श्रीलंका में चल रहे आर्थिक संकट के बीच गुरुवार को यहां रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) को देश के नए प्रधानमंत्री के रुप में नियुक्त किया गया। देश के प्रधानमंत्री बनते ही रानिल विक्रमसिंघे की सबसे पहली जिम्मेदारी देश को आर्थिक संकट से निकालने की है। ऐसे में यह उनके लिए एक बहुत बड़ा टास्क होने वाला है। भारत और श्रीलंका के संबंधों की बात करे तो दशकों से दोनों देश आपस में अच्छे दोस्त है। अब देखना दिलचस्प होगा की नए प्रधानमंत्री के आने के बाद क्या श्रीलंका आर्थिक संकट से उबर पाएगा, और आगामी दिनों में भारत के साथ उसके संबंध कैसे होंगे।
रानिल विक्रमसिंघे चौथी बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने हैं। हालांकि, वो कभी भी कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। विक्रमसिंघे यूनाइटेड नेशनल पार्टी (UNP) के सांसद हैं। 2020 के चुनाव में UNP ने मात्र एक सीट जीती थी और विक्रमसिंघे की ही सीट थी। चुनाव में हार के बाद भी रानिल विक्रमसिंघे को देश का प्रधानमंत्री चुना गया।
बता दें कि विक्रमसिंघे को अक्टूबर 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने प्रधानमंत्री पद से हटा दिया था. फिर दो महीने तक चली उठापठक के बाद सिरिसेना ने उन्हें वापस इस पद पर बहाल कर दिया था।
श्रीलंका में उत्पन्न आर्थिक संकट के बाद देश में जगह-जगह हिंसक प्रदर्शन हो रहे है। इन्हीं प्रदर्शनों के बीच महिंदा राजपक्षे (Mahinda Rajapaksa) ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद रानिल विक्रमसिंघे को नया प्रधानमंत्री बनाने की चर्चा शुरु हो गई।
हिंसक प्रदर्शनों के बीच ही गुरुवार को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) ने रानिल विक्रमसिंघे को देश के नए प्रधानमंत्री के रुप में नियुक्त किया ।
श्रीलंका इस वक्त अपने सबसे बुरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है। वहां खाने-पीने, दवाइंयों जैसी बुनियादी चीजों की कीमतें आसमान छू रहीं हैं। लोग सरकार के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं ।
इसी बीच रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) को देश के नए प्रधानमंत्री के रुप में नियुक्त किया। उन्हें राजनीतिक हलकों में व्यापक रूप से एक ऐसे व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया जाता है जो दूरदर्शी नीतियों से अर्थव्यवस्था का प्रबंधन कर सकता है। ऐसे में यह सवाल उठता है की क्या विक्रमसिंघे अपनी नयी नीतियों से देश को आर्थिक संकट से उबार पाएंगे? या फिर श्रीलंका पूरी तरह से दिवालिया हो जाएगा।
बता दें कि श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली हो चुका है। श्रीलंका पर 51 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज होने के कारण उसकी मुद्रा भी लगातार गिरती जा रही है। फिलहाल एक डॉलर का भाव 360 श्रीलंकाई रुपये से ज्यादा है।
अनुमान लगाया जा रहा है कि नए प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और श्रीलंका के संबंध और भी गहरे हो सकते है। रानिल विक्रमसिंघे को भारत का करीबी माना जाता है। प्रधानमंत्री बनने पर भारतीय उच्चायोग ने ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा की श्रीलंका के लोगों के प्रति भारत का कमिटमेंट जारी रहेगा। भारत श्रीलंका में राजनीतिक स्थिरता की उम्मीद करता है। श्रीलंका के प्रधानमंत्री के रूप में रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) की सरकार के साथ काम करने के लिए तत्पर है।
गुरुवार को प्रधानमंत्री बनने के बाद शपथ समारोह के दौरान जब रानिल विक्रमसिंघे से पूछा गया कि भविष्य में भारत के साथ देश के संबंध कैसे होने वाले है तो इस पर उन्होंने कहा की 'रिश्ते और बेहतर होंगे’।
रानिल विक्रमसिंघे की बात करे तो वह भारत के करीबी रहे है। प्रधानमंत्री के तौर पर विक्रमसिंघे चार बार भारत का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने अक्टूबर 2016, अप्रैल 2017, नवंबर 2017 और अक्टूबर 2018 में भारत का दौरा किया था।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने उन्हीं के काल में दो बार श्रीलंका की यात्रा की थी। विक्रमसिंघे की सरकार में ही भारत ने श्रीलंका की 1990 एंबुलेंस सिस्टम सेट अप करने में मदद की थी। कोरोना काल में ये सेवा बेहद काफी मददगार साबित हुई थी।
भारत एक अच्छे पड़ोसी की तरही श्रीलंका को आर्थिक संकट से निकालने में मदद कर रहा है। भारत श्रीलंका में अब तक 3.5 अरब डॉलर की मदद पहुंचा चुका है। इसके अलावा भारत खाने-पीने का सामान, ईंधन और दवाओं जैसी बुनयादी चीजें भी लगातार भेज रहा है।
कुछ दिनों पहले भारत की मदद करने पर रानिल विक्रमसिंघे ने आभार जताया था। उन्होंने कहा था कि भारत ने हमारी बहुत मदद की है। वो आर्थिक मदद के अलावा दूसरे तरीकों से भी हमारी मदद कर रहा है, इसलिए हमें उनका आभारी होना चाहिए।