डेस्क न्यूज़- पिछले कुछ सालों से लोग पारंपरिक खेती के बजाय आधुनिक खेती पर जोर दे रहे हैं। इससे न केवल अच्छा उत्पादन हो रहा है बल्कि अच्छी खासी कमाई भी हो रही है। गुजरात के डीसा में रहने वाले मयूर प्रजापति ने कृषि में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। उनके पास नौकरी का अच्छा प्रस्ताव भी था, लेकिन उन्होंने खेती करने का फैसला किया। वह पिछले 3 साल से हाईटेक नर्सरी चला रहे हैं। इसमें सभी प्रकार के मौसमी पौधे और सब्जियां हैं। उनके खेत से देश भर के किसान पौधे लेते हैं। इस समय वे इससे सालाना 45 लाख रुपये कमा रहे हैं।
मयूर बताते है कि मुझे खेती में ही करियर बनाना था, इसलिए मैंने कृषि से स्नातक किया। नौकरी का प्रस्ताव मिला, लेकिन मैंने ज्वाइन नहीं किया। हमारे पास बहुत सारी कृषि भूमि थी, लेकिन कोई विशिष्ट उत्पादन या आय नहीं थी। परिवार के सदस्य पारंपरिक खेती करते थे। इसलिए मैंने तय किया कि हम नई तकनीक से खेती करेंगे। फिर 2018 के अंत में हमने गन्ने की फसल से खेती शुरू की। गर्मी अधिक थी, इसलिए फसल बचाने के लिए ग्रीन हाउस और व्हाइट हाउस तैयार किए गए।
मयूर बताते हैं कि ग्रीनहाउस तैयार करने से फसलें सुरक्षित हो गईं, नुकसान कम होने लगा और इससे उत्पादन भी बढ़ा। उसके बाद मैंने खेती का दायरा बढ़ाया। धीरे-धीरे उसने सब्जियां लगाना शुरू कर दिया। पहले मिर्च, पत्ता गोभी, टमाटर फिर दूसरी सब्जियां। इसी तरह कुछ महीनों के बाद एक तरह से हमें हर मौसमी सब्जी मिल गई।
मयूर कहते हैं कि मेरी तकनीक नई थी। उससे आसपास के किसान प्रभावित हुए। मेरा प्रोडक्शन भी उनसे ज्यादा मिल रहा था। तो कुछ किसान मुझसे पौधे और बीज की मांग करने लगे। तब मुझे लगा कि नर्सरी का काम भी शुरू किया जा सकता है। उसके बाद मैंने गांव के किसानों को बीज देना शुरू किया। इससे हमारी अच्छी खासी कमाई होने लगी। फिर मैंने एक के बाद एक नई फसलें जोड़ते हुए खेती का दायरा भी बढ़ाया। इतना ही नहीं फसलों की देखभाल के लिए मैंने जैविक तकनीक का भी सहारा लिया। इसने भी काम किया और कुछ दिनों के बाद हमारी नर्सरी विकसित की गई।
वर्तमान में मयूर 70 बीघा जमीन पर खेती कर रहे हैं। इसका अधिकांश हिस्सा उसने नर्सरी के लिए रखा है। वे कहते हैं कि हमारे पास सभी प्रकार के पौधे हैं। गुजरात के साथ-साथ कई राज्यों के किसान हमारे पास पौधे लेने आते हैं।
फिलहाल दो तरह से बीज तैयार किए जा रहे हैं। एक पॉलीहाउस के अंदर और दूसरा पॉलीहाउस के बाहर यानी खुले मैदान में। उन्होंने पॉलीहाउस के अंदर एक नर्सरी स्थापित की है। जहां वे मिट्टी की जगह धान की भूसी और नदी की रेत का इस्तेमाल करते हैं। जबकि गोबर का उपयोग खाद के लिए किया जाता है। इन सबको मिलाकर एक मिश्रण तैयार करते हैं। उसके बाद उसमें बीज बोए जाते हैं। सिंचाई के लिए उन्होंने ड्रिप इरिगेशन की व्यवस्था की है। ये पौधे 30 से 40 दिनों में तैयार हो जाते हैं। इसमें वह Cucurbits किस्म की सब्जियों के बीज उगाते हैं।
इसके अलावा वे अपने खेतों में बीज भी तैयार करते हैं। उसके लिए सबसे पहले वे लंबी और पतली क्यारी बनाते हैं। उस पर गोबर की खाद, जले हुए धान की भूसी और नदी की रेत मिलाई जाती है। इसके बाद इसमें बीज बोए जाते हैं। उन्होंने सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर लगाए हैं। इससे पानी की बर्बादी नहीं होती है। इसमें वे आलू, टमाटर, प्याज जैसी सब्जियों के बीज तैयार करते हैं। इस प्रक्रिया में बार-बार सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
नर्सरी की शुरुआत काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि आप किस प्रकार के बीज और किस प्रकार के पौधे उगा रहे हैं। कुछ बीजों की कीमत सामान्य है तो कुछ बहुत अधिक। अगर कोई किसान कम बजट में नर्सरी शुरू करना चाहता है तो वह डेढ़ लाख से शुरू कर सकता है। इसमें वह मौसमी सब्जियों के बीज तैयार कर सकते हैं। बाजार विकसित होने के बाद किसान चाहे तो अपना दायरा बढ़ा सकता है। नर्सरी व्यवसाय तीन से चार गुना तक कमाता है। इस व्यवसाय में किसानों को सबसे खराब मौसम और बारिश से पौधों को बचाने की चुनौती का सामना करना पड़ता है। इसके लिए पौधों को प्लास्टिक से ढका जा सकता है।