अपराध

ठगी का कारोबार: अनपढ़ बन रहे शातिर ठग, गैंग के मुखिया देते हैं ट्रेनिंग, सेना के अधिकारी बनकर करते हैं ठगी

भरतपुर का मेवात इलाका ठगों का गढ़ माना जाता है। यहां टटलूबाज यानी जालसाजों की नई नस्ल तैयार की जा रही है। अनपढ़ होते हुए भी ये लोग अधिक चतुर और चालाक होते हैं। गिरोह के नेता इन नई नस्लों का निर्माण कर रहे हैं। ये ठग मोबाइल से नई तकनीक का पता लगाते हैं और चंद सेकेंड में लाखों रुपए ठग लेते हैं

Vineet Choudhary

डेस्क न्यूज़- भरतपुर का मेवात इलाका ठगों का गढ़ माना जाता है। यहां टटलूबाज यानी जालसाजों की नई नस्ल तैयार की जा रही है। अनपढ़ होते हुए भी ये लोग अधिक चतुर और चालाक होते हैं। गिरोह के नेता इन नई नस्लों का निर्माण कर रहे हैं। ये ठग मोबाइल से नई तकनीक का पता लगाते हैं और चंद सेकेंड में लाखों रुपए ठग लेते हैं। महंगा सामान मोबाइल पर सस्ते में बेचें। सेना का सिपाही होने का नाटक कर लोगों का विश्वास जीतना। इन ठगों के लिए यह बहुत आसान हो गया है। फिर उनके लिए महंगी कारों को सस्ते दामों पर बेचने के बहाने लूटना आम बात है। गिरोह के नेता टटलूबाज तैयार करने की पूरी ट्रेनिंग देते हैं। इसके लिए पहले अंग्रेजी बोलने का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद जिस क्षेत्र में अधिकारी बनकर ठगी करनी हो। वे उसी के अनुसार प्रशिक्षण देते हैं।

Photo | Dainik Bhaskar

पहले होती है ट्रेनिंग

भरतपुर के आसपास के गाई गांव को टटलूबाजी का गढ़ माना जाता है। ठगी करने से पहले ठग को बहुत कुछ सीखना पड़ता है। मोबाइल से विभिन्न राज्यों की भाषा सीखने का प्रशिक्षण दिया जाता है। मेवात क्षेत्र के कई ऐसे टटलूबाज हैं जो गुजराती, बिहारी और यहां तक कि अंग्रेजी भी जानते हैं। जो भाषा नहीं बोल पाते वे मोबाइल पर उन्हें कंवर्ट कर बोलते हैं। अपनी बातों में फंसा लेते हैं।

क्लासीफाइड साइट से शुरू होता है ठगी का खेल

इसके बाद शुरू होता है फंसाने का खेल। एक टटलुबाज़ ने बताया कि कैसे क्लासीफाइड साइट में फर्जी विज्ञापन देकर लाखों रुपये ठगे जाते हैं। किसी भी सामान को बेचने के लिए सबसे पहले सोशल साइट पर एक विज्ञापन डाला जाता है। इसमें टटलूबाज का नंबर है। यह विज्ञापन किसी एक शहर के लिए है। जैसे ही कोई व्यक्ति उनसे संपर्क करता है, टटलूबाज़ खुद को उसी शहर के आसपास होने की बात कहता है। ततलूबाज के पास उस शहर के फर्जी आईडी कार्ड भी हैं। जिसे दिखाकर फंसा लेता है। कोरोना या कोई और बहाना देकर कहा जाता है कि वाहन या सामान की होम डिलीवरी होगी। इसके लिए अपने दस्तावेज ऑनलाइन भेजें। जैसे ही वह अपने दस्तावेज भेजता है, खरीदार यानी पीड़ित से डिलीवरी चार्ज मांगा जाता है। इसके बाद अलग से बीमा राशि ली जाती है।

बीमा राशि वाहन खरीदने वाले व्यक्ति से 9 हजार 999 या 5 हजार 999 के अंकों में ली जाती है। जब पीड़ित बीमा राशि टटलूबाज को भेजता है, तो उसे झांसा दिया जाता है। अलग-अलग चार्ज देकर रुपए ठगे जाते हैं। जैसा ठग बोलता है, वैसा ही पीड़ित भी करता है। जब कार भेजने की बात आती है, तो ठग उससे कहता है कि बहुत देर हो चुकी है। कार 11 हजार रुपये जमा करने पर मिलेगी। ऐसा करते हुए वे उससे 1 लाख रुपये तक की ठगी करते हैं।

सेना के अधिकारी बनकर करते हैं ठगी

ज्यादातर फर्जीवाड़े इन्हीं क्लासिफाइड साइट पर सेना के अधिकारी या जवानों के रूप में प्रस्तुत करके किए जाते हैं। इसके लिए किसी भी आर्मी अफसर की फोटो गूगल से ली जाती है। उसके नाम से फर्जी आईडी कार्ड बनवाएं। माल के खरीदार का नाटक करता है कि वह सेना में एक अधिकारी है। स्थानांतरण के कारण माल बेचना चाहते हैं। फर्जी आईडी कार्ड देखकर हर कोई फंस जाता है। धोखाधड़ी का शिकार हो जाता है।

Diabetes से हो सकता है अंधापन, इस बात का रखें ख्याल

बीफ या एनिमल फैट का करते है सेवन, तो सकती है यह गंभीर बीमारियां

Jammu & Kashmir Assembly Elections 2024: कश्मीर में संपन्न हुआ मतदान, 59 प्रतिशत पड़े वोट

Vastu के अनुसार लगाएं शीशा, चमक जाएगी किस्मत

Tiger Parks: भारत के 8 फेमस पार्क,जहां आप कर सकते है टाइगर का दीदार