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3 साल पहले तनुश्री ने शुरु किया था इको फ्रेंडली मोमबत्ती बनाने का बिजनेस, 250 महिलाओं को दिया रोजगार, अब 12 लाख रु. टर्नओवर

जयपुर की रहने वाली तनुश्री जैन लगभग 3 वर्षों से स्थानीय कारीगरों के सहयोग से प्राकृतिक मोम की मदद से जैविक मोमबत्तियां बना रही हैं। भारत के साथ-साथ विदेशों में भी इनके उत्पादों की अच्छी मांग है। पिछले साल उनकी कंपनी का टर्नओवर 12 लाख रुपये था।

Vineet Choudhary

डेस्क न्यूज़- मोमबत्तियों की डिमांड आमतौर पर हर इवेंट में होती है। बर्थडे पार्टी हो, क्रिसमस पार्टी हो, कोई उत्सव हो या कोई त्योहार, हर समारोह में मोमबत्तियां जलाने का चलन है। हम घरों की रोशनी और सुंदरता के लिए मोमबत्तियां जलाते हैं। अब बाजार में मांग के अनुसार रंग और आकार से लेकर मोमबत्तियों तक हर तरह की सुगंध है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये मोमबत्तियां जितनी खूबसूरती से फैलती हैं, उससे कहीं ज्यादा हमारी सेहत के लिए हानिकारक होती हैं?

Photo | Dainik Bhaskar

इको फ्रेंडली मोमबत्तियों का इस्तेमाल

दरअसल मोमबत्ती से पैराफिन वैक्स निकलता है, जो टॉक्सिक नेचर का होता है। यह हमारे स्वास्थ्य को काफी हद तक प्रभावित करता है। इससे सांस लेने में तकलीफ, सिरदर्द, अस्थमा जैसी बीमारियां हो सकती हैं। कई बार यह ट्यूमर और कैंसर का कारण भी बनता है। इससे बचने का सबसे कारगर तरीका है इको फ्रेंडली मोमबत्तियों का इस्तेमाल। ऐसी ही पहल जयपुर की रहने वाली तनुश्री जैन ने की है। वह लगभग 3 वर्षों से स्थानीय कारीगरों के सहयोग से प्राकृतिक मोम की मदद से जैविक मोमबत्तियां बना रही हैं। भारत के साथ-साथ विदेशों में भी इनके उत्पादों की अच्छी मांग है। पिछले साल उनकी कंपनी का टर्नओवर 12 लाख रुपये था।

पढ़ाई के दौरान शुरु किया काम

तनुश्री मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता सेना में थे जबकि उनकी मां एक शिक्षिका हैं। साल 2017 में कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग करने के बाद तनुश्री को कई अच्छी कंपनियों से जॉब के ऑफर आए, लेकिन उन्होंने नौकरी नहीं की। वह कहती हैं कि मैंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, लेकिन इस क्षेत्र में मेरी कभी खास दिलचस्पी नहीं रही। मैं हमेशा से स्थानीय लोगों के साथ जमीनी स्तर पर काम करना चाहती थी। मैंने अपनी पढ़ाई के दौरान स्थानीय कारीगरों के साथ मिलकर काम करना शुरू किया।

स्थानीय कलाकोरों की समस्याओं से आया आइडिया

तनुश्री कहती हैं कि हमारे इलाके में हर तरह के स्थानीय कलाकार और कारीगर रहते हैं। जब मैंने उनसे मुलाकात की और उनके काम को समझा तो पता चला कि इन कारीगरों को मार्केटिंग को लेकर काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सबसे अच्छा उत्पाद बनाने के बाद ये लोग उसकी ठीक से मार्केटिंग नहीं कर पाते हैं। उसके बाद मैंने अपने तकनीकी कौशल का इस्तेमाल उनकी मार्केटिंग के लिए करना शुरू किया। मैंने विभिन्न ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर स्थानीय कारीगरों के उत्पादों की मार्केटिंग शुरू की। इससे मुझे मार्केटिंग की भी अच्छी समझ मिली।

तबीयत बिगड़ी तो समझ आया इसका मह्त्व

तनुश्री ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद 2017 में इंडियन स्कूल ऑफ डेवलपमेंट मैनेजमेंट (ISDM) से मास्टर्स किया। इस दौरान उन्हें एक साल तक दिल्ली में रहना पड़ा। वहां की हवा उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं थी और जल्द ही उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी। शुरुआत में उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन बाद में उन्होंने इस पर रिसर्च करना शुरू किया। कुछ दिनों बाद तनुश्री ने महसूस किया कि खराब सेहत के पीछे केमिकल कैंडल जलाना भी एक बड़ा कारण है। इसके बाद उन्हें मोमबत्ती बनाने की प्रक्रिया समझ आने लगी।

