न्यूज – जीडीपी को मापने का अंतरराष्ट्रीय मानक बुक सिस्टम ऑफ नेशनल एकाउंट्स (1993) में तय किया गया है, जिसे SNA93 कहा जाता है, इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), यूरोपीय संघ, आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD), संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड बैंक के प्रतिनिधियों ने तैयार किया है, भारत में जीडीपी की गणना तिमाही-दर-तिमाही होती है।
भारत में कृषि, उद्योग और सेवा तीन अहम हिस्से हैं, जिनके आधार पर जीडीपी तय की जाती है. इसके लिए देश में जितना भी प्रोडक्शन होता है, जितना भी व्यक्तिगत उपभोग होता है, व्यवसाय में जितना निवेश होता है और सरकार देश के अंदर जितने पैसे खर्च करती है उसे जोड़ दिया जाता है, इसके अलावा कुल निर्यात (विदेश के लिए जो चीजें बेची गईं है) में से कुल आयात (विदेश से जो चीजें अपने देश के लिए मंगाई गई हैं) को घटा दिया जाता है, जो आंकड़ा सामने आता है, उसे भी ऊपर किए गए खर्च में जोड़ दिया जाता है, यही हमारे देश की जीडीपी होता है।
जब जीडीपी में राष्ट्रीय जनसंख्या से भाग दिया जाता है तो प्रति व्यक्ति जीडीपी निकलती है, सबसे पहले तय होता है बेस ईयर, यानी आधार वर्ष. एक आधार वर्ष में देश का जो उत्पादन था, वो इस साल की तुलना में कितना घटा-बढ़ा है? इस घटाव-बढ़ाव का जो रेट होता है, उसे ही जीडीपी कहते हैं।
जीडीपी का आंकलन देश की सीमाओं के अंदर होता है, यानी गणना उसी आंकड़े पर होगी, जिसका उत्पादन अपने देश में हुआ हो, इसमें सेवाएं भी शामिल हैं. मतलब बाहर से आयातित चीजों का जीडीपी में कोई बड़ा हाथ नहीं है।
जीडीपी रेट में गिरावट का सबसे ज्यादा असर गरीब लोगों पर पड़ता है, भारत मे आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा है, इसलिए आर्थिक वृद्धि दर घटने का ज्यादा असर गरीब तबके पर पड़ता है, इसकी वजह यह है कि लोगों की औसत आय घट जाती है. नई नौकरियां पैदा होने की रफ्तार घट जाती है, वित्त वर्ष 2018-19 में प्रति व्यक्ति मासिक आय 10,534 रुपये थी, सालाना 5 फीसदी जीडीपी ग्रोथ का मतलब है कि वित्त वर्ष 2019-20 में प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 526 रुपये बढ़ेगी।