3 Years Of Pulwama Attack – 3 साल पहले आतंकी अटैक से छलनी हुआ था देश का सीना, इस किताब में अटैक को लेकर हुए अहम खुलासे

 

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राष्ट्रीय

3 Years Of Pulwama Attack – 3 साल पहले आतंकी अटैक से छलनी हुआ था देश का सीना, इस किताब में अटैक को लेकर हुए अहम खुलासे

14 फरवरी 2019... एक ऐसी तारीख जिसे चाहकर भी भुलाया नहीं नहीं जा सकता। यह वहीं तारीख हैं, जब जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग से करीब 2500 जवानों को लेकर 78 बसों में गुज़र रहे सीआरपीएफ के काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ। यह वहीं काला दिन हैं, जिस दिन देश के 40 जवान शहीद हो गए।

Ishika Jain

14 फरवरी 2019... एक ऐसी तारीख जिसे चाहकर भी भुलाया नहीं नहीं जा सकता। यह वहीं तारीख हैं, जब जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग से करीब 2500 जवानों को लेकर 78 बसों में गुज़र रहे सीआरपीएफ के काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ। यह वहीं काला दिन हैं, जिस दिन देश के 40 जवान शहीद हो गए। पुलवामा में आंतकियों के द्वारा की गई बुज़दिलाना हरकत को तीन साल गुज़र गए हैं, लेकिन आज भी देशवासियों के दिलों की आग ठंडी नहीं हुई है और ना ही उन जवानों के परिवार के आँखों से आंसू रुके हैं, जिन्होंने अपने जिगर के टुकड़ों को इस हमले में खो दिया था। तीसरी बरसी से पहले पुलवामा अटैक को लेकर आई एक किताब में अहम खुलासे किए गए है। चलिए जानते हैं क्या हुआ था उस दिन ?

किताब में हुए कई अहम खुलासे
पाकिस्तान की इस हरकत के बाद सरकार की नीतियों ने कड़ा रुख किया और आतंक की कमर तोड़ने के कई अभियान चलाए। तीसरी बरसी से पहले पुलवामा अटैक को लेकर आई एक किताब में अहम खुलासे किए गए हैं। बता दें कि, ‘‘एज फॉर एज दी सैफ्रन फील्ड’’ नामक यह किताब भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी और वर्तमान में जम्मू कश्मीर में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक दानेश राणा ने लिखी थी। इस किताब में हमले के पीछे की साजिश का जिक्र किया गया है। साथ ही, साजिशकर्ताओं के साथ की गई पूछताछ, पुलिस के आरोप पत्र और अन्य सबूतों के आधार पर कश्मीर में आतंकवाद के आधुनिक चेहरे को रेखांकित करते हुए राणा ने 14 फरवरी 2019 की घटनाओं के क्रम को याद करते हुए लिखा है कि, कैसे काफिले में यात्रा कर रहे CRPF के जवान रिपोर्टिंग टाइम से पहले ही आने लगे थे।

एज फॉर एज दी सैफ्रन फील्ड

धुंआ छटा और दिखीं तो सिर्फ जवानों की लाशें

पुलवामा जिले के आवंतिपोरा के पास लेथपोरा इलाके में हुआ यह हमला इतना जबरदस्त था कि, चंद मिनटों में ही सब कुछ धुंआ - धुंआ हो गया। जैसे ही धुंआ छटा, उसके पीछे का दृश्य देखकर पूरा देश रो पड़ा। देश के बहादुर जवानों के शव इधर - उधर बिखरे पड़े थे। चारों तरफ अगर कुछ नज़र आ रहा था तो सिर्फ खून ही खून और जवानों के शरीर के टुकड़े। घटना के बाद पुरे देश में हाहाकार मच गया था।

दरअसल, जवानों का काफिला जम्मू के चेनानी रामा ट्रांसिट कैंप से श्रीनगर के लिए निकला था। सुबह जल्दी निकलने वाले जवानों को सूर्यास्त से पहले श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में ट्रांसिट कैंप पहुंचना था। यह यात्रा करीब 320 किलोमीटर लंबी थी और सैनिक सुबह साढ़े तीन बजे से यात्रा कर रहे थे। 78 बसों में 2500 जवानों को लेकर काफिला जम्मू से रवाना हुआ था। लेकिन पुलवामा में ही जैश के आतंकियों ने इन जवानों को निशाना बनाया। जिसमें कई जवान शहीद हो गए। जवानों के इस काफिले में कई जवान छुट्टी पूरी कर ड्यूटी पर लौटे थे। वहीं, बर्फबारी के कारण श्रीनगर जाने वाले जवान भी उसी काफिले की बसों में यात्रा कर रहे थे। जैश सभी 2500 सैनिकों को निशाना बनाना चाहता था। चौंकाने वाली बात यह रही कि आतंकी संगठन जैश ने मैसेज भेजकर हमले की जिम्मेदारी ली थी। जैश ने यह मैसेज कश्मीर की न्यूज एजेंसी जीएनएस को भेजा था।

Pulwama Attack

महज 12 दिनों के भीतर ही 'नापाक' पाक से भारत ने लिया बदला
बता दें कि, पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने महज 12 दिनों के अंदर अपना बदला ले लिया। 26 फरवरी 2019 को दोपहर करीब 3 बजे भारतीय वायुसेना के 12 मिराज 2000 फाइटर जेट्स ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार कर बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया। सूत्रों के मुताबिक, इस हमले में पाकिस्तान द्वारा वित्त पोषित 300 आतंकवादी मारे गए। एयरस्ट्राइक में आतंकी ठिकानों पर करीब एक हजार किलो बम बरसाए गए। पुलवामा आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान से बदला लेने की योजना बनाने की जिम्मेदारी NSA अजीत डोभाल को दी थी। उनके अलावा तत्कालीन वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने भी एयरस्ट्राइक में अहम भूमिका निभाई थी।

आखिरी पल में कैसे बची ठाका बेलकर की जान ?

शहीद हुए जवानों में महाराष्ट्र के अहमदनगर के रहने वाले कांस्टेबल ठाका बेलकर भी शामिल थे। उसके परिवार ने उसी वक्त उसकी शादी तय की थी और शादी की तैयारियां चल रही थीं। ठाका बेलकर ने छुट्टी के लिए आवेदन भी किया था, लेकिन अपनी शादी से ठीक 10 दिन पहले, उसने अपना नाम कश्मीर जाने वाली बस के यात्रियों की सूची में पाया। लेकिन इसे संजोग कहें या चमत्कार, उस दिन जैसे ही काफिला निकलने ही वाला था, किस्मत उस पर मेहरबान हो गई और उसकी छुट्टी अंतिम समय में स्वीकृत हो गई थी। वह जल्दी से बस से उतर गया और मुस्कुरा कर अपने सहयोगियों को हाथ हिला कर अलविदा कहा। लेकिन उसे क्या पता था कि, उसके साथियों के साथ यह उसकी अंतिम भेंट होगी।

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