सेना में जवान और खेत में किसान ये हमारे देश के व्यक्तित्व की पहचान है लेकिन राजनीति के रण में अक्सर ये दोनों ही तबके हांसिए पर हैं। पहले बात जवानों की करते हैं सरकार काफी रिसर्च के बाद एक स्कीम लेकर आई है। इस रिसर्च में लगभग दो साल का समय लगा जिसमे सेना के तीनों अंगो के अधिकारियों के अलावा मानव संसाधन विशेषज्ञों से चर्चा की गई। पूरी दुनिया में जिस जिस देश में ऐसा सिस्टम काम कर रहा है उनके बारे में स्टडी की गई उसके बाद इसे लागू किया गया है। इसमें सेना में गैर अधिकारी भर्तियां के लिए टुअर ऑफ ड्यूटी (टीओडी) को अग्निपथ के नाम से शुरु किया गया है। इसमें सैनिक स्तर के जवानों को चार साल तक सेना में अपनी सेवा देनी होंगी। इसी वजह से सेना से जुड़े कई एक्सपर्ट ऐसा मानते हैं कि चार साल की अवधि के बाद लोगों में फिर से बेरोजगार होने का डर रहेगा इसलिए युवाओं का इस मिशन से जुड़ने में रुचि कम रहेगी। दुनिया के कुछ देशों में सेना से जुड़ना जरुरी होता है। इसे हम कानूनी बाध्यता के तौर पर ले सकते हैं इस तरह सैनिक रिक्रूट करने वाले देशों में मुख्य रुप से इजराइल,ब्राजील,रुस और साउथ कोरिया हैं। जबकि भारत जैसे देश में सैनिक रिक्रूट करने की जो प्रक्रिया है वो वोलंटरी यानी कि स्वेच्छिक है। ये दोनों ही प्रक्रियाएं अपनी अपनी जगह पूरी तरह से कामयाब हैं। इन दोनों के बीच की स्कीम मानी जा सकती है।
सरकार कहती है कि इस स्कीम के बाद से हमारी सेना हमेशा जवान रहेगी, पुराने लोग जाएंगे और नया खून फिर से देश की रक्षा के लिए आगे आएगा। सरकार का लाखों करोड़ का पेंशन का पैसा भी बचेगा और बेरोजगारों को एक नया पायदान मिलेगा,जहां वो आंशिक ही सही लेकिन अपनी बेरोजगारी मिटा कर समाज में वर्दीधारी सर्विस मैन होने रुतबा कायम कर पाएंगे। सरकार जल्द ही मिशन अग्निपथ के तहत भर्ती शुरु करना चाहती है और इसकी शुरुआत वो यूपी से करने जा रही है। भर्ती कैलेंडर के साथ ही अक्टूबर तक अग्निवीरों की पहली खेप सेना को मिलनी शुरु हो जाएगी।
विरोध में आर्मी एक्सपर्ट और युवा
सेना से जुड़े विशेषज्ञ कहते हैं कि इस पूरी प्रक्रिया में लॉयल्टी नहीं रहेगी। पूर्व सैनिकों ने सवाल उठाए कि सिर्फ 24 महीनों की ट्रेनिंग से इन्हें बोफोर्स, और चीनूक चलाना सिखा दोगे? क्या मेहमान सैनिकों के भरोसे हम युद्ध जीत सकते हैं? सबसे बड़ी निराशा उन लोगों को होगी जो उन 75 फीसदी में शामिल होंगे जो सेना का हिस्सा नहीं बन पाए। सेना सैनिक के परिवार की तरह होती है लेकिन इतने कम समय में क्या वो बॉंडिग बन पाएगी।
अग्निपथ योजना के खिलाफ युवाओं में गुस्सा है उनका साफ कहना है कि इस योजना को तुरंत प्रभाव से वापस लिया जाना चाहिए। काफी समय से सेनाओं में भर्ती नही होने की वजह से परेशान छात्रों की मांग है कि जल्द से जल्द रैली भर्ती आयोजित कराई जाएं और परीक्षाएं शुरू हों। इसके अलावा, पुरानी लटकी भर्तियों को भी जल्द से जल्द क्लियर करने की मांग की जा रही है।
सड़क पर प्रदर्शन कर रहे एक छात्र ने कहा कि ‘सेना में जाने के लिए हम जीतोड़ मेहनत करते हैं। ट्रेनिंग और छुट्टियों को मिला दें तो ये सर्विस चार साल की कैसे हो सकती है? सिर्फ़ तीन साल की ट्रेनिंग लेकर हम देश की रक्षा कैसे करेंगे? सरकार को यह योजना वापस लेनी ही पड़ेगी?'
दरअसल, पिछले दो साल से भर्तियां नहीं हो पाई थीं और कुछ के परिणाम लंबित थे। इस बीच सरकार ने अग्निपथ योजना को लॉन्च कर दिया और सभी पुरानी भर्तियों को इसी नयी योजना के दायरे में करने का फैसला किया। सरकार के इस फैसले से उन युवाओं को गहरी निराशा हुई जिनकी उम्रसीमा अब खत्म हो चुकी है या लगभग खत्म होने के है। अधिकांश छात्र पुरानी भर्तियों के परिणाम का इंतजार कर रहे थे। यही वजह है कि वे सरकार की इस नयी स्कीम का विरोध कर रहे हैं।उनके बारे में कोई भी स्पष्ट नियम नहीं है ।
अब उस विमर्श पर लौटते हैं कि हमारे देश में खेत में किसान और सीमा पर जवान जचता है लेकिन आज युवा सीमा पर तो जाना चाहता है लेकिन इस सौदेबाजी के तहत नहीं जो सरकार ने उनके सामने रखी है। वो आधा अधूरा सैनिक नहीं बनना चाहता इसलिए अपने वजूद और विचार को लेकर विरोध कर रहा है। सबसे ज्यादा सैनिक बिहार से जाते हैं उसके बाद राजस्थान से तो सबसे ज्यादा विरोध भी वहीं हो रहा है।
इस विरोध में एक हल्की सी झलक किसान आंदोलन की भी नजर आ रही है। किसानों के लिए सरकार ने जब तीन बिल पास किए तो विरोध मेड़ से खेत तक होने लगा। किसान अपनी खेती छोड़कर सड़क पर डेरा डालने को मजबूर हो गया। आम आदमी ने सड़क पर बैठे किसान की त्रासदी को महसूस किया लेकिन जब वक्त बढ़ने लगा तो ये सहानुभूति लोगों के गुस्से में तब्दील हो गई। सरकार झुकी, भले ही वो चुनावी मजबूरी रही हो। और अबकी बार तो युवाओं को ही अपने खिलाफ कर लिया। सरकार को फिर से सोचना होगा क्यों दुनिया के सबसे बड़े युवा देश का युवा गुस्से में है।