भारत की पहली नेजल वैक्सीन BBV154 को सेकेंड और थर्ड फेज के क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी मिल गई है। इस वैक्सीन को भारत बायोटेक और सेंट लूसिया की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी मिलकर बना रही हैं। ये दुनिया में अपनी तरह की सबसे अलग वैक्सीन है।
इस वैक्सीन के पहले फेज के ट्रायल इसी साल जनवरी में शुरू हुए थे, जो हाल ही में खत्म हुए हैं। इसमें 18 से 60 साल तक के हेल्थ वॉलंटियर्स शामिल थे। दूसरे और तीसरे फेज के ट्रायल के बाद ये वैक्सीन देश में उपलब्ध हो सकती है। ऐसा होता है तो ये देश की पहली नेजल वैक्सीन होगी।
जिस तरह मांसपेशियों में इंजेक्शन से लगाई जाने वाली वैक्सीन को इंट्रामस्कुलर वैक्सीन कहते हैं, उसी तरह नाक में कुछ बूंदें डालकर दी जाने वाली वैक्सीन को इंट्रानेजल वैक्सीन कहा जाता है। इसे इंजेक्शन से देने की जरूरत नहीं है और न ही ओरल वैक्सीन की तरह ये पिलाई जाती है। यह एक तरह से नेजल स्प्रे जैसी है।
वैसे भी कोरोना के हमारे शरीर में पहुंचने का सबसे अहम रास्ता नाक ही है। ऐसे में ये वैक्सीन कोरोना को उसी जगह रोक देती है जहां से ये हमारे शरीर में घुसता है। इसका फायदा ये होता है कि वायरस के खिलाफ ये जल्दी और सबसे प्रभावी असर करती है।
साइंस एंड टेक्नोलॉजी मिनिस्ट्री के मुताबिक पहले फेज के ट्रायल के नतीजे ठीक रहे हैं। किसी भी वॉलंटियर को वैक्सीन लगने के बाद कोई गंभीर साइडइफेक्ट नहीं हुआ। क्लिनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री के मुताबिक चार शहरों में 175 लोगों को यह नेजल वैक्सीन दी गई। इससे पहले प्री क्लिनिकल ट्रायल में भी वैक्सीन सेफ पाई गई थी, यानी लैबोरेटरी में चूहों और अन्य जानवरों पर यह बेहद सफल रही थी।
जानवरों पर हुए ट्रायल के दौरान इस वैक्सीन से काफी मात्रा में न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी बनी थी। इस नेजल वैक्सीन के डेवलपमेंट में डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (DBT) और बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (BIRAC) भी सपोर्ट कर रहे हैं।
इनमें से तीन वैक्सीन कोवीशील्ड, कोवैक्सिन और स्पुतनिक-वी लगाई जा रही हैं। मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन को भी मंजूरी मिल चुकी है। ये दोनों भी जल्द ही देश में उपलब्ध हो सकती हैं। अभी लगाई जा रही तीनों वैक्सीन डबल डोज वैक्सीन हैं। मॉडर्ना की वैक्सीन भी डबल डोज वैक्सीन है, जबकि जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन सिंगल डोज वैक्सीन है।
भारत बायोटेक की नेजल वैक्सीन की बात करें तो ये सिंगल डोज वैक्सीन होगी। देश में अब तक अप्रूव हुईं पांचों वैक्सीन इंट्रामस्कुलर वैक्सीन हैं। ये पहली नेजल वैक्सीन होगी। दुनियाभर में इस वक्त इस्तेमाल हो रही कोई भी वैक्सीन नेजल वैक्सीन नहीं है। अभी करीब 100 वैक्सीन्स का पूरी दुनिया में ट्रायल चल रहा है। इनमें से सिर्फ 8 नेजल वैक्सीन हैं।
भारत की बात करें तो पुणे की कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) और कोडाजेनिक्स, UK में ड्रग रेगुलेटर (मेडिसिन्स एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी या MHRA) भी नेजल वैक्सीन का ट्रायल कर रहे हैं। इस सिंगल-डोज इंट्रानेजल वैक्सीन को फेज-1 ट्रायल की मंजूरी जनवरी में मिली थी। अभी इसके नतीजे नहीं आए हैं।
कोडाजेनिक्स के मुताबिक COVI-VAC ने प्री-क्लिनिकल स्टडी में इफेक्टिवनेस दिखाई है। इन दोनों वैक्सीन के अलावा छह और इंट्रानेजल वैक्सीन के ट्रायल दुनिया में चल रहे हैं। सभी के ट्रायल अभी फेज-1 में ही हैं।
कोरोनावायरस समेत कई माइक्रोब्स (सूक्ष्म वायरस) म्युकोसा (गीला, चिपचिपा पदार्थ जो नाक, मुंह, फेफड़ों और पाचन तंत्र में होता है) के जरिए शरीर में जाते हैं। नेजल वैक्सीन सीधे म्युकोसा में ही इम्यून रिस्पॉन्स पैदा करती है।
यानी, नेजल वैक्सीन वहां लड़ने के लिए सैनिक खड़े करती है जहां से वायरस शरीर में घुसपैठ करता है। इस समय भारत में लग रही वैक्सीन के दो डोज दिए जा रहे हैं। दूसरे डोज के 14 दिन बाद वैक्सीनेट व्यक्ति सेफ माना जाता है। ऐसे में नेजल वैक्सीन 14 दिन में ही असर दिखाने लगती है।
इफेक्टिव नेजल डोज न केवल कोरोनावायरस से बचाएगी, बल्कि बीमारी फैलने से भी रोकेगी। मरीज में माइल्ड लक्षण भी नजर नहीं आएंगे। वायरस भी शरीर के अन्य अंगों को नुकसान नहीं पहुंचा सकेगा।
यह सिंगल डोज वैक्सीन है, इस वजह से ट्रैकिंग आसान है। इसके साइड इफेक्ट्स भी इंट्रामस्कुलर वैक्सीन के मुकाबले कम हैं। इसका एक और बड़ा फायदा यह है कि सुई और सीरिंज का कचरा भी कम होगा।