मेरे लिए यह बिलकुल अप्रत्याशित है लेकिन अच्छा है। मैंने कभी बुकर का सपना नहीं देखा था और मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यह पुरस्कार हासिल कर सकती हूं - गीताजंलि श्री
International Booker Prize: भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री ने इतिहास रच दिया। उनके द्वारा लिखित उपन्यास टॉम्ब ऑफ सैंड (Tomb Of Sand Novel) को प्रसिद्ध इंटरनेशनल बुकर प्राइज (International Booker Prize) मिला है। गीतांजलि का ये उपन्यास हिंदी में रेत की समाधि (Ret Ki Samadhi) के नाम से छपा था जिसे अमेरिकन ट्रांस्लेटर डेजी रॉकवेल ने अंग्रेजी में ट्रांसलेट किया और इसका नाम टॉम्ब ऑफ सैंड (Tomb Of Sand) रखा। ये किताब अब इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीतने वाली 13 किताबों में शामिल हो गई है।
गुरुवार को लंदन में International Booker Prize दिया गया। इस समारोह में हिंदी भाषा के उपन्या रेत की समाधी को भी यह पुरस्कार मिला। यह उपन्यास गीतांजलि श्री ने लिखा है। आपको जानकर खुशी होगी यह उपन्यास पहला उपन्यास है जिसने हिंदी भाषा में International Booker Prize को अपने नाम किया।
उपन्यास की बात करे तो इसमें एक 80 साल की बुजुर्ग विधवा की कहानी को बताया गया है जो 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद अपने पति को खो देती है। पति की जुदाई में वह गहरे अवसाद में चली जाती है। काफी कोशिशों के बाद वह अपने अवसाद पर काबू पाती है और विभाजन के दौरान पीछे छूटे अतीत का सामना करने के लिए पाकिस्तान जाने का फैसला करती है।
इस बुक का प्रकाशन राजकमल ने किया है। 'रेत समाधि' हिंदी की पहली ऐसी किताब है जिसने न केवल अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की लॉन्गलिस्ट और शॉर्टलिस्ट में जगह बनायी बल्कि लंदन में हुए समारोह में ये सम्मान अपने नाम भी किया।
जजों के पैनल की अध्यक्षता करने वाले अनुवादक फ्रैंक वाईन ने बताया कि जजों ने बहुत भावुक बहस के बाद बहुमत से ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ को इस खिताब के लिए चुना। उन्होंने कहा कि ये भारत और विभाजन का एक चमकदार उपन्यास है, जिसकी मंत्रमुग्धता, करुणा युवा उम्र, पुरुष और महिला, परिवार और राष्ट्र को कई आयाम में ले जाती है। वाईन ने बताया कि ये एक असाधारण रूप से अविश्वसनीय पुस्तक है।
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी की रहने वाली गीतांजलि श्री भारत की सर्वश्रेष्ठ लेखिकाओं में से एक है। उन्होंने माई, हमारा शहर उस बरस, तिरोहित, खाली जगह, अनुगूंज, यहां हाथी रहते थे जैसी कई कहानियां लिखी है। उनकी कई कृतियों का अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, सर्बियन और कोरियन भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
गीतांजलि श्री ने कई बड़े सम्मान अपने नाम किए हैं। 2000-2001 में उन्हें हिंदी अकादमी ने साहित्यकार पुरस्कार से सम्मानित किया। 1994 में गीतांजलि को ‘अनुगूंज’ के लिए यूके कथा सम्मान से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा वह इंदु शर्मा कथा सम्मान, द्विजदेव सम्मान के अलावा जापान फाउंडेशन, चार्ल्स वालेस ट्रस्ट, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं।