राजस्थान में बिजली संकट के बढ़े आसार, गहलोत बघेल में बढ़ी तकरार, बिजली घरों में बचा केवल 5 दिन का कोयला

केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद भी छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार राजस्थान को परसा कोल ब्लॉक में खनन की मंजूरी नहीं दे रही है. जिसके बाद दोनो राज्यों के सीएम आमने सामने है.
राजस्थान में बिजली सकंट

राजस्थान में बिजली सकंट

विश्व में कोयला ब्लेक गोल्ड यानि काले सोने के नाम से मशहूर है. वर्तमान में इस ब्लैक गोल्ड की वैल्यू राजस्थान में किसी भी किमती वस्तु से कई ज्यादा है. क्योंकी राजस्थान में कोयले की कमी के चलते बिजली संकट गहराता जा रहा है. छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार ने राजस्थान को अलॉट परसा कोल ब्लॉक से कोयले के खनन की मंजूरी पर रोक लगा दी है. जिस कारण से राजस्थान और छत्तीसगढ़ दोनो राज्यों के मुख्यमंत्री आमने सामने हो गए है. जबकी दूसरी और केंद्र सरकार ने नवंबर महिने में दो मंत्रालय पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन और कोयल मंत्रालय इसकी मंजूरी दे चुका है. लेकिन छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस सरकार होने के बावजूद भी बघेल सरकार ने मंजूरी को रोक लिया.

सूत्र बताते है इस मामले को लेकर के सीएम गहलोत आलाकमना सोनिया गांधी से भी शिकायत कर चुके है की बघेल सरकार कोल खनन मामले पर कॉपरेट नहीं कर रही है. प्रदेश में बिजली संकट के कारण किसानों को आगामी समय में रबी की फसल के लिए पानी देना सरकार के लिए अब चुनौती बन गई है.

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फाइल फोटो

बिजली घरों में 3 से 5 दिन का कोयला बचा है. ऐसे में नए साल पर बिजली प्रोडक्शन की भारी कमी आ सकती है. अगले 4 दिन में कोयले की पूरी सप्लाई छत्तीसगढ़ से नहीं मिलती है, तो प्रदेश में ज्यादातर बिजली घरों में पावर प्रोडक्शन का काम ठप पड़ सकता है। जिसके कारण प्रदेश का ज्यादातर हिस्सा अंधेरे में डूब सकता है। कोल इंडिया की सब्सिडरी कंपनियों से राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम का हर दिन का 11.5 रैक कोयले का कॉन्ट्रैक्ट है, लेकिन वहां से केवल 8-9 रैक ही कोयला मिल रहा हैं. जिस कारण प्रदेश में करीब 45 लाख यूनिट बिजली रोजाना उधार ली जा रही है जो वापस चुकानी पड़ेगी.

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राजस्थान में बचा 5 दिन का कोल

राजस्थान में केवल 5 दिन का बचा कोयला -

कोयले की कमी के कारण राजस्थान सरकार को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. कोयले की कमी के कारण रबी के फसली सीजन में किसानों को दिन में पानी देना सरकार के लिए चुनौती बन गया है. ऐसे में नए साल पर बिजली प्रोडक्शन की कमी देखने को मिल सकती है. हालात ऐसे है कि कोयले की रैक औसत 16-17 से घटकर अब 14 तक मिल पा रही है. बाकि प्रदेश की जरूरत रोजाना 27 रैक कोयले की है। अगर बिजली प्रोडक्शन ठप होता है तो सरकार को दूसरा राज्यों से महंगी बिजली खरीदनी पड़ेगी. जिसका सीधा खामियाजा सरकार और आम जनता को भुगतना पड़ सकता है.

कांग्रेस सरकार होने का भी नहीं मिल रहा फायदा -

राजस्थान को कोयले मिले इसके लिए 2 नवम्बर को केन्द्र सरकार का कोयला मंत्रालय और 21 अक्टूबर को वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस खान से माइनिंग करने के लिए राजस्थान को क्लीयरेंस दे चुके हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने पिछले डेढ़ महीने से ज्यादा वक्त से क्लीयरेंस को रोक रखा है. सूत्रों के अनुसार बार-बार जननायक गहलोत के पत्र लिखने और फोन पर सीएम बघेल से बातचीत के अलावा राजस्थान के अफसरों की डिमांड के बावजूद भी छत्तीसगढ़ सीएम ने राजस्थान को अलॉट खान के नए ब्लॉक से कोयला माइनिंग की अनुमति नहीं दे रही है. हाल में जयपुर में हुई महंगाई हटाओ रैली में हिस्सा लेने आई कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से भी गहलोत छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की शिकायत कर चुके है उन्होने कहा वह कोल मामले में सहयोग नहीं कर रहे हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ में बघेल और टीएस सिंहदेव विवाद तथा स्थानीय आदिवासी, नेताओं के दबाव में सरकार ने राजस्थान की कोयला माइनिंग की मंजूरी अटका कर रखा हुआ है.

