पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की हेल्थ इंश्योरेंस की महत्वाकांक्षी योजना 'स्वास्थ्य साथी कार्ड' ने बवाल मचा दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिलीगुड़ी में आयोजित कार्यक्रम के दौरान निजी अस्पतालों को कड़ी चेतावनी दी है कि 'स्वास्थ्य साथी कार्ड' स्वीकार नहीं करने वाले निजी अस्पतालों का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। इसके साथ ही स्वास्थ्य आयोग ने कोलकाता के सात निजी अस्पतालों को नोटिस जारी किया है। मामले की सुनवाई 3 नवंबर को होगी। दूसरी ओर, निजी अस्पतालों ने स्वास्थ्य साथी कार्ड से इलाज कर रहे मरीजों का भुगतान नहीं होने को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
गौरतलब है कि स्वास्थ्य साथी योजना केंद्र सरकार की आयुष्मान योजना की तर्ज पर चल रही बंगाल सरकार की एक योजना है। यह 5 लाख रुपये का फ्री इंश्योरेंस प्लान है। यह सरकार की एक योजना है, जिसका पालन निजी अस्पतालों को करना होगा। उधर, स्वास्थ्य विभाग के तहत स्वास्थ्य सलाहकार समिति ने राज्य स्वास्थ्य विभाग के स्वास्थ्य योजना कार्ड पर नई एडवाइजरी जारी की। इसके तहत सरकारी अस्पतालों में दाखिले के लिए स्वास्थ्य साथी कार्ड अनिवार्य कर दिया गया है और निर्देश जारी किया गया है कि किसी भी मरीज को वापस नहीं किया जा सकता है।
3 नवंबर को शहर के 7 अस्पतालों के खिलाफ स्वास्थ्य आयोग में सुनवाई होगी। आरोप है कि यहां हेल्थ पार्टनर कार्ड को लेकर गड़बड़ी की गई। प्राप्त शिकायतों के आधार पर पश्चिम बंगाल क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट रेगुलेटरी कमीशन के चेयरमैन जस्टिस असीम कुमार बनर्जी इस पर सुनवाई करेंगे। वहीं, स्वास्थ्य विभाग की ओर से दो एडवाइजरी जारी की गई है। एक मुख्य रूप से निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम के लिए है। दूसरी एडवाइजरी सरकारी अस्पतालों के लिए है। पहली एडवाइजरी में कहा गया है कि इसमें 1,900 से अधिक "निर्दिष्ट पैकेज" हैं। उन पैकेज के तहत मरीजों का इलाज करने की बात कही गई है।
वहीं संजीवन अस्पताल ने ममता सरकार के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट में 64 करोड़ रुपये का मामला दर्ज कराया है। हावड़ा जिले के उल्बेरिया क्षेत्र स्थित इस निजी अस्पताल के प्रबंधन का आरोप है कि स्वास्थ्य साथी योजना के तहत राज्य सरकार पर कोरोना मरीजों के इलाज के लिए 64 करोड़ रुपये बकाया है। इस योजना के तहत अस्पताल में करीब छह हजार कोरोना मरीजों का इलाज किया गया, जिनमें से राज्य सरकार ने अभी तक इलाज का खर्च नहीं उठाया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राज्य सरकार को सात दिन के भीतर हाईकोर्ट से हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन 21 दिन बाद भी ऐसा नहीं किया गया।