बेटियां सीख रही पहलवानी के गुर
पूर्व में लड़कियों को गृहणी के रूप देखा जाता रहा है लेकिन समय के साथ-साथ लड़कियों ने इस सोच को गलत साबित कर अपनी शक्ति का अहसास कराया है। वाराणसी के तुलसीघाट अखाडे में लड़कियां कुश्ती के गुर सीख रही है। हालांकि शुरू में इसका थोड़ा विरोध हुआ लेकिन लड़कियों ने राष्ट्रीय स्तर के खिताब जीतकर खुद को साबित किया है।
सावन में नागपंचमी के दिन महिलाओं का दंगल देखने के लिए यहां हजारों की संख्या में लोग जुटते है तो उन्हें गर्व महसूस होता है। हालांकि दो साल तक कोविड के कारण सब कुछ बंद रहा।
राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर किया नाम
संकट मोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विशंभरनाथ मिश्र का कहना है 5 साल पहले कुछ पहलवानों ने यहां आकर लड़कियों को अखाड़े में दांव-पेंच सिखाने का प्रस्ताव रखा था। बेटी को मजबूत बनाने की नीति के चलते लड़कियों को अखाडे में प्रवेश दिया गया। इसके साथ ही लड़कियां गदा और डंबल से भी खूब मेहनत कर रही है। राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर सिर्फ 5 साल में खुद को साबित किया है।
बचपन में पिता को खोया, आज दांव-पेंच में माहिर
अखाड़े के कोच उमेश का कहना है कि न्यूजीलैंड के फिल्म निर्देशक ने होम गेम नामक एक डॉक्यूमेंट्री बनाई जिसके नौवें एपिसोड में यहां के अखाड़े के बारे में बताया है। मिर्जापुर जिले की अपेक्षा सिंह भी इस अखाड़े में तैयारी कर रही है।
उन्होंने बचपन में अपने पिता को खो दिया था। वह कहती हैं कि दंगल से लड़ने का जुनून उन्हें काशी ले आया। अपेक्षा सिंह अभी तक 3 बार ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी व स्टेट क्वालीफाई कर चुकी है।