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दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश फिर भी विदेशों से क्यों मंगवाना पड़ रहा कोयला, जानें कोयले से कैसे बनती हैं बिजली

देशभर में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों में कोयले की कमी की खबरें आ रही हैं। देश में उत्पन्न होने वाली बिजली का 70 प्रतिशत ताप विद्युत संयंत्रों से आता है। कुल बिजली संयंत्रों में से 137 बिजली संयंत्र कोयले पर चलते हैं, जिनमें से 72 बिजली संयंत्रों में 7 अक्टूबर 2021 तक 3 दिन का कोयला बचा है। 50 संयंत्रों में 4 दिन से भी कम कोयला बचा है।

Vineet Choudhary

डेस्क न्यूज़- दुनिया भर में कोयले की कमी के बीच भारत में भी कोयले का संकट गहराने लगा है। देश के कई बिजली संयंत्रों में सिर्फ 3 से 5 दिन के कोयले का स्टॉक बचा है। हालात को देखते हुए आशंका जताई जा रही है कि यह संकट और गहरा सकता है। कोयला संकट के कारण बिजली उत्पादन में कमी को लेकर राजस्थान, तमिलनाडु, झारखंड, बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने केंद्र सरकार से शिकायत की है।

केंद्र ने कोयले के किल्लत से किया इनकार

हालांकि केंद्र सरकार ने कोयले की किल्लत से पूरी तरह इनकार किया है। केंद्र का कहना है कि कोयले की कमी जरूर है, लेकिन इसे धीरे-धीरे दूर किया जाएगा। बिजली आपूर्ति प्रभावित होने की आशंका पूरी तरह गलत है। आइए समझते हैं, कोयले के स्टॉक को लेकर क्या स्थिति है? कोयले से बिजली कैसे बनती है? भारत अपने प्रचुर उत्पादन के बावजूद दूसरे देशों से कोयला आयात करने के लिए क्यों मजबूर है? कोयले की कमी की खबरों के बीच सरकार का क्या कहना है? और आखिर क्यों दुनिया भर में कोयले की कमी है।

क्या है कोयला संकट?

दरअसल, देशभर में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों में कोयले की कमी की खबरें आ रही हैं। देश में उत्पन्न होने वाली बिजली का 70 प्रतिशत ताप विद्युत संयंत्रों से आता है। कुल बिजली संयंत्रों में से 137 बिजली संयंत्र कोयले पर चलते हैं, जिनमें से 72 बिजली संयंत्रों में 7 अक्टूबर 2021 तक 3 दिन का कोयला बचा है। 50 संयंत्रों में 4 दिन से भी कम कोयला बचा है।

कोयले से कैसे बनती है बिजली?

सबसे पहले खदान से आने वाले कोयले के छोटे-छोटे टुकड़ों को बारीक पीसकर चूर्ण बना लिया जाता है। इस कोयले का उपयोग बॉयलर में पानी गर्म करने के लिए किया जाता है। जब पानी गर्म किया जाता है, तो यह उच्च दबाव वाली भाप में बदल जाता है, जिसका उपयोग टरबाइन को घुमाने के लिए किया जाता है। ये टर्बाइन भी वाटर टर्बाइन की तरह होते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इन टर्बाइनों को घुमाने के लिए भाप का इस्तेमाल किया जाता है। ये टर्बाइन जनरेटर से जुड़े होते हैं। टरबाइन के घूमने से जनरेटर में एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है और इससे बिजली उत्पन्न होती है।

कोयला उत्पादन में भारत दूसरा सबसे बड़ा देश, लेकिन क्यों करना पड़ा रहा आयात

भारत कोयला उत्पादन के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। ग्लोबल एनर्जी स्टैटिस्टिकल ईयरबुक 2021 के अनुसार कोयला उत्पादन में चीन सबसे आगे है। चीन हर साल 3,743 मिलियन टन कोयले का उत्पादन करता है। वहीं भारत हर साल 779 मिलियन टन कोयले का उत्पादन कर दूसरे नंबर पर है। इसके बावजूद भारत को अपनी जरूरत का 20 से 25 फीसदी कोयला दूसरे देशों से आयात करना पड़ता है। दरअसल, कोयले के आयात का सीधा संबंध कोयले की गुणवत्ता से होता है। भारत में उत्पादित कोयले का ऊष्मीय मान कम है। ऊष्मीय मान एक किलो कोयले को जलाने से उत्पन्न ऊर्जा की मात्रा है। कैलोरी मान जितना अधिक होगा, कोयले की गुणवत्ता उतनी ही बेहतर होगी।

क्यों हो रही कोयले की कमी?

कोरोना की भयावह दूसरी लहर के बाद अब देश पटरी पर लौट रहा हैं। औद्योगिक गतिविधियां पहले की तरह शुरू हो गई हैं, जिससे बिजली की मांग बढ़ गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत भी इसकी कमी के कारण है। जैसे ही कोयला महंगा हुआ, बिजली संयंत्रों ने इसका आयात बंद कर दिया और वे पूरी तरह से कोल इंडिया पर निर्भर हो गए। देश में 80% कोयला उत्पादन करने वाली कोल इंडिया का कहना है कि वैश्विक स्तर पर कोयले की कीमत बढ़ने के कारण हमें घरेलू कोयला उत्पादन पर निर्भर रहना पड़ रहा है। यह स्थिति डिमांड और सप्लाई के बीच गैप के कारण पैदा हुई है।

भारत में कोयले की कमी को भी मानसून से जोड़ा जा रहा है। दरअसल, मानसून की देरी से वापसी के कारण खुली खदानों में अभी भी पानी भरा हुआ है. इस कारण इन खदानों से कोयले का उत्पादन नहीं हो पा रहा है।

सरकार नही मान रही कोयले की कमी

कोयला मंत्रालय ने रविवार को कहा कि संयंत्रों को आपूर्ति के लिए कोयले का पर्याप्त भंडार है। संयंत्रों में वर्तमान में 7.2 मिलियन टन कोयला है, जो 4 दिनों के लिए पर्याप्त है। उम्मीद है कि स्टॉक होल्डिंग धीरे-धीरे बढ़ेगी। कोल इंडिया के पास भी 400 लाख टन से अधिक कोयला है, जिसकी आपूर्ति बिजली संयंत्रों को की जानी है।

दिल्ली में बिजली की कमी की खबरों पर ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने कहा कि दिल्ली में बिजली संकट नहीं है। हमारे पास कोयले का बड़ा भंडार है। संकट को अनावश्यक रूप से प्रचारित किया गया है। मंत्री आरके सिंह ने कहा कि 9 अक्टूबर को सभी कोयला खदानों से 19.2 करोड़ टन कोयला संयंत्रों को भेजा गया और सिर्फ 1.87 लाख टन का ही इस्तेमाल हुआ. इसका मतलब है कि कोयले का जितना इस्तेमाल हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा उत्पादन किया जा रहा है।

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