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CJI एनवी रमना ने कहा- मीडिया चला रहा कंगारू कोर्ट, तर्कहीन बहस एजेंडा

Om prakash Napit

भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन ला, रांची द्वारा आयोजित 'जस्टिस एस बी सिन्हा मेमोरियल लेक्चर' पर 'एक जज का जीवन' पर उद्घाटन भाषण देते हुए कहा- आधुनिक लोकतंत्र में न्यायाधीश को केवल कानून बताने वाले व्यक्ति के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। लोकतांत्रिक योजना में एक न्यायाधीश का विशिष्ट स्थान होता है, वह सामाजिक वास्तविकता और कानून के बीच की खाई को पाटता है। वह संविधान की लिपि और मूल्यों की रक्षा करता है।

चीफ जस्टिस एनवी रमना ने मामलों के मीडिया ट्रायल पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मीडिया कंगारू कोर्ट लगा लेता है। तर्कहीन बहस मीडिया का एजेंडा बन गया है। ऐसे में अनुभवी जजों को भी फैसला लेने में मुश्किल आती है। उन्होंने कहा कि प्रिंट मीडिया में अभी भी जवाबदेही है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कोई जिम्मेदारी नहीं दिखती है। CJI ने कहा कि हम देखते हैं कि किसी भी केस को लेकर मीडिया ट्रायल शुरू हो जाता है। कई बार अनुभवी न्यायाधीशों को भी फैसला करना मुश्किल हो जाता है।

'मैंने लम्बित रहने वाले मुद्दों को उजागर किया'

न्यायाधीश ने कहा- कई मौकों पर, मैंने लम्बित रहने वाले मुद्दों को उजागर किया है। मैं जजों को उनकी पूरी क्षमता से काम करने में सक्षम बनाने के लिए भौतिक और व्यक्तिगत दोनों तरह के बुनियादी ढांचे में सुधार की आवश्यकता की पुरजोर वकालत करता रहा हूं। उन्होंने कहा - न्यायाधीशों के नेतृत्व वाले कथित आसान जीवन के बारे में झूठे आख्यान बनाए जाते हैं। लोग अक्सर भारतीय न्यायिक प्रणाली के सभी स्तरों पर लंबे समय से लंबित मामलों की शिकायत करते हैं। जज तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देते, लेकिन इसे कमजोरी या लाचारी न समझें। जब स्वतंत्रता का प्रयोग जिम्मेदारी से किया जाता है, तो उनके क्षेत्र में बाहरी प्रतिबंधों की कोई आवश्यकता नहीं होती।

न्यायाधीशों को नहीं दी जाती समान सुरक्षा

चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा- इन दिनों, हम न्यायाधीशों पर शारीरिक हमलों की बढ़ती संख्या देख रहे हैं...न्यायाधीशों को उसी समाज में रहना होगा, जिसे उन्होंने दोषी ठहराया है, बिना किसी सुरक्षा या आश्वासन के। सीजेआइ एनवी रमना बोले राजनेताओं, नौकरशाहों, पुलिस अधिकारियों और अन्य जन प्रतिनिधियों को अक्सर उनकी नौकरी की संवेदनशीलता के कारण सेवानिवृत्ति के बाद भी सुरक्षा प्रदान की जाती है। विडंबना यह है कि न्यायाधीशों को समान सुरक्षा नहीं दी जाती है।

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