डेस्क न्यूज़- बॉम्बे हाई कोर्ट में आर्यन खान केस की सुनवाई चल रही है। इस बीच खबर आ रही हैं कि आर्यन खान अपने पक्ष में सॉरी लेटर जारी कर सकते हैं। कोर्ट के सूत्रों ने इसकी पुष्टि की है। इसका मतलब है कि आर्यन अपनी गलती स्वीकार कर सकता है और अदालत को आश्वस्त कर सकता है कि वह भविष्य में इसे नहीं दोहराएगा। कोर्ट इस पत्र को गंभीरता से लेते हुए आर्यन को कुछ राहत दे सकती है।
आर्यन के इस विकल्प पर एडवोकेट सवीना बेदी सच्चर का कहना है कि आर्यन पर लगे आरोप बहुत बड़े नहीं हैं। दूसरा, कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां आरोपी को सॉरी लेटर जारी करने पर कोर्ट से राहत मिली है। इस बीच खबर यह भी है कि आर्यन की ओर से एक हलफनामा दाखिल किया गया है कि ड्रग्स मामले को लेकर कोर्ट के बाहर जो भी आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं। उसका इससे कोई लेना-देना नहीं है। इसका 25 करोड़ के सौदे के मामले से कोई लेना-देना नहीं है। वह एनसीबी का पूरा समर्थन कर रहे हैं।
वहीं एनसीबी के सूत्रों ने बताया है कि समीर वानखेड़े को ऊपर से आदेश दे दिए गए हैं। उन्हें बताया गया है कि आर्यन के हवाले से ड्रग एब्यूज मामले में युवा पीढ़ी को कड़ा संदेश दिया गया है। वे समझ चुके हैं कि जब आर्यन नशे के कानून के चंगुल से नहीं बच सका तो आम लोगों को किसी भी तरह की गलत फहमी में नहीं रहना चाहिए। यह संदेश जाने के लिए पर्याप्त है। आर्यन अब बेल के दावेदार हैं।
इधर, मशहूर वकील रिजवान सिद्दीकी अब भी मानते हैं कि गवाह प्रभाकर सैल के पलट जाने के बावजूद कोर्ट में NCB का पक्ष कमजोर नहीं हुआ है। वो उसकी वजह बताते हैं, 'यह कमजोर नहीं होगा, क्योंकि हलफनामा किसी अदालती कार्यवाही का हिस्सा नहीं है। अगर गवाह ने जमानत की कार्यवाही में एक इंटरवेनशन एप्लिकेशन यानी हस्तक्षेप आवेदन दायर किया होता और अपने तर्कों को ऑन रिकॉर्ड पर रखा होता तो अदालत गवाह द्वारा किए गए आरोपों का संज्ञान लेती।'
इधर, मशहूर वकील रिजवान सिद्दीकी अब भी मानते हैं कि गवाह प्रभाकर सेल की बारी के बावजूद कोर्ट में एनसीबी का पक्ष कमजोर नहीं हुआ है। वह इसका कारण बताते हैं, 'यह कमजोर नहीं होगा, क्योंकि हलफनामा किसी अदालती कार्यवाही का हिस्सा नहीं है। अगर गवाह ने जमानत की कार्यवाही में हस्तक्षेप आवेदन दायर किया होता और अपनी दलीलों को रिकॉर्ड पर रखा होता, तो अदालत गवाह द्वारा लगाए गए आरोपों पर संज्ञान लेती। रिजवान आगे कहते हैं, 'एक नोटरीकृत से निजी तौर पर दायर एक हलफनामे का सबूत के रूप में कोई मूल्य नहीं है।'
सीआरपीसी की धारा 160 के तहत पुलिस के सामने गवाह अपना बयान दर्ज करवा सकता हैं। वही दूसरा ये है कि सीआरपीसी की धारा 162 के तहत एक मजिस्ट्रेट के समक्ष शपथ पर अपना बयान दर्ज करवा सकता है। चूंकि वर्तमान मामले में इनमें से कोई भी काम नहीं किया गया है, इसलिए किसी भी अदालत के दायरे से बाहर दायर हलफनामे का कोई सबूत नहीं होगा।