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राजस्थान के श्रीयंश ने पुराने जूतों से खड़ा किया 3 करोड़ रु. का कारोबार, जानें पूरी कहानी

श्रीयंश भंडारी और रमेश धामी मिलकर पुराने जूतों से नए जूते-चप्पल बना रहे हैं। देशभर में उनके जूतों की डिमांड है। वे कई बड़ी कंपनियों के लिए जूते भी बना रहे हैं। इससे वे सालाना 3 करोड़ रुपये का कारोबार कर रहे हैं। इसके साथ ही वह गरीबों को मुफ्त में चप्पल बांटने का अभियान भी चला रहे हैं।

Vineet Choudhary

डेस्क न्यूज़- अक्सर हम या तो पुराने जूते पहनना छोड़ देते हैं या फिर कूड़ेदान में फेंक देते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल करीब 35 अरब जूते फेंके जाते हैं। जबकि 1.5 अरब लोगों को नंगे पांव रहना पड़ता है, वे जूते या चप्पल नहीं ढूंढ पा रहे हैं। इन दोनों समस्याओं से बचने के लिए राजस्थान के श्रीयंश भंडारी और उत्तराखंड के रमेश धामी ने पहल की है। दोनों दोस्त मिलकर पुराने जूतों से नए जूते-चप्पल बना रहे हैं। देशभर में उनके जूतों की डिमांड है। वे कई बड़ी कंपनियों के लिए जूते भी बना रहे हैं। इससे वे सालाना 3 करोड़ रुपये का कारोबार कर रहे हैं। इसके साथ ही वह गरीबों को मुफ्त में चप्पल बांटने का अभियान भी चला रहे हैं।

Photo | Dainik Bhaskar

ऐसे आया आइडिया

26 वर्षीय श्रीयंश राजस्थान के उदयपुर की रहने वाले हैं। वह राज्य स्तरीय एथलीट भी रह चुके हैं। जबकि रमेश उत्तराखंड के गढ़वाल जिले के रहने वाले हैं। दोनों मुंबई में दोस्त बन गए जहां वे मैराथन ट्रेनिंग लेने आए थे। साल 2015 की बात है, जब श्रेयांश जय हिंद कॉलेज, मुंबई से ग्रैजुएशन कर रहा था। एक दिन रनिंग के दौरान उसने देखा कि रमेश ने पुराने फटे जूतों को नए सिरे से तैयार करके पहन रखे थे। श्रीयांश को यह विचार पसंद आया, क्योंकि एथलीट के जूते महंगे होते हैं और अक्सर कम समय में खराब हो जाते हैं। ऐसे में उन्हें बार-बार बदलना पड़ता है। इन जूतों को दोबारा इस्तेमाल करने से पैसे की बचत होगी।

पुराने जूतों से तैयार किए सैम्पल

इसी सोच के साथ श्रीयंश और रमेश ने इस आइडिया पर काम करना शुरू किया। उन्होंने पुराने जूतों से कुछ सैम्पल तैयार किए और अहमदाबाद में एक प्रदर्शनी में भाग लिया। किस्मत अच्छी रही और उनके सैम्पल का सिलेक्शन भी हो गया। इसके बाद श्रीयंश और रमेश को लगा कि इस काम को आगे बढ़ाना चाहिए। उन्होंने मुंबई में ठक्कर बप्पा कॉलोनी में स्थित एक जूता बनाने वाली छोटी यूनिट से कॉन्टैक्ट किया। उन्हें अपनी डिमांड बताई और कुछ प्रोटोटाइप तैयार कराए। इसके बाद दो और कॉम्पिटिशन उन्होंने जीते और करीब 5 लाख रुपए अर्जित किए।

कैसे करते होते हैं नए जूते?

श्रीयंश की टीम में फिलहाल 50 लोग काम करते हैं। इसमें से कुछ लोग मार्केटिंग से जुड़े हैं और कुछ लोग मैन्युफैक्चरिंग से। वे बताते हैं कि नए जूते तैयार करने के लिए हम लोग पुराने जूतों को उनकी क्वालिटी के हिसाब से अलग-अलग कैटेगरी में बांटते हैं। इसके बाद सोल और ऊपर का पार्ट अलग कर लेते हैं। इसके बाद प्रोसेस करके एक स्टैंडर्ड सोल तैयार करते हैं। इसी तरह ऊपर वाले भाग को भी प्रोसेस करके नए सिरे से तैयार करते हैं। फिर इससे नए जूते तैयार करते हैं।

इसी तरह जिन जूतों से नए जूते नहीं बन सकते, उनसे हम चप्पल बनाते हैं। क्वालिटी और वैरायटी के मुताबिक ये अलग-अलग होते हैं। बिजनेस के साथ-साथ श्रीयंश और रमेश उन लोगों को मुफ्त में चप्पल बांटने का भी अभियान चला रहे हैं, जो गरीब हैं। जो नया चप्पल या जूते नहीं खरीद सकते। अब तक 4 लाख से ज्यादा लोगों को वे चप्पल डोनेट कर चुके हैं।

10 लाख रुपए से शुरू किया कारोबार

श्रीयांश का कहना है कि तब हमारे काम की खबरें एक-दो अखबारों मेंछप चुकी थी। इसलिए परिवार के लोग भी सपोर्ट कर रहे थे। हमने 2016 में मुंबई में अपना कारोबार परिवार से 5 लाख और इनाम की रकम को मिलाकर 10 लाख रुपये के साथ शुरू किया। ग्रीन सोल नाम से पंजीकृत कंपनी। काम करने के लिए एक कार्यालय किराए पर लिया, कारीगरों को काम पर रखा और कुछ प्रोटोटाइप खरीदे।

