International Nurses Day image credit - google
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International Nurses Day: जानिए क्यों मनाया जाता है ये दिन और कौन है भारत की फ्लोरेंस नाइटिंगेल

International Nurses Day: विश्व में सभी नर्सों के सेवाभाव, उनके कार्य को सम्मान देने के लिएहर साल 12 मई को अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day) मनाया जाता है।

Jyoti Singh

International Nurses Day:किसी भी बीमार को ठीक करने के लिए डॉक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, लेकिन चिकित्सा क्षेत्र में काम करने वाली नर्स भी एक रोगी को ठीक करने में उतनी ही अहम भूमिका निभाती है।

कोरोना काल में जब लोग खुद अपने अपनों की देखभाल नहीं कर पा रहे थे तब नर्सों ने ही अपने परिवार को छोड़कर मरीजों को अपना परिवार बनाया और बीमारी से बिना डरे उनकी सेवा की। इन नर्सों ने घंटों तक बिना थके बिना भूख, प्यास की चिंता किए लगातार अपने मरीजों की सेवा की। इसी बहादुरी और सेवा भाव के कारण ही कोरोना काल में डॉक्टर और नर्सेस “कोरोना वॉरियर्स” कहलाएं।

International Nurses Day 2022

विश्व में सभी नर्सों के सेवाभाव, उनके कार्य को सम्मान देने के लिए हर साल 12 मई को अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day) मनाया जाता है। भले ही लोगों ने कोरोना काल में नर्सों के काम और उनके महत्व को समझा पर दुनियाभर के नर्सों को समर्पित ये दिन सदियों से मनाया जा रहा है। इस आर्टिकल में हम आपको नर्स दिवस से जुड़ी अहम बातें और भारत की कुछ ऐसी नर्सों को बारे में बताएंगे जिन्होंने पूरी निष्ठा के साथ अपना सेवाधर्म निभाया।

फ्लोरेंस नाइटिंगेल को समर्पित है International Nurses Day

‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ दुनिया की पहली नर्स, इन्हें 'द लेडी विद द लैंप' भी कहा जाता है। बचपन से ही लोगों की सेवा करने का शौक रखने वाली फ्लोरेंस ने 1844 में ठान लिया था कि वह नर्स बनेगीं। फ्लोरेंस के घरवालों ने उनके इस सपने को नजरअंदाज करते हुए उनकी शादी करवानी चाही पर उन्होंने शादी करने से साफ इंकार कर दिया। हार मानकर घरवालों ने उन्हें नर्सिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए जर्मनी जाने की इजाजत दे दी। इसके बाद फ्लोरेंस पूरे सेवाभाव के साथ इस क्षेत्र में काम करने लगी।

'द लेडी विद द लैंप'- फ्लोरेंस नाइटिंगेल

फ्लोरेंस नाइटिंगेल को एक नर्स से ज्यादा घायलों की जान बचाने वाली 'देवदूत' के रूप में जाना जाता है।क्रीमिया के युद्ध में इनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहा। 1854 में उन्हें 38 नर्सों के साथ घायलों की सेवा के लिए तुर्की भेजा गया था,वहां उन्होंने दिन रात घायल मरीजों की सेवा की। मरीजों को कोई परेशानी ना हो इसलिए फ्लोरेंस खुद ही हाथ में मशाल लिए उनके घर उनकी सेवा करने के लिए चली जाती थी।

फ्लोरेंस नाइटिंगेल को एक नर्स से ज्यादा घायलों की जान बचाने वाली 'देवदूत' के रूप में जाना जाता है।

इसी समय किए गए उनके सेवा कार्यो के लिए उन्हें 'द लेडी विद द लैंप' की उपाधि से सम्मानित किया गया था। ब्रिटेन की सरकार ने इन्हें 'ऑर्डर ऑफ मेरिट' सम्मान से नवाजा था। फ्लोरेंस के इस काम को सम्मान देने के लिए ही हर साल उनके जन्म दिवस पर International Nurses Day मनाया जाता है।

फ्लोरेंस नाइटिंगेल से कम नहीं है भारत की शोभना पठानिया

कोरोना काल में जब चारों और मरीजों का अंबार लगा था देश-विदेश में नर्सों की कमी हो रही थी। तब भारत में एक नर्स ऐसी भी थी जिन्होंने अपने दर्द को भूलकर मरीजों के दर्द को समझा और उनकी सेवा की। शोभना पठानिया के इसी सेवा भाव की वजह से 2019 में उन्हें फ्लोरेंस नाइटिंगेल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

2019 में फ्लोरेंस नाइटिंगेल अवॉर्ड से सम्मानित हुई शोभना पठानिया

शोभना पठानिया एक सीनीयर नर्स है। कोविड़ के शुरूआती दौर में शोभना पठानिया की सर्जरी हुई थी पर जब कोरोना ने देश में अपने पैर पसारने शुरू किए तो शोभना भी अपने कर्तव्यों की ओर वापस लौट आई। उन्होंने अपने सर्जरी के दर्द को भुलाते हुए 7-8 महिनों तक लगातार कोविड़ ड्यूटी की। इस दौरान वह पूरा टाइम मरीजों के बीच में रहीं, पॉजिटिव मरीजों का तनाव कम करने के लिए समय-समय पर विशेष कार्यक्रमों का आयोजन भी करती रही। ड्यूटी के दौरान महीनों तक वह अपने बच्चों से नहीं मिली थी।

शोभना पठानिया

मरीजों के प्रति अपने हर कर्त्तव्य को निभाते हुए शोभना ने कई मरीजों को ठीक करके उन्हें उनके घर भेजा। उनका कहना था कि करोना काल में एक-एक डॉक्टर और एक-एक पैरामेडिकल स्टाफ की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसी स्थिति में वह खुद छुट्टी लेकर वह कैसे आराम कर सकती हैं। जब देश को उनकी जरूरत है तो वह पीछे नहीं हटेंगी।

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