देशभर में कोरोना वायरस का कहर देख हर कोई दुखी है। इन दिनों देश के हालात काफी डगमगाए हुए है। हर राज्य के अस्पलातों में बेड और ऑक्सीजन की कमी हो रही हैं। आये दिन ये वायरस अपनी चपेट में किसी ना किसी को ले रहा है। वहीं अब खबर मिली है कि भारत के दिग्गज एथलीट और 'फ्लाइंग सिख' के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह भी कोरोना पॉजिटिव पाए गाये हैं। जानकारी है कि वो अपने चडीगढ़ स्थित घर में आइसोलेट हो गए हैं।
बता दें कि 91 साल के मिल्खा सिंह भारत के फेमस एथलीट रहे हैं। अपने
पॉजिटिव आने की खबर खुद मिल्खा ने शेयर की। एक बातचीत के दौरान
उन्होंने बताया कि – हमारे कई जानने वाले सहयोगियों का टेस्ट पॉजिटिव
आया था इसीलिए हमने भी सेफ्टी के तौर पर टेस्ट करवाया। सभी की रिपोर्ट
आ चुकी हैं। परिवार के बाकी सदस्यों का टेस्ट नेगेटिव आया है बस मैं ही पॉजिटिव पाया गया हूं।
अपनी हेल्थ के बारे में मिल्खासिंह का कहना है कि –
मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं और अब तक तो मुझे ना बुखार आया है और ना ही खांसी की ही शिकायत है। मेरे डॉक्टर का कहना है कि मैं तीन से चार दिनों में बिल्कुल ठीक हो जाऊंगा। यहां तक कि मैंने तो कल जॉगिंग भी की। मुझे यकीन है जल्द ही वायरस से उबरूंगा।
मिल्खा सिंह के जीवन पर 'भाग मिल्खा भाग' नाम से फिल्म भी बन चुकी हैं, जिसमें मिल्खा सिंह का किरदार फरहान अख्तर ने निभाया था। इस फिल्म के लिए मिल्खा सिंह ने सिर्फ 1 रुपये प्रोड्यूसर से लिए थे, जो कि 1958 का छपा हुआ था। इस एक रुपये के नोट का भी अपना महत्व है। दरअसल. यही वो साल था जब मिल्खा सिंह ने कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड मेडल जीता था, जो कि स्वतंत्र भारत की पहली गोल्ड मेडल जीत थी। अप्रैल 2014 में 61वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में इस फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ मनोरंजक फिल्म का पुरस्कार मिला। इसके अतिरिक्त सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफी के लिए भी पुरस्कृत किया गया था।
मिल्खा सिंह ट्रैक एंड फील्ड स्प्रिंटर रहे हैं। अपने करियर में उन्होंने कई रिकॉर्ड बनाए और कई पदक जीते। मेलबर्न में 1956 ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया, रोम में 1960 के ओलंपिक और टोक्यो में 1964 के ओलंपिक में मिल्खा सिंह अपने शानदार प्रदर्शन के साथ दशकों तक भारत के सबसे महान ओलंपियन बने रहे।
20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) में एक सिख परिवार में जन्मे मिल्खा सिंह को खेल से बहुत लगाव था। विभाजन के बाद वह भारत भाग आ गए और भारतीय सेना में शामिल हो गए थे। सेना में रहते हुए ही उन्होंने अपने कौशल को और निखारा। एक क्रॉस-कंट्री दौड़ में 400 से अधिक सैनिकों के साथ दौड़ने के बाद छठे स्थान पर आने वाले मिल्खा सिंह को आगे की ट्रेनिंग के लिए चुना गया और यहीं से उनके प्रभावशाली करियर की नींव रखी गई।
1956 में मेलबर्न में आयोजित हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने पहली बार कोशिश की थी। भले ही उनका अनुभव अच्छा न रहा हो लेकिन ये टूर उनके लिए आगे चलकर फलदायक साबित हुआ। 200 मीटर और 400 मीटर की स्पर्धाओं में भाग लेने वाले अनुभवहीन मिल्खा सिंह की चैंपियन चार्ल्स जेनकिंस के साथ एक मुलाकात ने भविष्य के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा और ज्ञान दे दिया।
मिल्खा सिंह ने जल्द ही अपने ओलंपिक में निराशाजनक प्रदर्शन को पीछे छोड़ दिया।1958 में उन्होंने जबरदस्त एथलेटिक्स कौशल प्रदर्शित किया, जब उन्होंने कटक में नेशनल गेम्स ऑफ इंडिया में अपने 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए। मिल्खा सिंह ने राष्ट्रीय खेलों के अलावा, टोक्यो में आयोजित 1958 एशियाई खेलों में 200 मीटर और 400 मीटर की स्पर्धाओं में और 1958 के ब्रिटिश साम्राज्य और राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मी (440 गज की दूरी पर) में स्वर्ण पदक जीते हैं। उनकी अभूतपूर्व सफलता के कारण उन्हें उसी पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।