डेस्क न्यूज. कभी देश छोड़ कर भारतीय मुस्लमानों को पाकिस्तान जाने की बात करना तो कभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अपमान, कभी-कभी तो देश की सबसे बढी शिक्षण संस्था जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को अय्याशी का अड्डा बताना। यहां तक कहना कि रोज हज़ारों कंडोम और शराब का इस्तेमाल होता है, तो कभी देश के एक खास समुदाय के खिलाफ हथियार उठाने की अपील करना। ये कुछ ऐसे बयान हैं जिसके कारण देश में माहौल खराब होता है। लेकिन बड़ा सवाल ये भी है कि आखिर इस तरह के बयानों पर क्यों रोक नहीं लग रही है। आखिर पार्टी आलाकमान क्यों इस तरह के नेताओं पर कार्यवाही नहीं करती। क्यों इस तरह के बयान देने वाले नेताओं का संज्ञान नहीं लिया जाता है। कोई बात नहीं, पार्टीयां संज्ञान नहीं लेंगी, क्योंकि नेताओं और पार्टीयों को इन बयानों से फायदा हो सकता है। लेकिन आम जनता सब समझती है।
IIM अहमदाबाद और बेंगलुरु ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा।
आखिर कब तक कोई इन बयानों को सुनता रहेगा, कथाकथित महाराज कालीचरण के द्वारा दिये गए विवादित बयान के बाद माहौल थोड़ा गर्म है। चौतरफा कालीचरण के बयान की आलोचना हो रही है। इसी महौल के बीच भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) के छात्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से देश में अभद्र भाषा और जाति आधारित हिंसा के खिलाफ बोलने की अपील की है। पत्र पर IIM अहमदाबाद और IIM बैंगलोर के कुछ छात्रों और सदस्यों के द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं।
हरिद्वार में धर्म संसद में अभद्र भाषा का एक मामला सामने आया। धर्म संसद में कुछ हिंदू धर्मगुरुओं ने लोगों से एक समुदाय के खिलाफ हथियार उठाने का आग्रह किया और नरसंहार का आह्वान किया। पत्र में कहा गया है, "अभद्र भाषा और धर्म/जाति पहचान के आधार पर समुदायों के खिलाफ हिंसा का आह्वान अस्वीकार्य है।"
यह कहा गया है कि भले ही भारतीय संविधान सम्मान के साथ अपने धर्म की पालन करने का अधिकार देता है, लेकिन देश में भय की भावना है। पत्र में लिखा है, 'हमारे देश में अब भय की भावना है - हाल के दिनों में चर्च सहित पूजा स्थलों में तोड़फोड़ की गई है, और एक समुदाय के खिलाफ हथियार उठाने का आह्वान भी किया गया है।'
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