14 अप्रैल भारत में बहुत महत्वपूर्ण दिन था। हिंदुओं और सिखों ने नया साल मनाया। बड़ी संख्या में मुसलमान रमजान के पहले दिन रोजा खोलने की तैयारी कर रहे थे। हरिद्वार कुंभ मेले में लाखों लोगों ने गंगा नदी में डुबकी लगाई। दूसरी ओर, कोविड -19 रोग से संक्रमित लोगों की संख्या देश भर में पहली बार दो लाख से अधिक दर्ज की गई । उसके बाद, मामले लगातार बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की ढिलाई और लापरवाही के कारण दूसरी लहर बेकाबू हो रही है। भीड़ की घटनाओं पर रोक लगाने में सरकार विफल रही है। वैक्सीन खरीदने और वायरस के शोध के लिए भुगतान करने में निर्णय देर से लिया गया है।
महामारी की दूसरी भयानक लहर न केवल भारत के लिए बल्कि दुनिया के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है।
वायरस के अनियंत्रित प्रसार से खतरनाक नए स्ट्रेन के उभरने का खतरा बढ़ता है।
भारत में पहली बार अमेरिका, ब्रिटेन सहित कई अन्य देशों में वायरस की एक नई किस्म – डबल म्यूटेंट – पाई गई है।
भारत की दूसरी लहर का दुनिया के बाकी हिस्सों में टीकों की आपूर्ति पर तत्काल प्रभाव पड़ा है।
सरकार ने संक्रमण बढ़ने पर टीकों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
भीड़ भरे शहरों और कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं के कारण भारत में किसी भी संक्रामक बीमारी को नियंत्रित करना आसान नहीं
है। फिर भी, सितंबर 2020 में शिखर पर पहुंचने वाली पहली लहर में मौतों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से कम थी।
भारत सरकार के पास इस वर्ष तक महामारी से निपटने के लिए कई अन्य सरकारों की तरह खराब रिकॉर्ड नहीं था।
लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनदेखी और आत्मसंतुष्टि ने स्थिति को नियंत्रण से बाहर होने दिया।
जनवरी में, मोदी ने दावा किया कि हमने न केवल अपनी समस्याओं को हल किया है बल्कि महामारी से निपटने में दुनिया की
मदद की है। दूसरी ओर, मार्च की शुरुआत में जब विपक्ष शासित महाराष्ट्र में मामले बढ़ने लगे, तो मोदी सरकार ने राज्य
सरकार को गिराने की उम्मीद में उसकी मदद करने के बजाय उस पर हमला किया।
राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए मोदी के निरंतर अभियान की झलक इस महीने के विधानसभा चुनाव के दौरान पश्चिम
बंगाल में दिखाई दे रही है। वे, उनके सिपहसालारों और प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों के नेताओं ने कई विशाल रैलियां की हैं। इनमें मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का कतई पालन नहीं किया गया।
इसके कारण राज्य के दस करोड़ लोगों में महामारी के प्रकोप का खतरा है,
लेकिन इसके कारण सरकार का ध्यान इस बीमारी से लड़ने पर नहीं था।
मोदी के दाहिने हाथ गृहमंत्री अमित शाह अप्रैल के पहले 18 दिनों में से 12 दिन चुनाव प्रचार में व्यस्त रहे।
यह समझने में मदद मिल सकती है कि मोदी की वैक्सीन नीति कैसे गड़बड़ है।
फरवरी के मध्य तक, सरकार ने केवल 3% आबादी के लिए खुराक का आदेश दिया।
सरकारी नियामक एजेंसी ने स्वदेशी वैक्सीन- कोवैक्सीन को सभी जरूरी ट्रायल पूरे किए बिना ही मंजूरी दे दी थी।
दूसरी ओर विदेशी वैक्सीन के लिए अतिरिक्त रूकावटें खड़ी की गई थीं।
इस बीच, सरकार के फैसलों में सुधार के संकेत मिले हैं।
सरकार ने टीकों के तेजी से आयात को मंजूरी दी।
सरकार ने उत्पादन बढ़ाने के लिए सीरम संस्थान को तीन हजार करोड़ रुपए दिए हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने बंगाल में बड़ी चुनावी रैलियों को रद्द कर दिया है।
अगले महीने से, 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को वैक्सीन लगाने का निर्णय लिया गया है।
हालांकि, देश के अधिकांश हिस्सों में टीका की कमी को देखते हुए, इस निर्णय का सीमित लाभ होगा।
भारत में वायरस से प्रभावित लोगों का आधिकारिक आंकड़ा हिमखंड के ऊपरी हिस्से के समान है। महामारी कहती है, बड़े शहरों में कम परीक्षण के कारण, संक्रमित लोगों की संख्या दस से तीस गुना अधिक हो सकती है। दिसंबर में, नेशनल सेरोलॉजिकल सर्वे ने पाया कि 21% भारतीयों में कोविड -19 एंटीबॉडी है, जबकि उस समय केवल 1% संक्रमित हुए थे।
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