भारत को जितना बाहरी आंतकियों ने नहीं तोड़ा उससे ज्यादा उसे देश में बनी कुप्रथाओं ने तोड़ा हैं। देश को आज़ाद हुए कई दशक बीत गए लेकिन हम अब भी केवल खुद को आगे बढ़ाने की होड़ में लगे हैं, ना की समाज को। क्या आपको पता है जिस खुले आसमान के नीचे हम आज़ादी से सांस ले रहे हैं, वो उन शूरवीरों की कुर्बानी की कर्जदार हैं, जिन्होंने तमाम यातनाओं के बाद भी देश को आज़ाद करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
समाज में सदियों से कई कुप्रथाएं चली आ रही हैं। कुछ कुप्रथाएं खत्म भी हुई, लेकिन कुछ बदसतूर आज भी जारी है और वो समाज का अंग बनी हुई है। समाज में बदलाव लाने और लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए दिए गए बलिदान की कई घटनाएं इतिहास में दर्ज हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही घटना से अवगत करवाएंगे। घटना ऐसी, जिसने पूरी मानवता को झकझोर दिया। ये घटना हैं केरल कि, जहां एक क्रूर प्रथा के खात्मे के लिए एक महिला द्वारा दी गई अपने प्राणों की कुर्बानी हमेशा के लिए केरल के इतिहास में दर्ज हो गई है।
केरल के इतिहास के पन्नों में छिपी यह घटना लगभग सौ से डेढ़ सौ साल पुरानी हैं। घटना उस समय कि, जब वहां राज़ था त्रावणकोर के राजा का। उस समय जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी थीं। जात-पात का अंतर इतना की किसी पहनावे को देखकर ही उसकी जाति की पहचान की जा सकती थी। उस समय एक प्रथा बनाई गई। इस प्रथा के तहत महिलाओं को अपने स्तन ढ़कने कि इज़ाज़त नहीं थी और साथ ही महिलाओं को अपने स्तन के आकार के अनुसार मुला करम { ब्रैस्ट टैक्स } अदा करने का प्रावधान था।
आज भले ही समाज के ठेकेदार महिलाओं को ये हिदायत देते हैं कि उन्हें किस तरह अदब के साथ रहना चाहिए। परन्तु इस प्रथा के साथ उस समय रोजाना महिलाओं का चीर हरण होता था। महिलाओं और घर से बाहर निकलना दूभर हो गया था। और ये प्रथा सिर्फ दलितों के लिए नहीं, बल्कि राज परिवार की महिलाओँ के लिए भी लागू थी। फर्क सिर्फ इतना की राजपरिवार की महिलाएं भरे बाजार में अपने स्तन ढक सकती थी, लेकिन दलित समुदाय की महिलाओं को तो ये भी छूट नहीं थी।
इस वीर महिला है नाम हैं नांगेली। एड़वा जाति में जन्मी नांगेली ने सामंतवादी समाज के खिलाफ बिगुल फूंका। अन्याय बर्दाश्त करने की बजाय विद्रोह किया। औरतों को समाज में हेय दृष्टि से देखे जाने, उन्हें बेइज्जत करने, उनकी अस्मत का मजाक उड़ाने, उनके स्तन पर टैक्स लगाने के खिलाफ नांगेली ने अभूतपूर्व और साहसिक कदम उठाया। नांगेली ने पुरे कपड़े पहनने शुरू कर दिए। इस पर उसका काफी विरोध किया गया और इसकी एवज में अधिकारी उससे मुला करम वसूलने उसके घर गए। इसके बाद नांगेली ने जो किया, उसे सुनकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे। ब्रेस्ट टैक्स की मांग करने पर नांगेली ने अपने ही हाथों चाकू से अपने दोनों स्तन काटकर सामंतियों के सामने रख दिए। यह नज़ारा देखकर सामंती वहां से भाग खड़े हुए। अत्यधिक खून बहने से 3 - 4 मिनट के अंतराल में नांगेली की मौत हो गई। लेकिन उसका यह बलिदान एक आंदोलन बन गया। नांगेली के बलिदान से अन्य महिलाएं प्रभावित हुई और इस प्रथा के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की। आखिरकार सामंती व्यवस्था को हार माननी पड़ी और इस प्रथा का खात्मा करना पड़ा।