वर्तमान में 65 से अधिक कॉर्पोरेट ग्राहक जुड़े हैं

श्रीयांश का कहना है कि शुरू में हम खेल के मैदान से खिलाड़ियों के पुराने जूते इकट्ठा करते थे और उससे नए जूते तैयार करते थे। फिर अलग-अलग शहरों में लोगों को भेजते थे। बाद में हम प्रदर्शनियों में भी जाने लगे। हमें यहां भी अच्छा रिस्पॉन्स मिला। उसके बाद हमने ऑनलाइन और ऑफलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए इसकी मार्केटिंग शुरू की। उनका कहना है कि हमारा कॉन्सेप्ट थोड़ा अलग था इसलिए बड़ी कंपनियों को भी हमारा आइडिया पसंद आया। हमने उनकी मांग के अनुसार उनके लिए जूते बनाना शुरू किया। इस तरह हमारा कारवां बढ़ता ही गया। धीरे-धीरे कॉर्पोरेट ग्राहक बढ़ने लगे। वर्तमान में हमारे पास ऐसे 65 से अधिक कॉर्पोरेट ग्राहक हैं।

4 लाख से ज्यादा पुराने जूते कर चुके हैं रिसाइकिल

श्रीयांश का कहना है कि अब तक हम 4 लाख से ज्यादा पुराने और खराब हो चुके जूतों को रिसाइकिल कर चुके हैं। साल दर साल हमारा आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। हालांकि, कोरोना के चलते हमारी रफ्तार धीमी हो गई है। कलेक्शन सेंटर पर लोग ज्यादा जूते नहीं पहुंचा पा रहे हैं। उम्मीद है कि अब यह दायरा फिर से बढ़ेगा। फंडिंग को लेकर श्रीयांश का कहना है कि हमें शुरू से ही अच्छा रिस्पॉन्स मिला, इसलिए पैसे की कभी दिक्कत नहीं हुई। कई बड़ी कंपनियां हमें स्पॉन्सरशिप भी देती हैं, इससे काफी सपोर्ट मिलता है।

कहाँ से इकट्ठा करते हैं पुराने जूते?

श्रीयांश का कहना है कि हम कई स्तरों पर जूते इकट्ठा करते हैं। इस संग्रह में व्यक्तिगत स्तर से लेकर कॉर्पोरेट स्तर तक भी काम किया जाता है। हमारे साथ कई स्कूल और कॉलेज भी जुड़े हुए हैं, वे हमें अपने छात्रों के पुराने जूते देते हैं। हम परिवहन की लागत का भुगतान करके उन्हें अपनी इकाई में ऑर्डर करते हैं। कुछ सामाजिक संगठन और गैर सरकारी संगठन भी जूते इकट्ठा करते हैं और हमें भेजते हैं। इसी तरह कुछ बड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों के पुराने जूते इकट्ठा कर हमारे पास भेजती हैं।

इतना ही नहीं, जूते बेचने वाली कई बड़ी कंपनियां भी हमारे साथ जुड़ी हुई हैं। वे हमें अपने पुराने और घिसे-पिटे जूते भेजते हैं। हम उनसे नए जूते तैयार करते हैं और भेजते हैं। इसके लिए हम हर जूते पर 200 रुपये चार्ज करते हैं। इसके अलावा लोग अपने जूते हमें व्यक्तिगत स्तर पर भी भेज सकते हैं। इसके लिए वे हमारे संग्रह केंद्र पर जा सकते हैं या कूरियर के माध्यम से भेज सकते हैं। वर्तमान में हमारे मुंबई और झारखंड में संग्रह केंद्र हैं।

कैसे तैयार होते हैं नए जूते?

श्रीयांश की टीम में फिलहाल 50 लोग काम करते हैं। इनमें से कुछ लोग मार्केटिंग से जुड़े हैं और कुछ लोग मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े हैं। वे बताते हैं कि नए जूते तैयार करने के लिए हम पुराने जूतों को उनकी गुणवत्ता के हिसाब से अलग-अलग कैटेगरी में बांटते हैं। इसके बाद तलवों और ऊपरी हिस्से को अलग कर देते हैं। इसके बाद प्रोसेस करके एक मानक सॉल तैयार किया जाता है। इसी तरह ऊपरी हिस्से को भी प्रोसेस करके नए सिरे से तैयार किया जाता है। फिर उससे नए जूते बनाएं।

इसी तरह हम ऐसे जूतों से चप्पलें बनाते हैं जिससे नए जूते नहीं बन सकते। वे क्वालिटी और वैरायटी के अनुसार भिन्न होते हैं। श्रीयांश और रमेश व्यवसाय के साथ-साथ गरीबों को मुफ्त में चप्पल बांटने का अभियान भी चला रहे हैं। जो नई चप्पल या जूते नहीं खरीद सकते। वह अब तक 4 लाख से ज्यादा लोगों को चप्पल दान कर चुके हैं।

मार्केटिंग कैसे की?

श्रीयांश का कहना है कि शुरुआत में हमने सोशल मीडिया और प्रदर्शनियों का सहारा लिया। स्पोर्ट्स ग्रुप और खिलाड़ियों से बात की, उन्हें जूते उपलब्ध कराए। इसके बाद कॉरपोरेट ग्राहक हमसे जुड़ने लगे। उसके बाद हमने ऑनलाइन मार्केटिंग शुरू की। हमारी वेबसाइट बनाई, हमारे उत्पादों को Amazon और Flipkart जैसे प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया, जिससे हमारी बिक्री बहुत अच्छी होने लगी। ऑफलाइन लेवल पर हमने अपने रिटेलर्स को देश के अलग-अलग शहरों में रखा है, कई लोगों ने डीलरशिप भी ली है।

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