ड़ेढ लाख रुपये से शुरु किया कारोबार

तनुश्री कहती हैं कि लगातार अध्ययन और शोध के बाद मुझे पता चला कि मोमबत्ती बनाने के लिए ज्यादातर लोग केमिकल का इस्तेमाल करते हैं। इससे प्रदूषण होता है। अगर हम बंद कमरे में ऐसी मोमबत्तियां जलाते हैं, तो इसका हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके बजाय अगर मोमबत्तियों को बनाने में प्राकृतिक मोम और सुगंधित जड़ी-बूटी से बने तेल का इस्तेमाल किया जाए तो सेहत को कोई नुकसान नहीं होगा। इसके बाद साल 2018 के आखिर में तनुश्री ने अपने आसपास के कारीगरों से बात की।

10 महिलाएं उसके साथ काम करने के लिए राजी हुईं। इसके बाद उन्होंने इन महिलाओं को मोमबत्ती बनाने का प्रशिक्षण दिया। फिर उन्होंने मोमबत्ती बनाने के लिए कच्चा माल इकट्ठा किया और घर से काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने स्टार्टअप का नाम नुशौरा रखा। शुरुआत में सेटअप लगाने और काम शुरू करने में करीब डेढ़ लाख रुपये खर्च हुए।

शुरुआत में ही मिला लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स

तनुश्री का कहना है कि हमारे उत्पाद की गुणवत्ता बाजार में मिलने वाली मोमबत्तियों से अलग है। यही वजह है कि शुरुआत में ही हमें लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिलने लगा। धीरे-धीरे हमारे ग्राहक भी बढ़े और हमारे साथ काम करने वाली महिलाएं भी बढ़ीं। वर्तमान में हमारे पास 60 ग्राम से लेकर 1 किलोग्राम तक की 20 से अधिक प्रकार की मोमबत्तियां हैं। जिसकी कीमत 99 रुपये से लेकर 1999 रुपये तक है।

कैसे बनाई जाती है इको फ्रेंडली मोमबत्तियां

तनुश्री से फिलहाल राजस्थान और मध्य प्रदेश की 250 महिलाएं जुड़ी हैं। वे अपने-अपने घरों में काम करते हैं और उत्पाद तैयार होने के बाद उत्पाद तनुश्री को सौंप देते हैं। उत्पाद बेचने के बाद अर्जित आय सभी कारीगरों के बीच समान रूप से वितरित की जाती है। मोमबत्ती बनाने की प्रक्रिया के बारे में तनुश्री कहती हैं कि इसके लिए मोटे तौर पर तीन चीजों की जरूरत होती है- प्राकृतिक मोम, आवश्यक तेल और कपास की छड़ें।

मोमबत्ती तैयार करने के लिए सबसे पहले मोम को एक बर्तन में रखकर गैस पर या चूल्हे पर गर्म किया जाता है। इसके बाद इसमें एसेंशियल ऑयल मिलाया जाता है। उसके बाद मोमबत्ती बनाने वाले डमी कंटेनर में दोनों का मिक्सर भर दिया जाता है। उसमें रोशनी पहले से ही है। कुछ देर बाद मोम जम जाता है और मोमबत्ती बनकर तैयार हो जाती है। उसके बाद डमी उससे छीन ली जाती है। हम मोमबत्ती के आकार के डमी या मोल्ड का उपयोग करते हैं। इसी तरह, विभिन्न प्रकार की मोमबत्तियों के लिए विभिन्न प्रकार के आवश्यक तेलों और रंगों का उपयोग किया जाता है।

क्या हैं मार्केटिंग रणनीति?

तनुश्री का कहना है कि हम ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों स्तरों पर मार्केटिंग कर रहे हैं। इसके तहत ब्रांड टू कस्टमर यानी बी2सी और ब्रैंड टू बिजनेस यानी बी2बी मार्केटिंग की जा रही है। हमने कई बड़ी कंपनियों के साथ गठजोड़ किया है। इसके साथ ही हम देशभर में सोशल मीडिया के जरिए मार्केटिंग कर रहे हैं। हाल ही में हमने Amazon और India Mart से अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग भी शुरू की है। इसे बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। अब हमने अपने उत्पाद भारत से बाहर कनाडा, अमेरिका समेत कई देशों में भेजना शुरू कर दिया है।

मार्केटिंग स्ट्रैटेजी के बारे में तनुश्री कहती हैं कि हम सोशल मीडिया पर इंफ्लुएंसर्स और सेलेब्रिटीज को कैंडल गिफ्ट करते हैं। बदले में, वे अपने खातों से हमारे उत्पादों की तस्वीरें या वीडियो पोस्ट करते हैं। इससे मार्केटिंग में काफी फायदा होता है और हमारा प्रोडक्ट कम समय में ज्यादा लोगों तक पहुंचता है।

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