चार राज्यों की जीत का साइड इफेक्ट,राजस्थान की दोनों पार्टियों में सिरमौर को लेकर बेचैनी

सभी राज्यों में पीएम मोदी के चेहरे और राष्ट्रवाद की लहर ने इस बार सीएम से ज्यादा काम किया। यूपी को छोड़कर यूपी में पीएम मोदी के साथ सीएम योगी भी चर्चित चेहरा थे। उत्तराखंड में तीन बार सीएम बदलने के बावजूद बीजेपी ने बंपर जीत दर्ज की, जिसे पीएम मोदी की लोकप्रियता का चमत्कार माना जा रहा है।
चार राज्यों की जीत का साइड इफेक्ट,राजस्थान की दोनों पार्टियों में सिरमौर को लेकर बेचैनी
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उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा मणिपुर के चुनावी नतीजो में किसी को खुशी तो किसी के हिस्से में गम। एक तरफ जहां पांच राज्यो में कांग्रेस पार्टी का सफाया होता नजर आया तो वहीं, चार राज्यों में भाजपा का रास्ता साफ बिल्कुल ही साफ हो गया है। वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत ने राजनीति में अरविंद केजरीवाल के कद को और मजबूत कर दिया है। लेकिन आज राजनीति पार्टीयों के लिए अगला निशाना राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में अपनी सरकार को बनाने का है। इनमें बीजेपी और कांग्रेस दोनों को बड़ी चुनौती राजस्थान में देखने को मिलेगी है। अगर बीजेपी की ही बात करें तो राजस्थान में उसके लिए चुनौती यह है कि 2023 का चुनाव सीएम फेस के साथ लड़ा जाए या उसके बिना। सीएम फेस होगा तो कौन होगा?

सीएम चेहरे के कई नेताओं का नाम सामने

राजस्थान बीजेपी में सीएम चेहरे के कई नेताओं का नाम सामने आ रहे हैं। लेकिन असली चुनौती वसुंधराराजे को सीएम फेस बनाना है या नहीं। चार राज्यों में बीजेपी की जीत का सीधा असर राजे के सीएम चेहरा बनने की कोशिशों पर नजर आ सकता है। उधर, इस जीत की खुशी राजस्थान में बीजेपी संगठन के नेताओं के लिए कम नहीं है। सतीश पूनिया के नेतृत्व में राजस्थान भाजपा के नेताओं ने बुलडोजर को लेकर जयपुर में विजय जुलूस निकाला।

राजे का शक्ति प्रदर्शन

चार राज्यों में जीत के बाद आखिरकार राजस्थान में पार्टी के एक खेमे में इतना उत्साह, दूसरे खेमे में बेचैनी का कारण समझने के लिए 8 मार्च के घटनाक्रम को समझना होगा। वसुंधराजे ने जिस तरह से अपने जन्मदिन पर दम दिखाया उसने भाजपा नेतृत्व के लिए चिंता को बढ़ा दिया है। राजे के शक्ति प्रदर्शन में न केवल हजारों लोग पहुंचे, बल्कि पार्टी के 58 विधायकों ने भी उस जुलूस में भाग लिया।

बीजेपी के पास है ये विकल्प

बीजेपी का सीधा गणित है कि अगर चुनाव में राष्ट्रवाद की लहर चल रही है तो सीएम चेहरे की कोई खास जरूरत नहीं है। बिना चेहरे के भी पार्टी चुनाव जीत सकती है। ऐसे में राजस्थान में सामूहिक नेतृत्व की अब तक की रणनीति को आगे बढ़ाया जा सकता है। यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में बीजेपी पहले से ही सत्ता में थी, इसलिए मुख्यमंत्रियों के चेहरे चुनाव में थे। लेकिन सभी राज्यों में पीएम मोदी के चेहरे और राष्ट्रवाद की लहर ने इस बार सीएम से ज्यादा काम किया। यूपी को छोड़कर यूपी में पीएम मोदी के साथ सीएम योगी भी चर्चित चेहरा थे। उत्तराखंड में तीन बार सीएम बदलने के बावजूद बीजेपी ने बंपर जीत दर्ज की, जिसे पीएम मोदी की लोकप्रियता का चमत्कार माना जा रहा है।

नतीजे राजस्थान में कांग्रेस की टेंशन को बढ़ाने वाले

एक बात साफ हो चुकी है कि कांग्रेस के लिए आने वाले चुनाव में स्थिति ज्यादा खास नहीं होने वाली है लेकिन राजस्थान के संदर्भ में ये चुनौती और बढ़ जाती है। इसका सीधा कारण राजस्थान में कांग्रेस में कलह है। सीएम चेहरे को लेकर जिस तरह से मानेसर के होटल में सरकार पहुंची और उसके बाद जिस तरह से तकरार साफ तौर पर देखने को मिली उसको देख कर साफ है कि अगर राजस्थान में कांग्रेस सीएम चेहरा नहीं बनाती है तो उसके लिए चुनौती और बढ़ सकती है।

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