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Galwan Valley : भारत-चीनी सैनिकों के झड़प होने की क्या थी वजह ? जानिए एक साल बाद कैसे है वहां के हालात

आज इस संघर्ष को साल भर पूरा हो रहा है। सभी के मन में एक सवाल है कि अभी गलवान का क्या हाल है?तो इसका जवाब है कि गलवान शांत है, लेकिन नई जगहों पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच नये मोर्चो की शुरूआत हो गई है।

savan meena

Galwan Valley : 15 जून 2020 की रात गलवान में चीनी सैनिकों के साथ हुई झड़प में हमने अपने 20 जवानों को खो दिया, संयुक्त राष्ट्र से लेकर चुनावी भाषणों तक इस गलवान का जिक्र किया गया, चीन और भारत के बीच 11 दौर की बातचीत के बाद तनाव कम करने पर सहमति बनी।

आज इस संघर्ष को साल भर पूरा हो रहा है। सभी के मन में एक सवाल है कि अभी गलवान का क्या हाल है? तो इसका जवाब है कि गलवान शांत है, लेकिन नई जगहों पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच नये मोर्चो की शुरूआत हो गई है।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद यह माहौल बदल गया

Galwan Valley : एलएसी की कोई वास्तविक मार्किंग नहीं है। ऐसे में भारत या चीन दोनों की सेनाएं गश्त करती थीं और दोनों का आमना-सामना होता था।

तब दोनों सेनाएँ जहाँ तक जाती थीं कुछ निशान छोड़ जाती थीं ताकि बाद में दावा कर सकें कि हम इस क्षेत्र में आए हैं। यह प्रक्रिया 2019 तक चल रही थी।

अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद यह माहौल बदल गया। पाकिस्तान ने भी इसका विरोध किया और चीन पाकिस्तान के समर्थन में था। अब दोनों ओर से आक्रामक कदम तेज हो गए हैं।

कश्मीर से 370 हटने के बाद चीन और भारत ने LAC पर गश्त बढ़ा दी

कश्मीर से 370 हटने के बाद चीन और भारत ने LAC पर गश्त बढ़ा दी, जो पेट्रोलिंग पार्टियां कभी-कभी एक-दूसरे के सामने  आती थीं, वो अब बार-बार आमने-सामने आने लगीं। ग्राउंड जीरो पर एक ड्रिल का पालन किया जाता है जिसे बायोनेट ड्रिल कहा जाता है। इसमें एक सैनिक की राइफल जिसमें खंजर रखा जाता है, जिसे संगीन कहते हैं।

आमने-सामने होने पर, इन खंजरों का उपयोग प्रतिद्वंद्वी को वापस लौटने का संकेत देने के लिए किया जाता है। 1990 से 2019 तक, केवल लाठी का इस्तेमाल किया गया था। इसके साथ पेट्रोलिंग भी की गई लेकिन कभी गोलियां नहीं चलीं। गलवान में भी यही कवायद नाकाम रही।

यहां से शुरु हुआ विवाद

इस दिन गलवान में हमारे जमीनी सैनिकों पर दबाव था। चीन पर भी दबाव था। उस जगह पर चीनी सेना बैठी थी, इसलिए भारतीय सेना ने उन्हें वापस लौटने को कहा।

हालांकि, वे मान गए लेकिन विवाद की शुरुआत चीनी कार्रवाई से हुई। चीन ने दो टेंट लगाए, जो ऑब्जर्वेशन पोस्ट की तरह थे। तर्क दिया कि अगर हम वापस गए तो हम आपकी गतिविधियों को ट्रैक नहीं कर पाएंगे।

इसका भारतीय सेना ने विरोध किया और झड़प शुरू हो गई। चीनी हथियारों से लैस थे और भारतीय सेना पुरानी प्रथा के तहत वहां पहुंच गई थी। इस झड़प के बाद 30 जून के आसपास दोनों पक्षों के बीच बातचीत हुई और चीन वहां से एक किलोमीटर पीछे हट गया, भारत अपने कदम पर वापस आ गया था।

पैंगोंग झील पर एक से आठ फिंगर्स, भारत का दावा फिंगर 8 तक का क्षेत्र उसका

पैंगोंग झील पर एक से आठ फिंगर्स है। भारत का दावा है कि फिंगर 8 तक का क्षेत्र उसका है। चीन का कहना है कि फिंगर 4 तक उसका अपना इलाका है। गलवान के बाद भारत ने चीनियों को रोकना शुरू किया।

यह बिहार चुनाव का समय था। अब चीन ने फिंगर 4 पर अपना स्थायी अड्डा बना लिया है तो देश के चुनावी हालात और माहौल को देखते हुए भारत ने यहां अतिरिक्त बल भेजे।

जहां निचले क्षेत्र में चीनी बैठे थे, उस फिंगर 4 पर, भारत के विशेष बलों ने शीर्ष पर कब्जा कर लिया और चीनीओ सें ऊपर पहुंच गये। हालांकि चीन के स्पेशल फोर्सेज ने फिंगर 6 और 5 पर भी यही कदम उठाया था। यही विवाद था।

गलवान घाटी में अभी शांति है और अब गश्त रोक दी गई है

गलवान घाटी में अभी शांति है और अब गश्त रोक दी गई है, कोई तनाव नहीं है। अभी तक पेट्रोलिंग रोकने को लेकर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है, पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्र में फरवरी 2021 में भारत और चीन दोनों इस क्षेत्र से हटने पर सहमत हुए।

गोगरा में भारत-चीन के सैनिक आमने-सामने

चीन ने कहा कि वह फिंगर 8 के पीछे होगा और भारत ने कहा कि वह फिंगर 4 यानी धनसिंह थापा पोस्ट से आगे नहीं जाएगा।गोगरा में भारत पर यहां एक महत्वपूर्ण बिंदु 17-ए यानि सोगसालु सोग सालू प्वाइंट है।

इस समय भारत और चीन के सैनिक यहां आमने-सामने हैं। भारत के कई सैनिक आज भी इस जगह पर मौजूद हैं। भारत चीन से इस इलाके से ढाई-तीन किलोमीटर पीछे जाने को कह रहा है, लेकिन चीन इसके लिए राजी नहीं है।

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