चुरू के रहने वाले बलकेश अब इसरो में रॉकेट डिजाइन करेंगे। बलकेश भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में वैज्ञानिक परीक्षा के लिए उपस्थित हुए थे। वह देश में 44वें स्थान पर थे। बालकेश आने वाले कुछ दिनों में इसरो के साथ रॉकेट डिजाइनिंग प्रोजेक्ट पर काम करेंगे।
उनका यहां तक का सफर बेहद दिलचस्प रहा है। बलकेश के पिता एक ट्रक ड्राइवर थे। इस दौरान जब भी उनके पिता ट्रक के इंजन में छोटी-मोटी खराबी को ठीक करते तो वह उसे देखते थे। इस बीच, बलकेश इंजन को समझने की कोशिश करने लगे और उनकी इसमें रूचि बढ़ने लगी। बलकेश का कहना है की कि धीरे-धीरे उन्हें समझ में आया कि इतना बड़ा ट्रक छोटे इंजन के दम पर कैसे चलता है। फिर स्कूल और कॉलेज में इनोवेटिव साइंस इवेंट्स में हिस्सा लेने का मौका मिला। तब से मैंने मन बना लिया है कि मुझे वैज्ञानिक बनना है। इसके बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में साइंटिस्ट का एग्जाम दिया, जिसका रिजल्ट बीते दिनों आया है।
बलकेश बताते है कि पिता बीरबल सिंह जब घर से निकल जाते थे, तो उन्हें नहीं पता था कि वह कब लौटेंगे। उन्हें कई दिनों तक ट्रक चलाना पड़ता था। मां खेत में 30 बीघा जमीन पर खेती करती थी। सुबह-शाम घर का काम करने के साथ-साथ दोपहर में खेत में काम करना भी बहुत मुश्किल होता था। यह सब हमारे लिए माता-पिता ही कर रहे थे। हमने पहले राजगढ़ में पढ़ाई की, फिर हमें तारानगर भेज दिया। तो कुछ बनना हमारी जिम्मेदारी थी। मेरा भाई एक इंजीनियर है और अब मैं एक वैज्ञानिक बन गया हूँ।
ऐसा नहीं है कि बलकेश को पहले ही सफलता मिल गई। इस उपलब्धि के लिए उन्होंने कई वर्षों तक कड़ी मेहनत की है। इसरो की एक ही परीक्षा में दो बार फेल, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। कमियों को दूर करते हुए उन्होंने तीसरी बार परीक्षा दी। 5 साल तक लगातार एक कमरे में पढ़ाई करते हुए उन्हें सफलता मिली। बलकेश ने 5 बार प्रयास करने के बाद गेट परीक्षा भी पास की है। इसमें उनके 98 प्रतिशत तक बने ।
बलकेश ने बताया कि इसरो देश का सबसे बड़ा अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र है। अंतरिक्ष में जाने वाले अंतरिक्ष यान की इंजीनियरिंग अलग है। रॉकेट के किस हिस्से से कितना ईंधन देने पर रॉकेट अंतरिक्ष तक पहुंच सकता है, रॉकेट का वजन सबसे कम हो और गति अधिकतम हो, रॉकेट का कौन सा हिस्सा कब काम करेगा? यह सब वैज्ञानिकों द्वारा तय किया जाता है। यह देश की प्रतिष्ठा से जुड़ी संस्था है, इसलिए वैज्ञानिक का चयन करने के लिए देशभर में सिविल सेवा जैसी परीक्षा होती है। बलकेश कहते है की, 'कई वर्षों की कड़ी मेहनत का नतीजा है कि मैं न केवल इसमें चयनित हुआ बल्कि पूरे देश में 44वीं रैंक हासिल किया।
बीटेक कर चुके युवा साइंटिस्ट के लिए ISRO और BARC (भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर) की परीक्षा दे सकते हैं। इस परीक्षा के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। एक बार चुने जाने के बाद इन दोनों केंद्रों में काम करने का मौका मिलता है। यह भी देश की सेवा का एक माध्यम है। इससे पहले बलकेश को जयपुर की एक निजी कंपनी में इंजीनियर की नौकरी भी मिली थी। पैकेज भी अच्छा था, लेकिन उन्होंने छोड़ दिया।
बलकेश बताते हैं कि इसरो में वैज्ञानिक बनना आसान नहीं है। इसके लिए इसरो ने अपनी खुद की भर्ती एजेंसी बनाई है। इसमें भाग लेने के लिए हर साल परीक्षाएं होती हैं। एक पद के लिए 10 साक्षात्कार हैं। 2019 में करीब 134 पदों के लिए परीक्षा हुई थी। जिसमे 1300 से अधिक छात्रों ने परीक्षा दी। इसमें उन्हें 44वां रैंक मिला है। नवंबर के अंत तक इनकी ज्वाइनिंग हो जाएगी। फिर सबसे पहले इसरो प्रशिक्षण देगा। इसके बाद उन्हें एक प्रोजेक्ट से जोड़ा जाएगा।