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पुरानी माइंस में केवल 15 दिन का कोयला -

राजस्थान को छत्तीसगढ़ में अलॉट परसा कोल ब्लॉक के जिस एरिया में माइनिंग हो रही है वहां कोयला खत्म होने की कगार पर है. सूत्रों के अनुसार खान में अभी केवल 10-15 दिन का ही कोयला निकल सकता है. इसके बाद कोयला निकालने के लिए नए कोल ब्लॉक से खनन की मंजूरी सरकार से नहीं मिल रही है. दूसरी जगह से मिलने वाले 5 मिलियन टन हर साल कैपिसिटि के परसा कोल ब्लॉक से माइनिंग की अंतिम परमिशन कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ सरकार ने अटका ली है. अगर यहां माइनिंग होती है तो राजस्थान सरकार को 12 हजार टन यानि 3 रैक कोयला हर दिन मिलेगा. 841 हैक्टेयर एरिये के इस नए कोयला ब्लॉक से हर साल 1 हजार रैक से ज्यादा कोयला मिलने की उम्मीद है, वहीं अगले 30 साल में 150 मिलियन टन कोयला यहां से निकाला जा सकेगा. वही दूसरी और छत्तीसगढ़ के ही पारसा ईस्ट एंड कैंटे बेसिन के फेज-2 में भी 1136 हैक्टेयर की फॉरेस्ट लैंड पर माइनिंग के लिए भी राजस्थान लगातार कोशिशों कर रहा है. केंद्र विभागों से अनुमति मिलने के बाद अब छत्तीसगढ़ सरकार से भी क्लीयरेंस मिलना जरुरी है तभी वहां माइनिंग शुरू हो सकती है. छत्तीसगढ़ सरकार ने फेज-2 के लिए भी अभी तक कोई बड़ा एक्शन नहीं लिया है. फेज-2 बड़ा कोयला माइंस इलाका है। जहां से राजस्थान की मौजूदा कोयला जरूरतों की पूर्ति हो सकती है. जिससे राजस्थान की जनता को बिजली की आपूर्ति हो सकेगा.

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राज्यों के पास कोल इंडिया के हैं 20 हजार करोड़ रुपया बकाया -

कोल इंडिया का लगभग 20 हजार करोड़ के आसपास रुपया राज्यों के पास बकाया है. कोयला मंत्रालय के अनुसार उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, राजस्थान को लेटर लिखकर कोल इंडिया की बकाया राशि देने को कहा है. ब्लैक गोल्ड की कमी के बिजली संकट खड़ा हो सकता है.

मंत्रालय ने कहा कि राज्य हमारे पत्रों का जवाब नहीं दे रहे है. हमने जनवरी से कोयले का स्टॉक लेने के लिए कहा है. लेकिन कोल बकाया नहीं देने के बाद भी कोयले का आपूर्ति राज्यों को लगातार कर रहा है. कोयला मंत्रालय ने यह भी बताया कि झारखंड, पश्चिम बंगाल और मरूभूमि राजस्थान में खदानें होने के बावजूद भी इन राज्यों में खनन नहीं के बराबार है.

राज्यों के पास इतना बकाया है कोल का -

राज्य सरकारों का कोल इंडिया से कोयला ना लेने और राज्यों द्वारा कम खनन के कारण आज पूरे देश में बिजली संकट है. वहीं कोल इंडिया के बकाया राशि की बात की जाए तो राज्यों में महाराष्ट्र नंबर 1 पर आता है. महाराष्ट्र पर सबसे अधिक 3176.6 हजार करोड़ रुपये बकाया है. वही उत्तरप्रदेश पर 2743.1 हजार करोड़ रुपये, पश्चिम बंगाल पर 1958.6 हजार करोड़ रुपये तो तमिलनाड़ु पर 1281.7 हजार करोड़ रुपये का बकाया है.

