क्या कांग्रेस भी करती है हिंदू विरोधी विचारधारा का समर्थन? जानिए DMK की हिंदू विरोधी राजनीति का इतिहास

हाल ही में तमिलनाडु के मंत्री और डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के बयान पर राजनैतिक विवाद छिड़ गया है, जिसमें उन्होंने सनातन धर्म की तुलना मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों से की थी। पढ़िए पूरी कहानी
क्या कांग्रेस भी करती है हिंदू विरोधी विचारधारा का समर्थन? जानिए DMK की हिंदू विरोधी राजनीति का इतिहास
क्या कांग्रेस भी करती है हिंदू विरोधी विचारधारा का समर्थन? जानिए DMK की हिंदू विरोधी राजनीति का इतिहास

हाल ही में तमिलनाडु के मंत्री और डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के एक बयान पर राजनैतिक विवाद छिड़ गया है, जिसमें उन्होंने सनातन धर्म की तुलना मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों से की थी।

आपको बता दें कि वह तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे हैं। उदयनिधि ने पहले घोषणा की थी कि वह एक गौरवान्वित ईसाई हैं और हाल के दिनों में उन्होंने कहा है कि वह नास्तिक हैं।

वह उस पार्टी से आते हैं जिसकी स्थापना सबसे पहले 20वीं सदी में रामास्वामी पेरियार ने जाति और हिंदु धर्म का विरोध करने के लिए की थी।

क्या कांग्रेस भी हिंदू विरोधी विचारधारा का समर्थन करती है ?

उदयनिधि स्टालिन उस पार्टी से आते हैं जिसकी स्थापना सबसे पहले 20वीं सदी में रामास्वामी पेरियार ने जाति और हिंदु धर्म का विरोध करने के लिए की थी।

यहां तक की भारत के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू हिंदू-विरोधी विचारों के लिए पेरियार के सख्त खिलाफ थे और उन्होंने पेरियार को 'पागल' तक करार दिया था।

नेहरु ने एक पत्र में यह बात कही “मुझे लगता है कि रामास्वामी पेरियार फिर से वही बात कह रहे हैं और लोगों से एक धर्म पर छुरा घोंपना और हत्या करना शुरू करने का आह्वान कर रहे हैं। वह जो कहते हैं वह केवल एक अपराधी या पागल ही कह सकता है,'' उन्होंने बताया।

लेकिन आज वही कांग्रेस इस पागलपन का समर्थन कर रही है l

कांग्रेस पार्टी आज तमिलनाडु में उसी सानतन विरोधी DMK के साथ गठबंधन में है, जो तुष्टिकरण की राजनीति करती है और वोट्स के लिए सनातन धर्म की पवित्रता पर लांछन लगाती है। हालांकि ऐसे बयान सनातन का कुछ भी बांका नहीं कर सकते

लेकिन आज DMK का कांग्रेस के साथ गठबंधन एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है कि "क्या कांग्रेस भी हिंदू विरोधी विचारधारा का समर्थन करती है ?"

क्या कांग्रेस भी करती है हिंदू विरोधी विचारधारा का समर्थन? जानिए DMK की हिंदू विरोधी राजनीति का इतिहास
INDIA Vs BHARAT: बॉलीवुड से लेकर BJP और विपक्ष में क्यों मचा "इंडिया" "भारत" को लेकर घमासान

DMK, पेरियार और संनातन विरोध की कहानी आखिर कैसे हुई शुरू?

पेरियार कौन हैं और जब भी हिंदू या सनातन विरोध शब्द सामने आते हैं तो उनका नाम पहले क्यों लिया जाता है?

