रिपोर्ट्स में दावा : देशभर में जारी कोरोना कहर के बीच गुजरात से डराने वाले आंकड़े सामने आए हैं।
गुजराती न्यूजपेपर ने सरकार द्वारा जारी किए गए डेथ सर्टिफिकेट (मृत्यु प्रमाणपत्रों) के आंकड़ों के आधार पर दावा किया है
कि राज्य में पिछले साल इसी अवधि की तुलना में 1 मार्च से 10 मई के बीच करीब 61,000 अधिक मौतें हुई हैं
। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद गुजरात में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने जांच की मांग की है।
रिपोर्ट्स में दावा : गुजराती अखबार दिव्य भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक,
1 मार्च से 10 मई के बीच गुजरात में स्थानीय निकायों ने 123871 डेथ सर्टिफिकेट जारी किए हैं,
जो पिछले साल की तुलना में करीब 65 हजार अधिक है।
पिछले साल इसी अवधि के दौरान 58000 डेथ सर्टिफिकेट जारी किए गए थे।
यह आंकड़ा गुजरात के 33 जिलों और आठ बड़े शहरों की नगर निकाय द्वारा जारी किए डेथ सर्टिफिकेट के आधार पर अखबार ने पेश किया है।
वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार,
इस दौरान यानी 1 मार्च से 10 मई के बीच 33 जिलों में कोरोना वायरस से 4218 लोगों की मौतें हुई हैं।
इन आंकड़ों के बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर गुजरात में इतनी मौतें क्यों हो रही हैं।
क्या कोरोना से होने वाली मौतों के आंकड़ों को कहीं कम करके तो नहीं दिखाया जा रहा।
क्या इन मौतों का कोरोना से भी कोई कनेक्शन है? रिपोर्ट में भी ऐसी आशंका व्यक्त की गई है। शुक्रवार को गुजरात में कोरोना के 9995 नए केस मिले, जबकि 104 लोगों की मौत हो गई। इस तरह से राज्य में अब तक कुल 8944 लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है और अब तक 735348 कुल केस सामने आ चुके हैं।
लोकल गुजराती अखबारों में कई क्षेत्रों में आधिकारिक आंकड़ों की तुलना में कोविड से होने वाली मौतों को ज्यादा बताया जा रहा है। इनमें से कई राज्य के श्मशान घाटों के आंकड़ों पर आधारित थे। बता दें कि गुजरात में कोरोना से होने वाली मौतों का आलम यह है कि श्मशान घाटों और शवदाह गृहों पर लाइनें लग रही हैं।
राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा कि वे दिव्य भास्कर की रिपोर्ट देख रहे हैं, मगर मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने पहले ही कोविड-19 मौतों को छिपाने से इनकार किया है। उन्होंने कहा था कि कोविड मौतों को आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के अनुसार दर्ज किया जा रहा है।
अगर किसी पहले से बीमार व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो विशेषज्ञों की एक समिति होती है जो मृत्यु के प्राइमरी और सेकेंरी कारणों का निर्णय करती है। उदाहरण के लिए यदि यह पाता है कि मृत्यु का मुख्य कारण दिल का दौरा था, तो ऐसे व्यक्ति को कोविड -19 मौतों में नहीं गिना जा सकता है, भले ही वह पॉजिटिव रहा हो। पूरे देश में इस प्रणाली का पालन किया जाता है।
शुक्रवार को कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष परेश धनानी ने कोरोना से होने वाली मौतों की कथित रूप से कम रिपोर्टिंग की जांच की मांग की। धनानी ने कहा कि राज्य सरकार को बड़ी संख्या में मौतों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और डेटा में हेराफेरी करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करनी चाहिए। वहीं कांग्रेस प्रवक्ता मनीष दोशी ने जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग की।