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JNU Controversy: कुलपति ने उठाया हिन्दू देवी देवताओं की जाति पर सवाल, जालोर की घटना को भी जातिवाद से जोड़ा

JNU Controversy जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी ने केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान हिन्दू देवी देवताओं की जाती को लेकर बयान दिया है। इसी दौरान कुलपति ने राजस्थान के जालोर की घटना पर भी जातिवाद से जोड़ कर बयान दिया है।

Kuldeep Choudhary

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) की कुलपति शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित ने सोमवार को देवी-देवताओं की जाति को लेकर विवादित बयान दिया है। उन्होंने कहा कि हिंदू देवता किसी ऊंची जाति से नहीं बल्कि शूद्र है। कोई देवी-देवता ब्राह्मण नही है। भगवन शिव श्मशान में बैठते है इसलिए वे शूद्र है।

शिव जरूर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के होंगे, क्योंकि वह श्मशान में सांप के साथ बैठते हैं। उनके पास पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं। मुझे नहीं लगता कि ब्राह्मण कब्रिस्तान में बैठ सकते हैं। लक्ष्मी, शक्ति और जगन्नाथ सभी देवी-देवता आदिवासी है। स्पष्ट है कि देवता ऊंची जाति से नहीं आते है तो फिर हम अभी भी इस भेदभाव को क्यों जारी रख रहे हैं, जो बहुत ही अमानवीय है।
शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित

JNU Controversy: अंबेडकर पर भी दिया बयान

अगर भारतीय समाज कुछ अच्छा करना चाहता है तो जाति को खत्म करना बेहद जरूरी है। मुझे समझ में नहीं आता कि हम उस पहचान के लिए इतने इमोशनल क्यों हैं, जो भेदभावपूर्ण और असमान है। हम इस आर्टिफिशियल आइडेंटिटी की रक्षा के लिए किसी को भी मारने के लिए तैयार हैं।

बौद्ध धर्म सबसे महान धर्मों में से एक है, क्योंकि यह साबित करता है कि भारतीय सभ्यता असहमति, विविधता और अंतर को स्वीकार करती है। गौतम बुद्ध ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म के पहले विरोधी थे। वे इतिहास के पहले तर्कवादी भी थे। आज हमारे पास डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की पुनर्जीवित की हुई एक परंपरा है।

JNU Controversy: जालोर की घटना पर क्या कहा

शांतिश्री ने अपने भाषण में राजस्थान में नौ साल के दलित लड़के की मौत का जिक्र किया। वे बोलीं- दुर्भाग्य से आज भी जाति जन्म के आधार पर होती है। अगर कोई ब्राह्मण या मोची है, तो क्या वह पैदा होते ही दलित हो जाता है? नहीं, मैं ऐसा इसलिए कह रहीं हूं क्योंकि हाल ही में राजस्थान में एक दलित को सिर्फ इसलिए पीट-पीटकर मार डाला गया, क्योंकि उसने पानी को पिया नहीं, बस छुआ था।

जबकि पिछले दिनों जालौर में घटित हुई एक दलित छात्र की मौत की जाँच में सामने आया था कि पिटाई का कारण छात्र की जाति या दलित होना नही था बल्कि दो छात्र आपस में लड़ रहे थे उन दोनों को टीचर ने फटकार लगाई और थप्पड़ मारी थी। बदकिस्मती से टीचर को ये पता नही था कि 5 साल से छात्र के कान का इलाज चल रहा है जिससे हल्की सी चोट लगने पर भी हालत गंभीर हो सकती है। लेकिन छात्र की मौत को जातिवाद से जोड़कर मामले को उछाला गया।
यह बात कुलपति शांतिश्री ने केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही है। इस कार्यक्रम का विषय - डॉ. बी.आर. अम्बेडकर थॉट ऑन जेंडर जस्टिस: डिकोडिंग द यूनिफॉर्म सिविल कोड पर था।

9 भाषाओं की जानकार हैं कुलपति

प्रो. शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, कन्नड, मलयालम और कोकणी भाषा अच्छी तरह जानती हैं। वे कई किताबें भी लिख चुकी हैं। इनमें पार्लियामेंट एंड फॉरेन पॉलिसी इन इंडिया, रिस्ट्रक्चरिंग एन्वायरनमेंटल गवर्नेंस इन एशिया-इथिक्स एंड पॉलिसी शामिल हैं।

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