रिपोर्ट: यह राष्ट्रवाद का दौर है, और कुछ दिनों बाद 15 अगस्त भी आने वाला है, और इसी बिच बात करे भारत कुमार की अगर वो इस वक्त फिल्मो में सक्रिय होते तो कुछ अलग ही अंदाज होता, मनोज कुमार की फिल्में आजकल बन रही देशभक्ति की उन फिल्मों से एकदम अलग थीं जिनमें नायक देश को बचाने के लिए अकेले ही एक खतरनाक और असंभव मिशन को अंजाम देता है।
आपको थोड़ा शुरुआती दौर में लेकर चलते है, जब 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अभिनेता मनोज कुमार से उनके "जय जवान जय किसान" के नारे पर आधारित फिल्म बनाने को कहा था, इसके बाद वर्ष 1967 में मनोज कुमार की अगली फिल्म आई "उपकार"।
इस फिल्म में उन्हें किसान और जवान की भूमिकाएँ करते देखा गया, मनोज कुमार ने इस फिल्म के साथ निर्देशक के रूप में भी शुरुआत की, इस फिल्म के बाद उन्होंने इतनी देशभक्ति की फिल्में बनाईं कि उनका नाम भारत कुमार हो गया, चूंकि समय राष्ट्रवाद का है, इसलिए यह सवाल किया जा सकता है कि अगर मनोज कुमार आज फिल्मों में सक्रिय होते, तो क्या होता, क्या वह भी अक्षय कुमार या और बड़े अभिनेताओं की तरह सबके चहेते होते ?
भारत कुमार की फ़िल्में जैसे शहीद, उपकार, रोटी कपड़ा और माकन जैसी फ़िल्में बनाईं, आज बनी उन देशभक्ति फ़िल्मों से बिल्कुल अलग थीं, जिसमे देश को बचाने के लिए एक खतरनाक और असंभव मिशन को अंजाम देते हुए नायक को अकेले दिखाया जाता है।
उनकी द्वारा की गयी फ़िल्में अपेक्षाकृत तार्किक और सच कहती थीं, जिस तरह से मनोज कुमार को अपनी फिल्मों में मजदूरों और मेहनतकश लोगों के अधिकारों के बारे में बात करते हुए देखा गया, उसने उस दौर के संघर्ष की वास्तविकता को भी थोड़ी वीरता के साथ दिखाया।
अगर आज उन्होंने असंतुष्ट कार्यकर्ताओं को इस तरह दिखाने वाली फिल्में बनाई होतीं, तो वे वामपंथ और देश की छवि बिगाड़ने वाले बन सकते थे, और फिर यह संभव था कि उन्हें इसके लिए सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जाता।
सोशल मीडिया की बात करें तो, हिंदू ब्राह्मण होने के नाते मनोज कुमार यानी हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी के पक्ष में जाना था, सरकार को मुस्लिम सितारों पर आपत्ति नहीं हो सकती है, लेकिन कई भाजपा समर्थक लोगों को अक्सर हिंदू कलाकारों के समर्थन में और बॉलीवुड खान के विरोध में सोशल मीडिया पर आंदोलन चलाते देखा जा सकता है।
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