इसराइल में प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के विरोधियों के बीच गठबंधन सरकार बनाने को लेकर सहमति बन गई है जिसके बाद उनकी विदाई का रास्ता साफ़ हो गया है.नेतन्याहू इसराइल में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले नेता हैं और पिछले 12 साल से देश की राजनीति उनके ही इर्द-गिर्द घूमती रही है.
मार्च में हुए चुनाव में नेतन्याहू की लिकुड पार्टी को बहुमत नहीं मिलने के बाद दूसरे नंबर की पार्टी को अन्य सहयोगियों के साथ सरकार बनाने का निमंत्रण दिया गया था.उन्हें बुधवार 2 जून की मध्यरात्रि तक बहुमत साबित करना था और समयसीमा समाप्त होने के कुछ ही देर पहले विपक्षी नेता येर लेपिड ने घोषणा की कि आठ दलों के बीच गठबंधन हो गया है और अब वो सरकार बनाएँगे.
इसके साथ ही इसराइल में राजनीतिक अनिश्चितता के बीच जारी अटकलों पर विराम लग गया है क्योंकि गठबंधन पर सहमति होने को कई लोग असंभव बात मान रहे थे.गठबंधन के लिए हुए समझौते के तहत बारी-बारी से दो अलग दलों के नेता प्रधानमंत्री बनेंगे. सबसे पहले दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नेफ़्टाली बेनेट प्रधानमंत्री बनेंगे. बेनेट 2023 तक प्रधानमंत्री रहेंगे. उस साल 27 अगस्त को वो ये पद मध्यमार्गी येश एटिड पार्टी के नेता येर लेपिड को सौंप देंगे.
लेपिड ने गठबंधन का एलान करते हुए कहा, "ये सरकार इसराइल के सभी नागरिकों के लिए काम करेगी जिन्होंने हमें वोट दिया उनके लिए भी और जिन्होंने नहीं दिया उनके लिए भी. ये सरकार इसराइली समाज को एकजुट रखने के लिए हरसंभव काम करेगी."
इसराइली मीडिया में एक तस्वीर दिखाई जा रही है जिसमें येर लेपिड, नेफ़्ताली बेनेट और अरब इस्लामी राम पार्टी के नेता मंसूर अब्बास समझौते पर दस्तख़त करते दिखाई दे रहे हैं.
मंसूर अब्बास ने पत्रकारों से कहा, "ये मुश्किल फ़ैसला था, हमारे बीच कई मतभेद थे, लेकिन सहमति पर पहुँचना अहम था." उन्होंने कहा कि "समझौते में कई ऐसी चीजें हैं जिनसे अरब समाज को फ़ायदा होगा".
वैसे नई सरकार को संसद में वोटिंग करवाने के बाद ही शपथ दिलाई जा सकेगी. येर लेपिड ने एक बयान में कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति रुवेन रिवलिन को गठबंधन पर सहमति हो जाने के बारे में सूचित कर दिया है.राष्ट्रपति रिवलिन ने संसद से कहा है कि जल्दी से जल्दी सत्र बुलाए ताकि वहाँ विश्वास मत करवाया जा सके.
120 सीटों वाली इसराइली संसद नीसेट में 61 का बहुमत सिद्ध करने के लिए सभी आठ पार्टियों की ज़रूरत होगी. यदि गठबंधन बहुमत साबित नहीं कर पाता तो वहाँ फिर से चुनाव करवाने पड़ सकते हैं. इसराइल में नए गठबंठन में दक्षिणपंथी, वामपंथी और मध्यमार्गी पार्टियाँ शामिल हैं. इन सभी दलों में राजनीतिक तौर पर बहुत कम समानता है मगर इन सबका मक़सद नेतन्याहू के शासन का अंत करना रहा है.
बिन्यामिन नेतन्याहू ने गठबंधन सरकार बनाने के प्रयासों को "सदी का सबसे बड़ा छल" बताते हुए चेतावनी दी थी कि इससे इसराइल की सुरक्षा और भविष्य पर ख़तरा खड़ा हो जाएगा.उन्होंने दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नेफ़्टाली बेनेट पर "लोगों को गुमराह करने" का आरोप लगाया था. वो बेनेट के पिछले बयानों की ओर इशारा कर रहे थे जिसमें उन्होंने लोगों से वादा किया था कि वो लेपिड के साथ जुड़ी ताक़तों के साथ नहीं जाएँगे.
71 वर्षीय नेतन्याहू इसराइल में सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाले नेता हैं और इसराइल की राजनीति में एक पूरे दौर में उनका दबदबा रहा है.मगर रिश्वत खोरी और धाँधली के आरोपों का सामना कर रहे नेतन्याहू की लिकुड पार्टी मार्च में हुए आम चुनाव में बहुमत नहीं जुटा पाई और चुनाव के बाद भी वो सहयोगियों का समर्थन नहीं हासिल कर सके.
इसराइल में पिछले दो सालों से लगातार राजनीतिक अस्थिरता बनी है और दो साल में चार बार चुनाव हो चुके हैं.इसके बावजूद वहाँ स्थिर सरकार नहीं बन पाई है और ना ही नेतन्याहू बहुमत साबित कर पाए हैं.नेतन्याहू के बहुमत नहीं साबित करने के बाद येर लेपिड को सरकार बनाने के लिए 28 दिनों का समय दिया गया था लेकिन ग़ज़ा में संघर्ष की वजह से इसपर असर पड़ा.तब उनकी एक संभावित सहयोगी अरब इस्लामिस्ट राम पार्टी ने गठबंधन के लिए जारी बातचीत से ख़ुद को अलग कर लिया.
फ़लस्तीनी चरमपंथी गुट हमास और इसराइल के बीच 11 दिनों तक चली लड़ाई के दौरान इसराइल के भीतर भी यहूदियों और वहाँ बसे अरबों के बीच संघर्ष हुआ था.
इसराइल में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की चुनावी प्रक्रिया की वजह से किसी एक पार्टी के लिए चुनाव में बहुमत जुटाना मुश्किल होता है.ऐसे में छोटे दलों की अहमियत बढ़ जाती है जिनकी बदौलत बड़ी पार्टियाँ सरकार बनाने के आँकड़े को हासिल कर पाती हैं.जैसे अभी 120 सीटों वाली इसराइली संसद में नेफ़्टाली बेनेट की पार्टी के केवल छह सांसद हैं, मगर विपक्ष को स्पष्ट बहुमत दिलाने में उनकी भूमिका अहम बन गई थी.