<div class="paragraphs"><p>(एसपी सिंह बघेल)</p></div>

(एसपी सिंह बघेल)

 

Photo | ABP

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UP Election Karhal: करहल में अखिलेश यादव के सामने BJP ने एसपी सिंह बघेल को उतारा, कभी थे मुलायम सिंह के PSO

ChandraVeer Singh

भाजपा ने अखिलेश यादव के खिलाफ करहल से केंद्रीय मंत्री और आगरा के सांसद एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतारा है। रोचक बात यह है कि बघेल को देश के पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव के पीएसओ के तौर पर तैनात किया गया था। बता दें कि इससे पहले सोमवार को ही अखिलेश यादव ने करहल से नामांकन दाखिल किया था।

पहले अपर्णा यादव की थी अटकलें, लेकिन बघेल से बीजेपी ने चौंकाया
पहले ऐसे संकेत थे कि अपर्णा यादव, जो हाल ही में पार्टी में शामिल हुई थीं, को अखिलेश के खिलाफ मैदान में उतारा जा सकता है। लेकिन बघेल आज अचानक और चुपचाप फॉर्म भरने पहुंचे। कांग्रेस ने ज्ञानवती यादव को और बसपा ने कुलदीप नारायण को मैदान में उतारा है।
अखिलेश ने कहा था‚ यहां बीजेपी किसी को भी उतारे, उसे हार का मुंह देखना पड़ेगा
अखिलेश यादव ने आज नामांकन दाखिल करने के बाद कहा था कि करहल से जो कोई भी बीजेपी से यहां मैदान में उतारा जाएगा उसे हार का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में बीजेपी के इस पिछड़े कार्ड का दांव सपा प्रमुख को हैरान कर सकता है। एसपी सिंह बघेल नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्रीय कानून राज्य मंत्री हैं।
करहली में जातीय समीकरण क्या कहता है?
करहल विधानसभा क्षेत्र में करीब 3 लाख 71 हजार मतदाता रजिस्टर्ड हैं। इसमें यादव वोटरों की संख्या करीब 1 लाख 44 हजार है। यानी कुल मतदाताओं का 38 फीसदी वोट यादवों का ही है। सपा की पैठ का अंदाजा इस तरह से लगाया जा सकता है कि उसने पहले चुनाव में ही 5 में से 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। मैनपुरी, करहल और किशनी सीटों पर यादव वोटर ज्यादा हैं, जबकि क्षत्रिय वोटर दूसरे नंबर पर हैं। भोगांव में लोधी वोटर पहले और यादव दूसरे नंबर पर हैं।
करहल सीट का चुनावी ऐतिहासिक समीकरण क्या कहता है?
करहल विधानसभा सीट 1956 के परिसीमन के बाद सामने आई। 1957 में पहलवान नाथू सिंह यादव प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के पहले विधायक चुने गए। इसके बाद तीन बार स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याशी ने जीत हासिल की। अगले चुनाव में नाथू सिंह भारतीय क्रांति दल और जनता पार्टी के टिकट पर चुने गए। शिवमंगल सिंह 1980 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर जीते लेकिन उसके बाद जाति की हवा चलने लगी।
1980 में पराजित हुए बाबूराम लगातार पांच बार विधायक चुने गए। 1985 में वे लोक दल के टिकट पर और उसके बाद दो बार जनता पार्टी के टिकट पर और दो बार सपा के टिकट पर चुने गए। सोबरन सिंह 2002 से बीजेपी से जीते लेकिन कुछ दिनों के बाद सपा में चले गए और उसके बाद हुए तीनों चुनावों में सपा के टिकट पर जीत हासिल की।

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