तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर की कार को उसी के आंतकी लड़ाको द्वारा 21 साल बाद खोद के निकाला  
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आंतकी मुल्ला उमर का महिमामंडन कर रहा तालिबान, यूनेस्को, मानवाधिकार एक्टिविस्ट और पत्रकारों में चुप्पी

तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर की कार को उसी के आंतकी लड़ाको द्वारा 21 साल बाद खोद के निकाला लिया है. अब इसे म्यूजियम में लगाने की तैयारी है ।

Lokendra Singh Sainger

आतंक की दूनिया में तालिबान एक ऐसा नाम है जिसे शायद ही कोई ना जानता हो, क्योंकि आतंक से जुड़ी हुई छोटी से बड़ी घटना में तालिबानी जिम्मेदारी लेने को अपनी शेखी समझता है

उसी आंतकी संगठन तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर की कार को उसी के आंतकी लड़ाको द्वारा 21 साल बाद खोद के निकाला लिया है. अब इसे म्यूजियम में लगाने की तैयारी है ।

साल 2001, जब मुल्ला उमर डर के मारे भाग खड़ा हुआ था

साल 2001 की बात है अमेरीका में 9/11 हमले के बाद जब अमेरिका ने अपनी सेना को अफगानिस्तान में घुसने का आदेश दिया तो आतंकी मुल्ला उमर डर के मारे अपनी कार को यहीं दफना कर भाग खड़ा हुआ. इस कार की मदद से कंधार से जाबुल तक इसी कार की मदद से पहुचा था. अब अपने आका की इस निशानी को जमीन से खोद कर निकालने वाले आतंकी इसे अब म्यूजियम में रखेगें

आपको बता दें कि तालिबान एक पश्तों जबान का शब्द है. जिसका अर्थ होता है - छात्र (Students) छात्रों के समूह को ही तालिबान कहा जाता है.

हैरानी की बात आखिर अमेरीका क्यों है चुप

मुल्ला उमर इतना बड़ा वांडेट आतंकी अमेरीका में माना जाता था कि कि इसके सिर पर एक करोड़ डॉलर का इनाम घोषित किया गया था। मुल्ला उमर को अल कायदा के आतंकी ओसामा बिन लादेन का भी बहुत करीबी माना जाता था। लेकिन आज जब तालिबान के आतंकी लड़ाके अपने आका का महिमामंडन करने की तैयारी कर चुके है उस स्थिति में अमेरीका की खामोशी के क्या मायने निकाले जाए ? आखिर विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति क्या तालिबान से डर गई?

2013 में हो गई थी मुल्ला उमर की मौत

मुल्ला उमर की साल 2013 में ही लंबी बीमारी के कारण मौत हुई थी। लेकिन आश्चर्य की बात है कि तालिबानियों ने मुल्ला उमर की मौत की खबर दो साल तक बहार नहीं आने दी। खबर तो यह भी है की उमर मुल्ला का इलाज पड़ोसी आतंक के पनाहगार देश पाकिस्तान में चला था।

क्या पाकिस्तान से तालिबान की जड़ ?

साल 1980 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में अपनी फौज को उतारा था लेकिन सोवियत संघ हार मानकर चला गया, लेकिन इस बीच अफगानिस्तान में एक कट्टरपंथी संगठन जन्म ले रहा था। इसका नाम तालिबान था। कहा जाता है कि तालिबानियों ने पाकिस्तान के मदरसों शिक्षा ली थी. लेकिन पाकिस्तान इस बात को बार-बार नकारता दिखाई देता है।

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