इस सवाल का कोई भी आपको सटीक नहीं दे सकता, क्योंकि इस बारे में अलग-अलग इतिहासकारों ने अलग-अलग दावे किए हैं। बी बी सी हिंदी को केरल के श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में जेंडर इकॉलॉजी और दलित स्टडीज़ की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. शीबा केएम ने बताया कि वह ऐसा दौर था, जब व्यक्ति की पहचान कर्म से नहीं उसे वस्त्र से होती थी।
एक्सपर्ट का क्या कहना है
" ब्रेस्ट टैक्स का मक़सद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था. ये एक तरह से एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी. इस कर को बार-बार अदा कर पाना इन ग़रीब समुदायों के लिए मुमकिन नहीं था."-डॉ. शीबा
अगर हम बात करें केरल के जातीय ढांचे की तो इस व्यवस्था में नायर जाति को शूद्र माना जाता था और इनसे निम्न स्तर पर एड़वा और फिर दलित आते थे।
150 साल पहले जाति व्यवस्था के सबसे छोटे दर्जे पर आने वाले दलित समुदाय के लोग थे। ज्यादातर महिलाएं खेतों में मजदूरी करके जीवन का गुजारा करती थी। जिस कारण उन्हें इसका ज्यादा कर देना होता था, लेकिन ज्यादातर महिलाएं कर देने में सक्षम नहीं थी। डॉ. शीबा के अनुसार स्तन न ढकने देने के पीछे पुरुषवादी सोच थी, जिसके अनुसार ऊँची जाति के पुरुषों को सम्मान देने के लिए स्त्री को अपने स्तन नहीं ढकने चाहिए। इसी कारण उच्च जाति की औरतों को भी मंदिर में अपने स्तन ढ़कने की इज़ाज़त नहीं थी। क्योंकि कहा जाता था कि सबसे उच्च जाति सिर्फ पुरुष जाति हैं।
जहां एक तरफ नांगेली की चिता में उसके शरीर के हिस्से राख हो रहे थे, वहीं दूसरी तरफ सारे इलाके में यह घटना आग की तरह फैल रही थी। दलित समुदाय की स्त्रियों ने नांगेली के बलिदान के बाद एक आंदोलन की नीव रखी। जिसके आगे सामंतवादी शासन को घुटने टेकने पड़े।
नांगेली के बलिदान के बारे में जिसने भी सुना उसका मान द्रवित हो उठा। देखते ही देखते हजारों निम्न जाति की महिलाओं ने एकजुट होकर स्तन कर का विरोध शुरू किया। जल्द ही इस विरोध ने बड़े आंदोलन के रूप ले लिया। जगह जगह पर इसका विरोध होने लगा। सभी महिलाओं ने हर समय अपना स्तन ढंकना शुरू कर दिया। इससे वहां का राजा डर गया। उसको लगने लगा कि पूरा दलित समुदाय कहीं न बगावत कर दे।
आखिरकार त्रावणकोर के राजा को स्त्रियों के इस आंदोलन के आगे मजबूर होकर इस नियम को वापस लेना पड़ा। बाद में 26 जुलाई 1859 को कानून में बदलाव हुआ। जिसके बाद स्त्रियों को इस कुप्रथा से मुक्ति मिली। केरल जैसे प्रदेश में स्त्रियों को अपने स्तन ढ़कने के अधिकार को पाने के लिए 50 सालों तक कड़ा संघर्ष करना पड़ा और नांगेली जैसी बहादुर स्त्री ने अपनी जान देकर लाखों महिलाओं में संघर्ष की अलख जगाई।
नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) ने अपनी कक्षा 9 इतिहास की पाठ्यपुस्तक में से तीन अध्यायों को हटा दिया है, जिसमें एक ऐसा भी है जो त्रावणकोर की कथित ‘निचली जाति’ की महिलाओं के माध्यम से जातिगत संघर्ष को दिखाता है। इससे पहले CBSE की सामाजिक विज्ञान की किताब से ये कहानी मद्रास हाई कोर्ट के आदेश के बाद हटा दी गई थी। हाई कोर्ट ने इस कहानी को किताब से हटाने का आदेश देते हुए कहा कि, “2017 की परीक्षाओं में चैप्टर ‘कास्ट, कन्फ्लिक्ट ऐंड ड्रेस चेंज’ से कुछ भी नहीं पूछा जाएगा।” इसके दो साल बाद ही NCERT ने भी 9वीं की किताबों से इस घटना से जुड़ा चैप्टर हटा दिया। आज नांगेली के बलिदान की कहानी किताबों में नहीं पढ़ाई जाती लेकिन उस बदलाव ने लड़कियों को लड़ना जरुर सिखा दिया था। आज भी जब किसी बुराई के खिलाफ आवाज उठाई जाती है तो नांगेली का जिक्र केरल के गली कूंचों में अक्सर होता रहता है।
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