डेस्क न्यूज़- उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में जिला प्रशासन ने रामसनेहीघाट परिसर में जेसीबी से मलबा हटाने पर सवाल उठाया है और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और समाजवादी पार्टी ने प्रशासन की कार्रवाई को झूठा करार दिया है। और सवाल खड़े किए हैं। दावा किया जा रहा है कि यहां 100 साल पुरानी एक मस्जिद बनी थी, जिसे लॉकडाउन में प्रशासन ने भारी बल से तोड़कर मलबा नदी में फेंक दिया। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दावा किया है कि दशकों से तहसील वाली मस्जिद के नाम दर्ज हैं। वहीं समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने विवादित स्थल को हटाने की घटना को द्वेषपूर्ण बताते हुए हाई कोर्ट के सिटिंग जज से जांच कर पुनर्निर्माण कराने की मांग की है। बाराबंकी में तोड़ी मस्जिद ।
दरअसल, बिहार और बंगाल में रहने वाले कुछ
संदिग्धों से रामस्नेहीघाट तहसील परिसर में
एसडीएम दिव्यांशु पटेल के सरकारी आवास के सामने
बने तीन कमरों में पूछताछ की गई और पहचान पत्र
मांगने पर मौके से फरार हो गए। 18 मार्च को दिव्यांशु पटेल ने तहसील में धार्मिक स्थल
के गेट को हटवा सीमा बनाकर कब्जे में ले लिया था।
धार्मिक स्थल वासियों को तहसील प्रशासन की ओर से नोटिस मिलने के बाद पक्षकार उच्च न्यायालय भी गए। रिट नंबर-7948/21 में हाईकोर्ट ने मस्जिद गरीब नवाज अल मरूफ के खसरा कागज और सुन्नी वक्फ बोर्ड में पंजीकृत होने का सबूत 15 दिनों के भीतर प्रशासन को देने का आदेश दिया था। इस बीच प्रशासन ने विवादित स्थल में प्रवेश पर रोक लगा दी थी। इस पर काफी हंगामे के बाद 19 मार्च को रामस्नेहीघाट कोतवाली पुलिस ने 150 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर 39 लोगों को जेल भेज दिया था। इसके बाद 17 मई को प्रशासन ने अपनी निगरानी में विवादित स्थल को धारा 133 के तहत ध्वस्त कर मलबा हटा दिया।
बाराबंकी के जिलाधिकारी आदर्श सिंह का कहना है कि पक्षकारों को सूचना के लिए 15 मार्च को नोटिस दिया गया था। नोटिस मिलते ही अवैध आवासीय परिसर में रह रहे लोग फरार हो गए। जिसके चलते 18 मार्च को तहसील टीम ने सुरक्षा संभाली थी। उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में दायर रिट संख्या 7948/21 में पक्षकारों की रिपोर्ट का निस्तारण करने पर पता चला कि तहसील परिसर में आवासीय परिसर अवैध है। जिसका न्यायिक प्रक्रिया के तहत 17 मई को अनुपालन किया गया।
समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने एक बयान जारी कर कहा है कि 100 साल पुरानी मस्जिद को तोड़ना निंदनीय घटना है। प्रशासन द्वारा किया गया यह कार्य भारतीय संविधान की सामाजिक समरसता की अवधारणा के विरुद्ध है। यूपी में चुनाव नजदीक आते ही बीजेपी सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने में सक्रिय हो गई है। अखिलेश यादव ने इस मुद्दे पर सरकार और प्रशासन को घेरने के लिए सपा की ओर से 9 सदस्यीय टीम का गठन किया है। इसमें मुख्य रूप से पूर्व कैबिनेट मंत्री अरविंद सिंह गोप, राकेश वर्मा, पूर्व मंत्री फरीद महफूज किदवई, पूर्व सांसद राम सागर रावत शामिल हैं, जो बाराबंकी भी जाएंगे और मामले पर लगातार नजर रखेंगे।
उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने स्टे ऑर्डर के बावजूद प्रशासन की कार्रवाई को अवैध बताते इसे हाई कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है।