर्यवेक्षक राजनाथ सिंह के बीच क्या समझौता हुआ यह तो वे ही जाने, लेकिन सवाल उठता है कि 10 दिसंबर को जिन भाजपा विधायकों ने राजे के जयपुर स्थित सरकारी आवास पर उपस्थिति दर्ज करवाई क्या उन्हें अब मंत्री बनाया जाएगा।

जिनमें बहादुर सिंह कोली, जगत सिंह, संजीव बेनीवाल, अजय सिंह किलक, अंशुमान सिंह भाटी, बाबू सिंह राठौड़, कालीचरण सराफ, अर्जुनलाल गर्ग, केके विश्नोई, प्रताप सिंह सिंघवी, श्रीचंद कृपलानी, पुष्पेंद्र सिंह राणावत और कैलाश वर्मा आदि शामिल थे।

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