डेस्क न्यूज़: रवांडा में दुनिया के सबसे बड़े नरसंहार के लिए फ्रांस ने 27 साल बाद माफी मांगी है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने रवांडा की राजधानी किगाली में भाषण देते हुए स्वीकार किया कि इस देश में 1994 के नरसंहार में फ्रांस की भारी जिम्मेदारी थी। फ्रांसीसी नेता ने कहा कि नरसंहार में फ्रांस 'कोई भागीदार नहीं' था, लेकिन उन्होंने रवांडा के 'नरसंहार शासन' का समर्थन किया और इसलिए उस पर भी भारी जिम्मेदारी है। फ्रांस की इस विफलता के कारण दोनों देशों के बीच 27 साल तक दूरियां बनी रहीं। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों फिलहाल रवांडा के दौरे पर हैं। उन्होंने यह बात राजधानी किगाली में उसी स्मारक पर कही, जहां सामूहिक हत्या में मारे गए 250,000 लोगों को दफनाया गया था।
1994 में, रवांडा में हुतु जाति प्रभाव वाली सरकार ने तुत्सी आबादी का कत्लेआम कर दिया था। इस दौरान इस रक्तपात का विरोध कर रहे हुतु लोगों को भी मार दिया गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 100 दिनों तक चले इस कत्लेआम में करीब 8 लाख लोग मारे गए थे। किगाली नरसंहार को मानवता के खिलाफ सबसे गंभीर अपराध माना जाता है। सबसे दुखद बात यह रही कि इस घटना को अंजाम देने वाले कोई बाहरी नहीं बल्कि अपने ही देश के लोग थे। नरसंहार का अंत तब हुआ जब वर्तमान राष्ट्रपति पॉल कागामे के नेतृत्व में रवांडा पैट्रियटिक फ्रंट (RPF) ने देश पर नियंत्रण कर लिया। यह आरोप लगाया गया था कि फ्रांसीसी अधिकारियों और सेना ने पिछली सरकार के लोगों को प्रशिक्षण, हथियार और सुरक्षा प्रदान की थी। नरसंहार की स्थिति में भी उसी सरकार का समर्थन किया।
कुछ महीने पहले रवांडा नरसंहार पर फ्रांसीसी जांच पैनल की एक रिपोर्ट ने तत्कालीन फ्रांसीसी सेना की भूमिका पर सवाल उठाया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक औपनिवेशिक रवैये ने फ्रांसीसी अधिकारियों को अंधा कर दिया और सरकार ने लोगों की हत्याओं को रोकने का प्रयास न करके एक गंभीर और जघन्य अपराध किया। तभी से फ्रांस पर इस नरसंहार के लिए माफी मांगने का दबाव बढ़ता जा रहा था। हालांकि आज नरसंहार के 27 साल बाद फ्रांस ने अपनी भूमिका के लिए माफी मांगी है। और मैक्रों के भाषण की दुनियाभर में चर्चा और तारीफ हो रही है।