पेरियार हिंदूवाद-विरोध, ब्राह्मणवाद-विरोध के प्रबल समर्थक और ब्रिटिश समर्थक थे।

पेरियार के मन में ब्राह्मणों के प्रति नापसंदगी इतनी गहरी थी कि वह ब्राह्मणों के प्रति घृणा और क्रोध से लगभग अंधे हो गए थे।

कथित तौर पर वह अपने अनुयायियों से कहा करते थे कि अगर कभी भी उन्हें सड़क पर किसी ब्राह्मण और सांप का सामना करना पड़े, तो उन्हें सबसे पहले ब्राह्मण को मार देना चाहिए।

उन्होंने अपने जीवनकाल में रामायण के बारे में बहुत गलत अफवाहें फैलाईं। उनके सभी झूठ भगवान की निंदा करने के लिए निर्देशित थे जिन्हें हिंदू मर्यादा पुरुषोत्तम मानते हैं।

उनका झूठ श्री राम पर जातिवादी होने का आरोप लगाने से लेकर यह दावा करने तक था कि उन्होंने महिलाओं की हत्या की और उनके अंग-भंग किये।

पेरियार ने न केवल यह दावा नहीं किया कि रावण के खिलाफ युद्ध में कोई भी 'उत्तर भारतीय ब्राह्मण' नहीं मरा, बल्कि यह भी प्रचारित किया कि भगवान राम ने अपने यौन सुख के लिए सीता के अलावा अन्य महिलाओं से भी विवाह किया था।

उन्होंने यह भी दावा किया था कि लंका का राजा रावण वास्तव में दक्षिण भारत का द्रविड़ राजा था।

पेरियार ने भगवान राम की तस्वीरें भी जला दी थीं, जो सबसे प्रतिष्ठित हिंदू देवताओं में से एक हैं। इतना ही नहीं, पेरियार तमिलनाडु के सेलम में "राम", "सीता" और "हनुमान" के बड़े कटआउट और चप्पलों की माला पहनाकर एक जुलूस आयोजित करने के लिए कुख्यात हैं।

भगवान राम से नफरत के अलावा, पेरियार ने भगवान गणेश की मूर्तियाँ भी तोड़ीं। दरअसल, उनके सभी कार्य हिंदुओं और ब्राह्मणों के प्रति उनके मन में मौजूद आभासी नफरत को दर्शाते थे।

अब तक DMK में साफ़ झलकती है हिन्दुओं के लिए नफरत

1926 में, पेरियार ने आत्म-सम्मान आंदोलन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य जाति, धर्म और भगवान से रहित एक तर्कसंगत समाज बनाना था।

आंदोलन के उद्देश्यों में ब्राह्मणवादी सत्ता का उन्मूलन शामिल था, सनातन को खत्म करना उनका मुख्या काम था

1939 में, पेरियार जस्टिस पार्टी के प्रमुख बने, जिसका नाम उन्होंने 1944 में द्रविड़ कड़गम रखा। आज़ादी के बाद पेरियार ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया तब उसी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए सीएन अन्नादुराई ने पार्टी को विभाजित कर दिया, जिससे 1949 में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) का गठन हुआ।

उदयनिधि द्रमुक जो की सनातन के खात्मे पर ऐसा बेहूदा बयां देते है वो इन की तीसरी पीढ़ी के नेता हैं। उनके दादा, एम करुणानिधि, तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री थे।

उदयनिधि के पिता एमके स्टालिन राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री और डीएमके के प्रमुख हैं।

भारत जिसमें 80 प्रतिशत लोग हिन्दू है वहां आज भी लोगों की हिंदुत्व के बारे ऐसे टिपण्णी करने की इतनी हिम्मत कैसे हो जाती है। ये प्रश्न हर उस व्यक्ति के लिए जो ऐसे धर्म विरोधी , तुष्टिकरण और लोगों में बटवारे की भावना पैदा करने वाले राजनेताओं को वोट देते हैं।

सनातन हो चाहे इस्लाम किसी भी धर्म को जड़ से खत्म करने की बात करना बेवकूफी है लेकिन उससे बड़ी बेवकूफी है ऐसी विचारधारा पर वोट माँगनेवालों को वोट देना।

क्या कांग्रेस भी करती है हिंदू विरोधी विचारधारा का समर्थन? जानिए DMK की हिंदू विरोधी राजनीति का इतिहास
Chandrayaan-3 Landing: ISRO ने रचा इतिहास, भारत का हुआ चाँद; पीएम मोदी ने दी देशवासियों को बधाई
logo
Since independence
hindi.sinceindependence.com