भारत में एक तरफ मंकीपॉक्स इंसानों के लिए खतरा बनता जा रहा वहीं दूसरी ओर लम्पी वायरस पशुओं पर कहर बनकर आया है। जानवरों में त्वचा संक्रमण के जरिए तेजी से फैलने वाली इस बीमारी से प्रतिदिन सेकड़ो गायें काल का ग्रास बनती जा रही है। डरने वाली बात तो यह है कि इस बीमारी के इलाज के लिए ना तो कोई टीका तैयार है और ना ही कोई दवाई उपलब्ध है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात समेत कई राज्यों में सैकड़ों गायों की मौत से लाखों पशुपालक परेशान नजर आ रहे हैं। अकेले राजस्थान के बाड़मेर में 'लम्पी' बीमारी से करीब 1500 से अधिक गायों की मौत हो चुकी है वहीं अब तक 11,785 से अधिक गौवंश बीमारी की चपेट में आ चुके हैं और यह आकड़े निरंतर बढ़ते जा रहे है।
1 जून को बाड़मेर जिले के सिणधरी गौशाला से लम्पी वायरस का पहला मामला सामने आया था लेकिन प्रशासन और सरकार ने ध्यान नहीं दिया जिससे लगातार इसका प्रकोप बढ़ता गया और देखते ही देखते इस वायरस ने पूरे राजस्थान की गायों को को अपनी चपेट में ले लिया।
लम्पी वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए न तो कोई टीका उपलब्ध है और न ही इस रोग की रोकथाम के लिए कोई दवा बाजार में हैं। अभी तक पशु चिकित्सा विभाग एंटीबायोटिक से इलाज कर रहा है। इस वायरस का अभी तक कोई टीका नहीं है, इसलिए लक्षणों के आधार पर दवा दी जाती है लेकिन अभी तक रिकवर रेट न के बराबर है।
सामान्यतः लंपी वायरस एक गाय से दूसरी गाय के सिर्फ संपर्क में आने पर फैल रहा है लेकिन लंपी त्वचा रोग एक संक्रामक बीमारी है, जो मच्छर, मक्खी, जूं इत्यादि के काटने या सीधा संपर्क में आने अथवा दूषित खाने या पानी से फैलती है। यह वायरस कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली गायों में संक्रमण तेजी से फैल रहा है क्योंकि रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण यह पशुओं पर जल्दी हावी हो जाता है। इस वायरस के संक्रमण के बाद पशु को तेज बुखार आता है। बुखार आने के बाद उसकी शारीरिक क्षमताएं गिरने लगती हैं और कुछ दिनों बाद संक्रमित पशु के शरीर पर चकत्ते के निशान उभर आते हैं।
इस त्वचा संबंधी बीमारी के संक्रमण में आने के बाद पशुओं की इम्युनिटी डाउन हो जाती है, पशु काफी कमजोर हो जाता है जिससे गाय दूध देना तक बंद कर देती है और अधिकतर पशु मृत्यु के हथे चढ़ जाते है। ऐसे में बहुत से परिवार जिनकी जीविका दूध उत्पादन से चलती है, उनके लिए बड़ी मुसीबत हो गई है।
लम्पी नामक जानवरों की संक्रामक बीमारी सबसे पहले 1929 में अफ्रीका में पाई गई थी। धीरे धीरे यह बीमारी पूरे विश्व में पांव पसारने लग गई और साल 2015 में तुर्की और ग्रीस, 2016 में रूस और 2019 में बांग्लादेश जैसे देशों में तबाही मचाई। गांठदार चर्म रोग वायरस (एलएसडीवी) या लम्पी रोग नामक यह संक्रामक रोग इस साल अप्रैल में पाकिस्तान के रास्ते भारत आया था। जिसने जल्दी ही राजस्थान, गुजरात, पंजाब और उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया।
पशुधन प्रहरी के अनुसार,
फार्म और परिसर में सख्त जैव सुरक्षा उपायों को अपनाएं।
नए जानवरों को अलग रखा जाना चाहिए और त्वचा की गांठों और घावों की जांच की जानी चाहिए।
प्रभावित क्षेत्र से जानवरों की आवाजाही से बचें।
प्रभावित जानवर को चारा, पानी और उपचार के साथ झुंड से अलग रखा जाना चाहिए, ऐसे जानवर को चरने वाले क्षेत्र में नहीं जाने देना चाहिए।
उचित कीटनाशकों का उपयोग करके मच्छरों और मक्खियों के काटने पर नियंत्रण। इसी तरह नियमित रूप से वेक्टर विकर्षक का उपयोग करें, जिससे वेक्टर संचरण का जोखिम कम हो जाएगा।
फार्म के पास वेक्टर प्रजनन स्थलों को सीमित करें जिसके लिए बेहतर खाद प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
वैक्सीन – एक फ्रीज ड्राय, लाइव एटेन्युएटेड वैक्सीन उपलब्ध है जो बीमारी को नियंत्रित करने और फैलने से रोकने में मदद करता है। निर्माताओं के निर्देशों के अनुसार शेष जानवरों का टीकाकरण करें।
गाँठदार त्वचा रोग का नियंत्रण और रोकथाम चार रणनीतियों पर निर्भर करता है, जो निम्नलिखित हैं – ‘आवाजाही पर नियंत्रण (क्वारंटीन), टीकाकरण, संक्रमित पशुओं का वध और प्रबंधन’।