डेस्क न्यूज़- महाराष्ट्र के नागपुर निवासी 67 वर्षीय चंदन निमजे को एक माह पूर्व मेयर दयाशंकर तिवारी ने
'कोरोना योद्धा' के रूप में सम्मानित किया था, पिछले डेढ़ साल के दौरान उन्होंने करीब 1300 कोविड
मरीजों के अंतिम संस्कार में मदद की, जिनके परिजन मौत के बाद शव के पास नहीं आ रहे थे,
लेकिन दवा और उचित इलाज के अभाव में वृद्ध की खुद मौत हो गई।
केंद्र सरकार में सचिव स्तर के पद से सेवानिवृत्त हुए निमजे स्वयंसेवकों के एक समूह से जुड़े थे
जो कोरोना के कारण जान गंवाने वालों के अंतिम संस्कार में मदद कर रहे थे,
हालांकि इस बीच वह खुद भी संक्रमित हो गए, निमजे को किसी सरकारी अस्पताल में बेड नहीं मिला
और न ही किसी ने मदद की, उन्हें एक निजी अस्पताल में ज्यादा कीमत पर बिस्तर मिला लेकिन 26 मई को उनकी मौत हो गई।
पिछले डेढ़ साल से लगातार कोरोना मरीजों की मदद कर रहे निमजे जब खुद कोरोना की चपेट में आए
तो परिवार को अस्पताल में दवाओं के साथ-साथ बेड के लिए भी जूझना पड़ा, टोसिलिजुमेब इंजेक्शन की
कमी अंततः उनकी मृत्यु का कारण थी, निमजे के इलाज में काफी पैसा खर्च हुआ, दोनों बेटों की नौकरी
भी लॉकडाउन में चली गई है, परिवार पर आर्थिक संकट आ गया।
निमजे के साथ काम करने वाले अरविंद रतौदी ने कहा, हमने राजनेताओं से लेकर अधिकारियों से
आर्थिक मदद के साथ-साथ बेड और दवा की भी अपील की, लेकिन कोई मदद नहीं मिली,
एक लाख रुपये अस्पताल में जमा कराने को कहा, फिर डिजिटल पेमेंट लेते हुए एक अस्पताल में भर्ती कराया,
इसके बाद मुझे 45 हजार का टोसिलिजुमेब इंजेक्शन लाने को कहा,
जो काफी मशक्कत के बाद एक लाख 45 हजार में ब्लैक में मिल सका।
'दादा' नाम से मशहूर चंदन निमजे के परिवार के मुताबिक कोविड वैक्सीन की पहली खुराक लेने के
बाद उनकी तबीयत बिगड़ गई, पत्नी और बच्चों सहित पूरे परिवार को बुखार हो गया और संक्रमण के लक्षण दिखने लगे,
पांचों लोग पॉजिटिव पाए गए, बाद में परिवार ठीक हो गया, लेकिन पिछले अप्रैल में निमजे की तबीयत बिगड़ने लगी।