Defence

रेजांगला दिवस विशेष: रणबांकुरो के शहादत की अमर गाथा, गोला-बारूद खत्म हुआ तो दुश्मनों पर बूटों से किया वार

'ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का' देश भक्ति से परिपूर्ण ये गीत तो आपने सुना ही होगा। जब कभी भी यह गीत बजता है तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते है।

Ishika Jain

'ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का' देश भक्ति से परिपूर्ण ये गीत तो आपने सुना ही होगा। जब कभी भी यह गीत बजता है तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते है। ये गीत हमें हमारे वीर जवानों की याद दिलाता है। आज के दिन यानि 18 नवंबर का दिन भूले नहीं भुलाया जा सकता। आज ही दिन 1962 में भारतीय जवानों ने रेजांगला की शौर्य गाथा लिखी थी और आज इस ऐतिहासिक दिन को 59 साल पुरे हो गए है।

अहिरवाल के वीरों ने लेह-लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर ऐसी अमर कहानी लिखी, जो आज भी युवाओं के मन को देशभक्ति की भावना से झिझकोर देती है। लद्दाख की बर्फीली चोटी पर स्थित रेजांगला पोस्ट हुए इस युद्ध हरियाणा के रेवाड़ी में रहने वाले दो भाई एक ही दिन बंकर में शहीद हो गए थे। इस युद्ध की गाथा विश्व के युद्ध इतिहास में अद्वितीय है।

जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली

'जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली, जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली..' सुरों की कोकिला लता मंगेशकर द्वारा गाया गया यह देशभक्ति गीत रेजांगला के शहिद रणबांकुरों को ही समर्पित है। इस गीत की हर एक पंक्ति रेवाड़ी और अहिरवाल क्षेत्र के उन रणबांकुरो की वीर गाथा बताती है, जिन्होंने 1962 में दिवाली के दिन हुए रेजागंला युद्ध के दौरान चीन के साथ लड़ाई लड़ते हुए सर्वोच्च शिखर पर शहादत की अमर गाथा लिखी थी। बता दें की इस युद्ध में एक ही कंपनी के कुल 114 जवान शहीद हुए थे। रेवाड़ी में रेजांगला शौर्य स्मारक पर इन वीरों के नाम सम्मान के साथ अंकित हैं।

124 सैनिकों ने 1300 से अधिक चीनी सैनिकों से किया था मुकाबला

18 नवंबर 1962 को लेह-लद्दाख की दुर्गम और बर्फीली पहाड़ियों पर, 13 कुमाऊं की चार्ली कंपनी के मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में तीन कमीशन अधिकारियों सहित 124 सैनिकों ने 1300 से अधिक चीनियों से लड़ाई की थी। युद्ध में चार्ली कंपनी के 124 सैनिकों में से 114 शहीद हो गए थे। यह लड़ाई इतिहास के पन्नों पर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मैदानी और रेगिस्तानी इलाकों के वीर बर्फ से ढके पहाड़ों पर लड़ने वाले चीनियों से भिड़ गए। वीरों के पराक्रम और साहस को देखकर चीनी सैनिक भी झुक गए। उन्होंने युद्ध स्थल पर एक प्लास्टिक की पट्टी पर 'ब्रेव' लिखकर, सम्मानपूर्वक इन सैनिकों के शवों के पास रखा और सम्मान के निशान के रूप में जमीन पर संगीन गाड़कर उस पर टोपी लटकाकर चले गए थे।

गोला – बारूद खत्म होने के बाद भी लड़ते रहे जवान

इतिहास गवाह है कि अहिरवाल के वीरों की यह टुकड़ी गोला-बारूद खत्म होने के बाद भी युद्ध के मैदान से नहीं हटी और चीनी सैनिकों से संगीनों और उनके बूटों की मदद से लड़ती रही। इसका प्रमाण युद्ध की समाप्ति के तीन महीने बाद बर्फ के पिघलने में मिला था, जब बर्फ में दबे कुछ सैनिकों के शव युद्ध की स्थिति में मिले थे। शहीद जवानों के हाथ में ग्रेनेड और टूटे हथियार थे।

Image Credit: Dainik Bhaskar

एक ही बंकर में शहीद हुए दो सगे भाई

युद्ध में रेवाड़ी जिले के दो सगे भाई नायक सिंह राम और सिपाही कंवर सिंह यादव का भी उल्लेख है, जो एक ही बंकर में एक साथ शहीद हो गए थे। तीन महीने बाद जब उनके और 96 अन्य शवों को उसी इलाके के जवान हरिसिंह ने मुखाग्नि दी तो उनका दिल कांप उठा। वह भी मुखाग्नि देने के बाद वहीं गिर पड़े थे। रेजांगला युद्ध ऐसे कई योद्धाओं की वीरता की कहानी है। चुशुल (लद्दाख) की हवाई पट्टी पर बने विशाल द्वार पर वीर अहीर रेजंगला की कहानी भी लिखी हुई है। आज भी रेजांगला कंपनी के नाम से जानी जाने वाली चार्ली कंपनी में अहिरवाल क्षेत्र के जवान शामिल हैं।

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नया स्मारक बनाया गया, राजनाथ सिंह करेंगे उद्घाटन

रेजंगला दिवस पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह लेह पहुंचे हैं। उन्होंने यहां 1962 के युद्ध में हिस्सा लेने वाले सेना के जवानों को श्रद्धांजलि दी। साथ ही उन्होंने इन शहीदों की याद में बने युद्ध स्मारक का भी उद्घाटन भी किया।

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