'हम बाबा विश्वनाथ दरबार से देश-दुनिया के उन श्रद्धालु जनन के प्रणाम करत हैं, जो इस अवसर के साक्षी बनत हन। काशीवासियन का प्रणाम जिनके सहयोग से ई घड़ी आयल है। आप सब लोगन के बहुत-बहुत बधाई हौ। जैसे ही कोई काशी में प्रवेश करता है, सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है। एक अलौकिक ऊर्जा हमारी अंतरआत्मा को जाग्रत कर देती है। आपको इस चिरचैतन्य काशी की चेतना में अलग ही स्पंदन है। एक अलग आभा है। आज बनारस के संकल्पों में अलग ही सामर्थ्य दिख रहा है।'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
जहां तक मानवीय दृष्टि जाती है। विश्वनाथ धाम को समय पर पूरा करने से पूरा विश्व जुड़ा है। आज भगवान शिव का प्रिय दिन सोमवार है। विक्रम संवत 2078, दशमी तिथि एक नया इतिहास रच रही है।'
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'आज विश्वनाथ धाम अकल्पनीय और अनंत ऊर्जा से भरा हुआ है। उसका वैभव विस्तार ले रहा है। इसकी विशेषता आसमान छू रही है। यहां आसपास जो अनेक प्राचीन मंदिर लुप्त हो गए थे, उन्हें भी पुनस्थापित किया जा चुका है।
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"गंगा उत्तरवाहिनी होकर विश्वनाथ के पांव पखारने आती हैं, वे भी बहुत प्रसन्न होंगी। मां गंगा को स्पर्श करती हुई हवा बाबा को प्रणाम करते वक्त स्नेह देगी। गंगा उन्मुक्त होंगी तो बाबा के ध्यान में गंगतरंगों की कलकल का दैवीय अनुभव भी होगा। बाबा विश्वनाथ सबके हैं, मां गंगा सबकी हैं। उनका आशीर्वाद सबके लिए है। समय और परिस्थितियों के चलते बाबा और गंगा की सेवा की ये सुलभता मुश्किल हो चली थी पर रास्तों की मुश्किल हो गई थी। विश्वनाथ धाम के पूरा होने से यहां हर किसी के लिए पहुंचना सुगम हो गया है।
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'हमारे बुजुर्ग माता पिता बोट से जेटी तक आएंगे, जेटी से एक्सेलेटर हैं, वहां से मंदिर तक आएंगे। दर्शन के लिए घंटों तक का इंतजार और परेशानी अब कम होगी। पहले यहां मंदिर क्षेत्र केवल 3 हजार वर्गफीट में था, वह अब करीब 5 लाख वर्गफीट का हो गया है।'
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हर भारतवासियों की भुजाओं में वो बल है जो सपनों को साकार कर सकते हैं। 'जहां गंगा अपनी धारा बदलकर बहती हो उस काशी को कौन रोक सकता है। भगवान शंकर ने खुद कहा है कि बिना मेरी प्रसन्नता के काशी में कौन आ सकता है, कौन इसका सेवन कर सकता है। काशी में महादेव की इच्छा के बिना आता है और न उनकी इच्छा के बिना कुछ होता है। यहां जो कुछ होता है महादेव की इच्छा से होता है। ये जो कुछ भी हुआ है, महादेव ने ही किया है।'
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नए भारत में अपनी संस्कृति का गर्व भी है और शक्ति का विस्तार भी है। 'अब मंदिर परिसर में 60-70 हजार श्रद्धालु आ सकते हैं। यही तो है हर-हर महादेव। जब मैं बनारस आया था तो एक विश्वास लेकर आया था। विश्वास अपने से ज्यादा बनारस के लोगों पर था। आप पर था। आज हिसाब-किताब का समय नहीं है। लेकिन मुझे याद है कि तब कुछ लोग भी थे जो बनारस के लोगों पर संदेह करते थे। कैसे होगा, होगा ही नहीं, यहां तो ऐसे ही चलता है, मोदी जैसे बहुत आकर गए। मुझे आश्चर्य होता था कि बनारस के लिए ऐसी धारणाएं बना ली गई थीं। ऐसे तर्क दिए जाने लगे थे। ये जड़ता बनारस की नहीं थी। हो भी नहीं सकती थी। थोड़ी बहुत राजनीति थी, स्वार्थ था इसलिए बनारस पर आरोप लगाए जा रहे थे, लेकिन काशी तो काशी है। काशी तो अविनाशी है। काशी में एक ही सरकार है, जिनके हाथ में डमरू है, उनकी सरकार है।'
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