कोरोना की दहशत यूं तो देश भर में लोगो को मानसिक तौर पर बीमार कर रही है मगर उत्तर प्रदेश के कानपुर से डिप्रेशन में किये एक ऐसी घटना की खबर आयी है जो इंसान को झकझोर कर रख देगी। ये खबर इसलिए भी पढ़ना जरुरी है क्योकि आज भी भारत मे डिप्रेशन (अवसाद) को बीमारी नहीं समझा जाता। जिस वजह से इंसान ऐसी मानसिक स्थिति तक पहुंच जाता है जिसका अंजाम इतना घातक होता है जितना इस घटना में देखने को मिला
उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक डॉक्टर ने अपने पूरे परिवार की बेरहमी से जान ले ली । यह घटना शुक्रवार शाम की है। डॉक्टर का नाम सुशील कुमार है। पुलिस के अनुसार घर में पत्नी, बेटे और बेटी की लाश मिली है । डॉक्टर ने शव के पास एक नोट भी छोड़ा है। जिसमे लिखा था कि कोविड के नए वेरियंट ओमीक्रॉन के आने के बाद अब और लाशों की गिनती नहीं की जानी है। यह सभी को मार डालेगा। डॉक्टर ने यह भी लिखा कि वो कोरोना से जुड़े हुए डिप्रेशन के शिकार हैं ।
घटना के बाद से डॉक्टर फरार चल रहा है । पुलिस आरोपी डॉक्टर की तलाश में जुटी है मगर अभी तक उसका पता पुलिस को नहीं चला है। घटना स्थल से मिले नोट की वजह से कहा जा रहा है कि उन्होंने यह कदम कोरोना के डिप्रेशन और ओमिक्रॉन की डर की वजह से उठाया है। हालांकि उनके जुड़वां भाई सुनील के मुताबिक डॉ. सुशील कुछ समय से डिप्रेशन के शिकार थे ।
डॉ सुशील कानपुर के इंद्रनगर स्थित डिवाइनिटी अपार्टमेंट में रहते थे। पत्नी चंद्रप्रभा की उम्र 48 साल थी। बेटा शिखर (18 वर्ष) और खुशी (16 वर्ष)। पुलिस डिप्रेशन के अलावा हत्या के अन्य एंगल से भी जांच कर रही है।
शुक्रवार शाम 5.32 बजे डॉ. सुशील कुमार ने अपने भाई सुनील को मैसेज किया। इसमें लिखा है कि पुलिस को सूचना दो, मैंने डिप्रेशन में हत्या की है। मैसेज पढ़कर सुनील अपने घर पहुंचा। दरवाजा अंदर से बंद था। दरवाजा टूटा हुआ था। जब वे अंदर पहुंचे तो उन्हें चंद्रप्रभा, शिखर और खुशी के शव मिले। पुलिस के मुताबिक डॉक्टर ने पहले पत्नी के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया. डॉ सुशील और सुनील जुड़वां भाई हैं
परिवार की हत्या के आरोपी डॉक्टर ने लिखा, 'अब कोविड नहीं, यह कोविड ओमीक्रॉन अब सबको मार देगा। अब शवों की गिनती नहीं होगी। अपनी लापरवाही की वजह से मैं अपने करियर के उस मुकाम पर फंस गया हूं, जहां से निकलना नामुमकिन है। मेरा कोई भविष्य नहीं है। होश में मैं अपने परिवार को नष्ट करके खुद को नष्ट कर रहा हूं। इसके लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है। मैं असाध्य रोग से पीड़ित हूँ। भविष्य के लिए कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। इसके अलावा मेरे पास और कोई चारा नहीं है। मैं अपने परिवार को संकट में नहीं छोड़ सकता। मैं सबको मुक्ति पथ पर छोड़ रहा हूँ। मैं एक ही क्षण में सभी संकटों को दूर कर रहा हूं। मैं अपने पीछे किसी को मुसीबत में नहीं देख सकता। मेरी आत्मा मुझे कभी माफ नहीं करेगी। असाध्य नेत्र रोग के कारण मुझे ऐसा कदम उठाना पड़ रहा है। अध्यापन मेरा पेशा है। जब मेरी आंखें नहीं होंगी तो मैं क्या करूंगा? अलविदा..
फरार डॉक्टर सुशील कुमार रामा मेडिकल कॉलेज में फॉरेंसिक विभाग के विभागाध्यक्ष (एचओडी) के पद पर तैनात थे। वह कानपुर मेडिकल कॉलेज के पुरा छात्र रह चुके हैं। 15 साल पहले उन्होंने जीएसवीएम से एमबीबीएस किया था। मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डीएन त्रिपाठी ने बताया कि सुशील से उनकी मुलाकात दो दिन पहले हुई थी। बातचीत के दौरान ऐसा नहीं लगा कि वह मानसिक तनाव में है।