आबूरोड तहसील में ग्राम भैंसा सिंह के निकट सिंचाई उद्देश्य के लिए 216 एमसीएफटी जल संग्रहण क्षमता के साथ एक बांध के निर्माण हेतु जनजाति क्षेत्रीय विकास के अंतर्गत 0.50 करोड़ की प्रशासनिक स्वीकृति 1978 में जारी की गई परियोजना 350 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता की उद्देश्य के पेयजल के प्रावधान के साथ क्रियान्वित की गई थी। लेकिन धरातल पर क्या हुआ ये आकड़े बता रहे हैं।
18.18 करोड रुपए एक्स्ट्रा खर्च होने के बावजूद भी सिचाई और पेयजल को एक बूंद पानी नहीं
रिपोर्ट के अनुसार आबूरोड में 1978 से 1980 तक में ₹50 लाख में भैंसा सिंह लघु सिंचाई परियोजना तैयार होनी थी। इससे 2095 एकड़ क्षेत्र में करीब 350 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता विकसित होनी थी
गलत सर्व लगातार देरी और रीको की जमीन अधिग्रहित करने में लापरवाही के नतीजतन आज तक प्रोजेक्ट में 18.18 करोड रुपए खर्च होने के बावजूद आज तक यानी कि 42 साल में भी एक बूंद पानी न सिचाई को मिला ओर ना ही पेयजल को... कुल मिलाकर परियोजना के बनने का 3 साल कम कर दे तो यह 39 साल देरी से चल रही है और इसी का नतीजा है 3536% खर्चा बढ़ गया है और ऐसे ही हालात राज्य की अन्य 11 परियोजनाओं के हुए हैं जिसमें 3 साल से 17 साल तक की देरी हुई है बार-बार सर्वे में करोड़ों रुपए व्यर्थ चले गए हैं।