Coronavirus

ब्लैक फंगस मरीजों की रुला देने वाली दर्द भरी कहानियां, 6 महीने बेड पर रहा, 13 सर्जरी हुई, खर्च किए 1.48 करोड़ रुपये, फिर भी निकालनी पड़ी आंख

Vineet Choudhary

डेस्क न्यूज़- कोरोना संक्रमण के बाद ब्लैक फंगस ने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है। कई लोग ऐसे होते हैं जो ब्लैक फंगस या म्यूकोमाइकोसिस संक्रमण के कारण असहनीय दर्द से पीड़ित होते हैं। ऐसे लोगों के दिल और दिमाग पर इसका असर साफ दिखाई देता है। ब्लैक फंगस के संक्रमण से अगर किसी की आंख चली गई तो किसी का जबड़ा निकालना पड़ा। ऐसे कई लोग हैं जो आंख निकालने के बाद कृत्रिम आंखों की प्रतीक्षा कर रहे हैं और जबड़े को हटाने के बाद रिकन्स्ट्रक्टिव सर्जरी का इंतजार कर रहे हैं। लोगों के दर्द की कहानी ऐसी है जिसे सुनकर आपकी आंखों में आंसू आ जाएंगे। ब्लैक फंगस मरीजों की कहानियां ।

13 बार हुई सर्जरी में खर्च हुए 1.48 करोड़ रुपये, निकालनी पड़ी एक आंख

डॉक्टरों का कहना है कि 46 साल के नवीन पाल शायद विदर्भ या मध्य भारत में ब्लैक फंगस संक्रमण के पहले मरीज थे। पिछले साल सितंबर में नवीन को कोरोना संक्रमण हुआ था। कुछ दिनों बाद उन्हें आंखों और दांतों में समस्या होने लगी। डॉक्टरों ने बताया कि वह ब्लैक फंगस से संक्रमित थे। इसके बाद उनका 6 महीने तक अस्पताल में इलाज चला। इस दौरान 13 सर्जरी की गईं। संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए आखिरकार उनकी एक आंख निकालनी पड़ी।

इस दौरान नवीन पॉल के इलाज पर 1.48 करोड़ रुपये खर्च हुए। इसमें से एक करोड़ रुपये रेलवे ने खर्च किए। पॉल की पत्नी रेलवे में काम करती हैं। बाकि का 48 लाख उन्हें खुद जुटाना पड़ा। पॉल इस बात से खुश हैं कि आखिरकार उनकी जान बच गई। उन्होंने बताया कि ब्लैक फंगस ने उन्हें कभी ना भूलने वाला जख्म दे दिया।

एक के बाद एक निकालनी पड़ी दोनों आंखे

ब्लैक फंगस के संक्रमण से यवतमाल निवासी नीलेश बेंडे की दोनों आंखें चली गईं। उन्हें इसी साल मार्च में कोरोना संक्रमण हुआ था। कुछ महीने बाद जब उन्होंने दोबारा कोरोना टेस्ट करवाया तो उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव निकली। उन्हें यवतमाल के कोविड केयर सेंटर में रखा गया था, जहां उनकी आंखों की रोशनी चली गई। इलाज के दौरान उनकी एक आंख निकालनी पड़ी। 10 दिन बाद डॉक्टरों ने कहा कि उसकी दूसरी आंख भी निकालनी पड़ेगी।

पूरी तरह टूट चुका था

उनकी पत्नी वैशाली ने बताया कि उनके पति की आंखों की रोशनी जाने से वह पूरी तरह टूट चुके थे। उसे दिलासा देना बहुत मुश्किल हो रहा था। नीलेश एक निजी सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता था। बीमारी के बाद उनकी नौकरी भी चली गई। यहां तक ​​कि उनका पिछले महीने का वेतन भी नहीं मिला। नीलेश ने कहा कि अच्छा तो मैं मर ही जाता। इस पर उनकी पत्नी ने कहा कि परिवार को आपकी जरूरत है।

जबड़े हटाने के बाद बोल भी नही सकते

इसी तरह अकोला के अजय शिम्पीकर और सुबोध कासुलकर दोनों को ब्लैक फंसग के संक्रमण के बाद सर्जरी करानी पड़ी थी। डॉ. देहने ने संक्रमण के बाद उनका जबड़ा हटा दिया। अब इन दोनों को अपने नॉर्मल लुक के लिए रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी करानी होगी। कासुलकर का कहना है कि सर्जरी के बाद उन्हें बोलने में दिक्कत होती है। वह ठीक से बोल नहीं पाता। सुबोध कासुलकर को पिछले साल अक्टूबर में कोरोना संक्रमण हुआ था। उनका शुगर लेवल 500 तक पहुंच गया था। उन्होंने आंखों को बचाने के लिए डॉक्टरों का शुक्रिया अदा किया। वहीं, अजय के परिवार ने उसके इलाज पर 20 लाख रुपये खर्च किए।

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