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हिंदू विरोध नज्म की जांच करेगी, आईआईटी कानपुर, सीएए के विरोध में छात्रों ने गायी थी नज्म

जामिया के छात्रों का समर्थन कर रहे आईआईटी के छात्रों ने फैज अहमद फैज की नज्म गायी थी।

savan meena

न्यूज – दिंसबर 2019 में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए। कई जगहों पर हिंसा भी हुई। आपको याद होगा कि जामिया के छात्रों ने इस कानून के विरोध में हिंसक प्रदर्शन किया था। इसके बाद पुलिस ने जामिया के छात्रों पर लाठीचार्ज किया था। इस दौरान आईआईटी कानपुर के छात्रो नें जामिया के स्टूडेंस के समर्थन में जुलूस निकाला था। इस जुलूस के दौरान आईआईटी कानपुर के छात्रों ने एक नज्म गायी थी।

दावा किया जा रहा था कि ये जो नज्म छात्रों ने गायी थी ये हिंदू विरोधी थी और आईआईटी कानपुर के एक शिक्षक ने छात्रों द्वारा यह नज्म गाए जाने के बाद शिकायत दर्ज कराई। अब आईआईटी कानपुर पाकिस्तान के शायर फैज अहमद 'फैज' की नज्म में हिंदू विरोध की जांच करेगी। कि ये नज्म हिंदू विरोधी है या नहीं…

मंगलवार को संस्थान ने इसके लिए एक पैनल गठित कर दिया। 17 दिसंबर को जामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों पर पुलिस ने कार्रवाई के विरोध में आईआईटी कानपुर के छात्रों ने फैज की नज्म गाई थी। फैज की नज्म, 'लाजिम है कि हम भी देखेंगे' की आखिरी पंक्ति में हिंदू विरोधी भावनाओं के खिलाफ एक फैकल्टी ने इसकी शिकायत की थी। 

आईआईटी कानपुर के छात्रों ने जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के समर्थन में 17 दिसंबर को परिसर में मार्च निकाला था। इसी दौरान उन्होंने फैज की यह कविता गायी थी। इसमें नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले जामिया के छात्रों पर पुलिस कार्रवाई का विरोध किया गया था।" नज्म की आखिरी पंक्ति को लेकर विवाद, जिसमें सत्ता को उखाड़ फेकने की बात कही गई है

छात्रों पर देशविरोधी नारेबाजी करने का भी लगा है आरोप

आईआईटी का पैनल फैज की नज्म में हिंदू विरोध के अलावा छात्रों द्वारा धारा 144 तोड़कर जुलूस निकालने और छात्रों की सोशल मीडिया पोस्ट की भी जांच करेगा। फैज की जिस नज्म के खिलाफ शिकायत हुई, उसमें आखिरी पंक्ति में 'बस नाम रहेगा अल्लाह का' कहा गया है। आईआईटी के उपनिदेशक मनिंद्र अग्रवाल ने कहा, "वीडियो में छात्र फैज की कविता गाते हुए दिख रहे हैंजिसे हिंदू विरोधी भी माना जा सकता है। इसके अलावा छात्रों ने प्रदर्शन के दौरान देशविरोधी नारेबाजी की और सांप्रदायिक बयान दिए

जिया उल हक के खिलाफ लिखी नज्म

फैज ने 1979 में पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक उसके सैनिक शासन के विरोध में यह नज्म लिखी थी। सत्ता से विरोध के चलते फैज कई साल जेल में भी रहे।

फैज अहमद फैज

लाजिम है कि हम भी देखेंगे, जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से।

सब भूत उठाए जाएंगे, हम अहल-ए-वफा मरदूद-ए-हरम, मसनद पे बिठाए जाएंगे।

सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे।

बस नाम रहेगा अल्लाह का। हम देखेंगे।

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