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भीख मांगना एक सामाजिक और आर्थिक मुद्दा है, अभिजात्य दृष्टिकोण नहीं अपना सकते – सुप्रीम कोर्ट

Vineet Choudhary

डेस्क न्यूज़- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भीख मांगना एक सामाजिक और आर्थिक मुद्दा है और गरीबी लोगों को भीख मांगने के लिए मजबूर करती है। यह कहते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने COVID-19 महामारी के दौरान सार्वजनिक स्थानों और सड़कों पर भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

लोग क्यों हैं भीख मांगने को मजबूर?

न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कुश कालरा द्वारा दायर याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि वह भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाने वाली याचिका पर विचार नहीं कर सकती। पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि लोग भीख क्यों मांगते हैं? गरीबी के कारण लोग भीख मांगने को मजबूर हैं।

अभिजात्य दृष्टिकोण नहीं अपनाएगा कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'जब गरीबी किसी को भीख मांगने के लिए मजबूर करती है, तो वह अभिजात्य दृष्टिकोण नहीं अपनाएगा। कोई भीख नहीं मांगना चाहेगा, गरीबी के कारण उन्हें ऐसा करना पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है, 'यह एक सामाजिक-आर्थिक समस्या है। यह सरकार की आर्थिक और सामाजिक नीति का एक हिस्सा है। हम यह नहीं कह सकते कि उन्हें (भिखारियों को) हमारी आंखों से दूर कर दिया जाए।'

केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस

पीठ ने कहा कि अगर हम इस मामले में नोटिस जारी करते हैं तो यह समझा जाएगा कि हम ऐसा करना चाहते हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भिखारियों के पुनर्वास और टीकाकरण की याचिकाकर्ता की मांग पर सरकार को नोटिस जारी किया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया है।

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