<div class="paragraphs"><p>File photo Courtesy | Amar Ujala</p></div>

File photo Courtesy | Amar Ujala

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रायबरेली में गढ़ बचाने में कामयाब हो पाएगी कांग्रेस पार्टी?

ChandraVeer Singh

वरिष्ठ पत्रकार समीरात्मज मिश्र की यूपी से खास रिपोर्टः यूपी विधानसभा चुनाव के चौथे चरण में राजधानी लखनऊ समेत जिन नौ जिलों की 59 विधानसभाओं में 23 फरवरी को मतदान होना है, उनमें रायबरेली जिला भी शामिल है. कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व वाले इस जिले की छह विधानसभा सीटों पर पिछले चुनाव में बीजेपी लहर के बावजूद कांग्रेस के दो विधायक जीतने में कामयाब हुए थे लेकिन इस बार कांग्रेस के सामने अपने इस गढ़ को बचाने की बड़ी चुनौती है.

चौथे चरण में लखनऊ से लखीमपुर खीरी तक के मतदाता 23 फरवरी को चौथे चरण के लिए मतदान करेंगे. सोमवार को इस चरण के लिए चुनाव प्रचार खत्म हो गया. नौ जिलों की 59 विधानसभा सीटों पर होने वाले इस चरण के चुनाव में यूपी के रूहेलखंड इलाके के तराई क्षेत्र और अवध क्षेत्र की सीटें आती हैं जिनमें कुल 624 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

रायबरेली जिले को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है और 1977 में जनता पार्टी की लहर और फिर 1991 में राममंदिर लहर के बावजूद कांग्रेस पार्टी यहां छह में से पांच सीटें जीतने में कामयाब रही. यहां तक कि साल 2017 में जब उसके कुल सात विधायक चुने गए थे, उसमें भी दो विधायक इसी जिले से थे. हालांकि साल 2017 में पार्टी का समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन है और इस बार कांग्रेस यूपी की सभी सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ रही है.

कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी रायबरेली से ही लोकसभा सदस्य हैं और चुनाव से ठीक पहले उन्होंने क्षेत्र की जनता को ऑनलाइन संबोधित भी किया. इसके अलावा पार्टी की यूपी प्रभारी और महासचिव प्रियंका गांधी ने लगातार दो दिनों तक यहां रहकर सभी छह सीटों पर प्रचार किया. इस चरण में यूपी की कांग्रेस प्रभारी प्रियंका गांधी के चुनावी प्रबंधन और राजनीतिक कौशल की भी परीक्षा होनी है क्योंकि क्षेत्र को दो मौजूदा विधायक भी अब पार्टी छोड़ गए हैं और बीजेपी से उम्मीदवार हैं.
चौथे चरण में जिन सीटों पर मतदान हो रहा है, 2017 के विधानसभा चुनाव में उनमें से 51 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी जबकि एक सीट पर बीजेपी की सहयोगी अपना दल की जीत हुई थी. तब समाजवादी पार्टी को यहां सिर्फ चार सीटें मिली थीं जबकि कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ने दो-दो सीटें जीती थीं. कांग्रेस के टिकट पर जीतने वाले दोनों विधायक और बीएसपी के एक विधायक अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.
अपने संसदीय क्षेत्र में मतदान से पहले वर्चुअल संबोधन में सोनिया गांधी ने बीजेपी सरकार पर आरोप लगाया कि उसने रायबरेली के साथ सौतेला व्यवहार किया है. उन्होंने कहा, “23 तारीख को होने वाला चुनाव बहुत महत्वपूर्ण चुनाव है. पांच साल तक अलगाव बढ़ाने के अलावा कोई और काम नहीं किया. न तो फसलों का दाम मिला, न सिंचाई की सुविधा. नौजवान आने वाले कल के लिए मेहनत से तैयारी करते हैं लेकिन बीजेपी सरकार ने उन्हें घर बैठा दिया.”
जहां तक पूरे प्रदेश की बात है तो महिलाओं, दलितों और नौजवानों के तमाम मुद्दों को उठाने और प्रियंका गांधी के पीड़ित परिवारों के घरों तक पहुंचने के बावजूद कांग्रेस पार्टी जमीन पर खड़ी नहीं दिख रही है. पूरे प्रदेश में मुख्य मुकाबले में बीजेपी और समाजवादी पार्टी ही दिख रही हैं. फिर भी कुछ सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस पार्टी मुकाबले में है और उन सीटों में रायबरेली की भी कुछ सीटें शामिल हैं.
रायबरेली में स्थानीय पत्रकार माधव सिंह कहते हैं, “रायबरेली में कई सीटों पर जातीय समीकरणों और उम्मीदवारों की व्यक्तिगत छवि के कारण त्रिकोणात्मक संघर्ष है. बीजेपी और सपा यहां हर सीट पर सीधे मुकाबले में नहीं है बल्कि कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार भी हरचंदपुर, रायबरेली सदर, सरैनी और बछरावां में अच्छी टक्कर दे रहे हैं. ऐसे में कुछ सीटें कांग्रेस पार्टी जरूर निकाल लेगी. रायबरेली में कांग्रेस पार्टी का संगठन भी प्रदेश में अन्य जिलों की तुलना में ज्यादा मजबूत है.”
रायबरेली में कभी कुछ समय पहले तक कांग्रेस की ही विधायक रहीं अदिति सिंह ने सोमवार को प्रियंका गांधी पर जोरदार हमला बोला और कहा कि उन्हें जमीनी हकीकत की जानकारी नहीं है. अदिति सिंह ने कहा, “एक ओर कांग्रेस यूपी-बिहार के लोगों को गाली देती है और फिर यूपी के समर्थन की उम्मीद भी करती है.”
दरअसल, कांग्रेस पार्टी को यहां न सिर्फ बीजेपी से मुकाबला करना पड़ रहा है बल्कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से भी लड़ाई लड़नी पड़ रही है. बीएसपी नेता मायावती तो खासतौर पर कांग्रेस पर हमलावर रहती हैं और बीजेपी की तुलना में वो अक्सर कांग्रेस पार्टी को ही कठघरे में खड़ा करती रहती हैं. कांग्रेस ने इस जिले की तीन सीटों पर दूसरे दलों से आने वाले उम्मीदवारों पर दांव खेला है वहीं बीजेपी समेत दूसरी पार्टियां भी अन्य दलों से आए उम्मीदवारों को अपने कैडर उम्मीदवारों पर तरजीह देती दिख रही हैं.
पत्रकार माधव सिंह कहते हैं कि दूसरे दलों से आकर टिकट पाए नेताओं को लेकर हर पार्टी में नाराजगी है और इसका खामियाजा किसी को भी भुगतना पड़ सकता है.
सोनिया गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली सीट पर अपना कब्जा बनाए रखा और बीजेपी उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह को 1.6 लाख वोटों के अंतर से जरूर हराया लेकिन यह अंतर पिछले 15 वर्षों में सबसे कम है. साल 2014 में उन्होंने करीब साढ़े तीन लाख वोटों के अंतर से, 2009 में 3.7 लाख वोटों से और 2004 में 2.4 लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. 2019 में उनके खिलाफ बीजेपी से ताल ठोंकने वाले दिनेश प्रताप सिंह पहले रायबरेली में कांग्रेस के मजबूत स्तंभ थे लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले वो परिवार समेत बीजेपी में शामिल हो गए.
स्थानीय लोगों की मानें तो दिनेश प्रताप सिंह के परिवार समेत बीजेपी में जाने का कांग्रेस को जितना नुकसान हो रहा है उतना ही बीजेपी को भी हो रहा है. रायबरेली के रहने वाले सुरेंद्र विक्रम कहते हैं, “दिनेश प्रताप सिंह और अखिलेश सिंह में पुरानी अदावत है. यहां तक कि अदिति सिंह ने भी आरोप लगाया था कि दिनेश प्रताप सिंह ने उन पर हमला कराया है. अब दोनों बीजेपी में हैं लेकिन इनके तमाम कार्यकर्ता आज भी कांग्रेस पार्टी में आस्था जताने वाले हैं. दूसरे, ये दोनों ही रायबरेली के मजबूत स्तंभ हैं और आज दोनों बीजेपी में हैं लेकिन इनके बीच की निजी दुश्मनी अभी भी वैसी है.”
बहरहाल, ये 23 फरवरी को होने वाले मतदान और फिर 10 मार्च को मतगणना के बाद स्पष्ट हो जाएगा कि रायबरेली का यह मजबूत किला बचाने में कांग्रेस सफल रहती है या फिर अमेठी की तरह यह भी ध्वस्त हो जाएगा.

समीरात्मज मिश्र वरिष्ठ पत्रकार हैं. लंबे समय तक बीबीसी में संवाददाता रहे हैं. इस समय जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर डीडब्ल्यू से जुड़े हैं और यूट्यूब चैनल ‘द ग्राउंड रिपोर्ट’ के संपादक हैं.

ये एना​लेसिस यूपी चुनाव को लेकर बन रही श्रृंखला का लेख है, इस श्रृंखला में आगे भी यूपी चुनाव 2022 के राजनैतिक समीकरणों और जनता के रुझान को लेकर के समीक्षा निंरतर जारी रहेगी।

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