यूपी के चुनाव परिणाम आने के बाद से ही जीत हार की समीक्षा राजनैतिक पार्टियों ने शुरू कर दी है ऐसे में जनता के बीच भी नतीजों को लेकर चर्चाओं से निकल कर मेजा , चित्रकूट और मऊ मानिकपुर सीटों के नतीजों को लेकर राजनैतिक गठबंधन के वोटों के ट्रांसफर को लेकर जो बात निकल कर सामने आई वो जानेंगे विस्तार से
मेजा विधानसभा
इस सीट पर भाजपा की नीलम करवरिया की जीत तय मानी जा रही थीं 2017 के चुनाव में जीत कर ब्राह्मण बाहुल्य मेजा सीट से नीलम करवरिया ने इस बार भी अपनी जीत की दावेदारी जता रही थीं। ब्राह्नण वोटबैंक उनके जीत में अहम रोल अदा कर चुका था जिसके बूते इस बार भी वो मैदान में थी। लेकिन जब नतीजे आए तो उन्हें 3439 वोटों से संदीप सिंह पटेल के हाथों हार का सामना करना पड़ा। संदीप पटेल को जहां 78555 वोट मिले तो वहीं नीलम करवरिया को 75116 वोट मिले।
इस परिणाम के पीछे दो मुख्य वजह बताई गई जो लोगों ने आपसी चर्चा में कही
1- बसपा से भी ब्राह्मण उम्मीदवार खड़ा होने से वोटों का बंट जाना
2- अपना दल के साथ गठबंधन के बावजूद काफी संख्या में पिछड़े वोटर्स का सपा प्रत्याशी संदीप पटेल को वोट करना
चित्रकूट विधानसभा
महज 30 हजार 496 रुपये की संपत्ति के मालिक अनिल प्रधान के पास न खुद का घर है न ही जमीन. लेकिन जरूरतमंदों के लिए हर पल खड़े रहने वाले अनिल प्रधान ने विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी व योगी आदित्यनाथ की सरकार में लोक निर्माण विभाग के राज्य मंत्री रहे चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय को 20876 वोटों से पटखनी दी इस सीट पर सपा की इस जीत के पीछे भी दो खास वजह थीं
पहली बीजेपी कैंडिडेट सहयोगी पार्टी अपना दल के साथ होने के बावजूद पटेल वोट पाने में काफी हद तक असफल रहे दूसरी वजह पटेल बाहुल्य इस सीट पर सपा से अनिल पटेल के खड़े होने से बीजेपी से नाराज चल रहे कुछ ब्राह्मणों के साथ बड़ी संख्या में कुर्मी वोटरों का सपा में जाना बीजेपी के लिए घातक साबित हुआ
मऊ मानिकपुर विधानसभा
मऊ मानिकपुर विधानसभा यूं तो तीनो सीटों में एकलौती सीट है जो भाजपा गठबंधन के हिस्से में तो आई मगर इसमें भी कुछ कम नहीं थी लड़ाई , बात करें अपना दल प्रत्याशी अविनाश चन्द्र द्विवेदी की तो उनकी मेहनत और बड़ी रणनीतिक टीम नें मैदान मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी जीत का अंतर बेहद कम (1227 ) रहा मगर ये चुनाव सबसे दिलचस्प आखिर तक बना रहा।
इस सीट पर ब्राह्मण वोट सर्वाधिक हैं शुरू में बीजेपी इस सीट पर जीत आसान मान रही थी यहां तक कि सपा से उम्मीदवार रहे वीर सिंह पटेल पार्टी से दूसरे सीट से लड़ाने की गुजारिश भी किए। लेकिन जैसे जैसे चुनाव नजदीक आने लगा बीजेपी गठबंधन और अपना दल के प्रत्याशी अकेले पड़ने लगे खुद बीजेपी के ही कुछ ब्राह्मण नेता उनके खिलाफ वोटिंग को लेकर गुुुपचुप प्रचार किए साथ ही मीडिया में उनके खिलाफ कई आरोप लगाए। यही वजह रही कि विपक्षी पार्टी के साथ साथ अपने गठबंधन के भीतरी विश्नासघात से अविनाश चंद्र द्विवेदी की राह कतई आसान नहीं थी। यहां तक कि आम आदमी से लड़ रहे प्रत्याशी का नाम मिलता जुलता होना भी प्रत्याशी के लिए अलग परेशानी बनी। पटेल वोटों का सपा में जाना यहां भी अपना दल के लिए चुनौती बना।
बहरहाल इन तीनों सीटों के जीत हार के परिणाम क्षेत्र में चर्चा का विषय बने रहे