यूपी के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी परिसर में पूजा-अर्चना की अनुमति देने से जुड़े केस की सुनवाई को लेकर जिला कोर्ट ने सोमवार को अहम निर्णय लेते हुए याचिका को सुनवाई के योग्य माना है। इस निर्णय को हिंदू पक्ष में माना जा रहा है। मुस्लिम पक्ष ने इस पर नाराजगी जताई है। मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा है कि वो इस मामले को लेकर हाईकोर्ट जाएंगे, साथ ही कहा- सब लोग बिक गए हैं। AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी निर्णय पर प्रश्न उठाए हैं।
मुस्लिम पक्ष के वकील मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने फैसले के बाद मीडिया से बातचीत के दौरान अदालत पर बड़ा आरोप लगाया। सिद्दीकी ने कहा- ये फैसला न्यायोचित नहीं है। हम फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। जज साहब के ऑर्डर ने संसद के कानून को दरकिनार कर दिया है। हमारे लिए ऊपरी अदालत के दरवाजे खुले हैं। सिद्दीकी ने आगे कहा- न्यायपालिका आपकी है। आप संसद के नियम को नहीं मानेंगे, तो क्या कह सकते हैं। सब लोग बिक गए हैं।
मुस्लिम पक्ष के वकील मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा- 'हमारी तरफ से कहा गया था कि ये केस यहां नहीं सुना जाना चाहिए। इसका विचार नहीं किया जा सकता है। इस पर हमने कोर्ट में एक एप्लीकेशन दी थी। हमारी ये पिटीशन आज खारिज कर दी गई। अब हम मामले को लेकर हाईकोर्ट जाएंगे और अपील करेंगे। ये कोई फाइनल ऑर्डर नहीं है। ये तो एक एप्लीकेशन का डिस्पोजर था। केस की पोषणीयता पर सवाल उठाए थे। हालांकि, जज साहब ने स्वीकार नहीं किया।'
ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पोषणीयता पर सवाल उठाने वाली याचिका पर आए जिला अदालत के फैसले पर AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की प्रतिक्रिया भी सामने आई है। ओवैसी ने कहा कि इस फैसले के बाद हर कोई कोर्ट में जाकर ये कहेगा कि 1974 से पहले से हम यहां थे, तो फिर 1991 प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट की अहमियत खत्म हो जाएगी। उन्होंने कहा कि इस फैसले के खिलाफ अपील होनी चाहिए।
ओवैसी ने कहा कि 1991 का वर्शिप एक्ट इसलिए बनाया गया था ताकि इस तरह के सभी विवाद हमेशा के लिए खत्म हो जाएं। लेकिन आज के आदेश के बाद इन तमाम मुद्दों पर फिर से कानूनी मुकदमे शुरू हो जाएंगे। हम दोबारा 80 और 90 के दशक में वापस जा रहे हैं। ओवैसी ने कहा कि इस तरह से ये मुकदमा उसी रास्ते पर जा रहा है जिस पर बाबरी मस्जिद का मुद्दा गया था। ओवैसी ने इस दौरान कहा कि पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी ने जिस बड़े से मंदिर का उद्घाटन किया था, प्लॉट संख्या 93 और 94 मुसलमानों से एक्सचेंज किया गया है, प्लॉट एक्सचेंज के रजिस्टर्ड दस्तावेज भी हैं।
ओवैसी ने आगे कहा कि 1881-84 के खसरा में ये लिखा है कि प्लॉट नंबर 9130 को लेकर मकबूजे अहले इस्लाम मस्जिद का जिक्र है। उन्होंने कहा कि साल 1942 में वक्फ का गजेट इश्यू हुआ था कि ये मस्जिद वक्फ है। उन्होंने साल 1937 के एक दूसरे केस में फैसला आया था जिसमें कहा गया था कि ये मस्जिद, मस्जिद के नीचे की जमीन, घर, उत्तर और दक्षिण में पूरा वक्फ है। ओवैसी ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ बोर्ड की जमीन है।
ओवैसी ने कहा कि जब बाबरी मस्जिद का फैसला आया है, इससे और मुश्किलें बढ़ेंगी, क्योंकि ये फैसले आस्था पर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 15 अगस्त 1947 में जो था वही रहेगा। ओवैसी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि अगर आप कोई ऐसा काम करेंगे कि जिससे उस धार्मिक स्थान का नेचर बदल जाता है तो फिर 1991 का एक्ट को मतलब ही खत्म हो जाता है। ओवैसी ने कहा कि इस तरह से पूरे देश में अस्थिरता पैदा हो जाएगी। उन्होंने कहा कि कोर्ट को ऐसे मामलों पर शुरुआती स्टेज पर ही रोक लगानी चाहिए।
गौरतलब है कि हिंदू पक्ष की ओर से ज्ञानवापी परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी समेत अन्य धार्मिक स्थलों पर नियमित पूजा-अर्चना करने की अनुमति दिए जाने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जिला कोर्ट को यह तय करना था कि मामला सुनने योग्य है या नहीं। मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में पोषणीय नहीं होने की दलील देते हुए इस केस को खारिज करने की मांग की थी। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की दलील को खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा है कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 07 नियम 11 के तहत इस मामले में सुनवाई हो सकती है, जिसके लिए 22 सितंबर की तारीख तय हुई है।
अगस्त 2021 में 5 महिलाओं ने श्रृंगार गौरी में पूजन और विग्रहों की सुरक्षा को लेकर याचिका डाली थी। इस पर सिविल जज सीनियर डिविजन रवि कुमार दिवाकर ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर ज्ञानवापी का सर्वे कराने का आदेश दिया था। हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि सर्वे के दौरान शिवलिंग मिला। जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा था कि ये एक फव्वारा है। इसके बाद हिंदू पक्ष ने विवादित स्थल को सील करने की मांग की थी। सेशन कोर्ट ने इसे सील करने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।