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जानिए क्या है कोल इंडिया –

कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) भारत की पब्लिक सेक्टर फर्म है. यह भारत और विश्व की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी है. इसकी स्थापना नवंबर 1975 में हुई थी. स्थापना के साल में 79 मिलियन टन कोयला मिला था. 31 मार्च 2010 तक इसके संचालन में भारत के आठ राज्यों के 21 प्रमुख कोयला खनन क्षेत्रों के 471 खान थे, जिनमें 273 अंडरग्राउंड माइन, 163 खुली खान और 35 मिश्रित खान (भूमिगत और खुली खानों का मिश्रण) शामिल है.

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1774 में पहली बार हुआ था कोयले का खनन –

हिंदुस्तान में कोयले के ओद्योगिक खनन की कहानी पश्चिम बंगाल के रानीगंज से शुरू हुई जहां ईस्ट इंडिया कंपनी ने नारायणकुड़ी क्षेत्र में 1774 में पहली बार कोयले का खनन किया. लेकिन उस दौर में ओद्योगिक क्रांति भारत तक नहीं पहुंची थी और कोयले की मांग उस समय बहुत कम थी. ऐसे में अगले 100 सालों तक भारत में बड़े पैमाने पर कोयला उत्पादन नहीं हुआ.

फिर 1853 में ब्रिटन में भाप से चलने वाले इंजन का विकास हुआ. जिसके बाद कोयले का उत्पादन और खपत दोनों बढ़ने लगे. 20वीं सदी की शुरुआत तक भारत में कोयला उत्पादन 61 लाख टन प्रतिवर्ष तक पहुंच गया था. लेकिन कहा जाता है की वक्त के साथ बहुत कुछ बदलता है. आज़ादी के बाद भारत की आकांक्षाएं बढ़ी और कोयला इन बढ़ती आकांक्षाओं की ऊर्जा की ज़रूरतों को पूरा करने महत्वपूर्ण ज़रिया बना. आज भारत कोयले के उत्पादन और खपत के मामल में चीन के बाद नंबर 2 पर आता है. भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का लगभग 70 प्रतिशत से अधिक कोयला संचालित संयंत्रों से हासिल करता है. तो वहीं साल 1973 में कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के बाद से अधिकतर कोयले का उत्पादन, सरकारी कंपनियां करती हैं.

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भारत में 90 प्रतिशत से अधिक कोयले का उत्पादन कोल इंडिया करती है तो वहीं कुछ खदानों में से उत्पाद बड़ी कंपनियों को दिया गया है. इन्हें कैप्टिव माइन्स कहा जाता है. इन कैप्टिव खदानों का उत्पादन कंपनियां अपने संयंत्रों में ही ख़र्च करती हैं.

भारत दुनिया के उन पांच देशों की गिनती में आता है जहां जहां कोयले के सबसे बड़े भंडार हैं. दुनिया में कोयले के सबसे बड़े भंडार अमेरिका सहित कुल 4 देश रूस, ऑस्ट्रेलिया, चीन और भारत में हैं. भारत सरकार के कोयला मंत्रालय के अनुसार भारत के पास 319 अरब टन का कोयला भंडार हैं. भारत में कोयले के सबसे बड़े भंडार झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल,तेलंगना और महाराष्ट्र में हैं. इसके अलावा आंध्र प्रदेश, मेघालय, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश,सिक्किम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में भी कोयला मिला है.

दुनिया के सबसे बड़े कोयला उत्पादक देशों में शामिल होने के बाद भी आज भारत अभूतपूर्व कोयला संकट के कगार पर है. आशंका जाहिर की गई है कि यदि समय रहते देश इस संकट से नहीं उबरा, तो बड़े पैमाने पर बिजली कटौती की संभावना है.

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कोयले पर निर्भरता क्या कम कर पाएगा भारत? -

बीते 10 सालों में भारत में कोयले को खपाने की क्षमता 2 गुना हुई है. देश अच्छी गुणवत्ता का कोयला आयात कर रहा है और सरकार की योजना आगामी समय में कई दर्जन नई खदान खोलने की है.

इंटरनेशनल ऊर्जा समिति के अनुसार, 135 करोड़ की आबादी वाले देश भारत में अगले 20 सालों में ऊर्जा की ज़रूरत किसी भी देश से सबसे अधिक होगी. पर्यावरण में बढ़ता प्रदूषण तो भारत में चिंता की बात है लेकिन दूसरी और भारत लगातार अक्षय ऊर्जा स्रोतों का भी विकास कर रहा है, लेकिन कोयला अभी भी सबसे सस्ता ईंधन है. लेकिन वायु प्रदूषण भी सबसे बड़ा कारण है और भारत पर अपने पर्यावरण लक्ष्य हासिल करने का भी दबाव है.

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