मेडिकल इंश्योरेंस कंपनियां कोरोना के बाद अपने ग्राहकों को मेडिक्लेम देने में हेरफेर कर रही हैं। आम आदमी कोरोना से जुड़ी पॉलिसी लेते वक्त ये सोच रहा है कि अब उनके इलाज के खर्च का इंश्योरेंस हो गया है, लेकिन कंपनियां लोगों को कोरोना कवच पॉलिसी, कोविड पॉलिसी और कंज्यूमेबल्स जैसे शब्दों में उलझा दे रही हैं। कंज्यूमेबल्स यानी PPE किट यानी बॉडी कवर, चश्मा, एन -95 मास्क, जूते का कवर, फेस शील्ड, सर्जिकल मास्क, टिशू पेपर, क्रेप बैंडेज, गाउन और चप्पल जैसी चीजें।
इन दिनों सभी अच्छे अस्पतालों के डॉक्टर और हर स्टाफ पीपीई किट पहने नजर आ रहे हैं। संक्रमण के खतरे के चलते वे नॉन-कोविड मरीज के इलाज के वक्त भी पूरा किट पहन रहे हैं। कोरोनाकाल से पहले तक इस तरह के कंज्यूमेबल्स का खर्च खुद मरीज भरते थे, लेकिन कोरोना के बाद इसमें बड़ा बदलाव आया है।
पॉलिसी बाजार.कॉम के हेड अमित छाबड़ा के अनुसार, 'कोविड के पहले तक कंज्यूमेबल्स का खर्च इलाज के कुल खर्च का 2-3% ही होता था, तो मेडिक्लेम के ऊपर आने वाले इस छोटे खर्च को मरीज सह लेते थे। कोविड के बाद अचानक कंज्यूमेबल्स का खर्च इलाज के कुल खर्च का 15 से 20% तक पहुंचने लगा है। एक आंकड़ा कहता है कि 2020 तक मेडिकल कंज्यूमेबल्स वाले प्रोडक्ट का बाजार 50 हजार करोड़ का था, लेकिन 2025 तक ये 166% बढ़कर 133 करोड़ हो जाएगा।'
कंज्यूमेबल्स बाजार के बढ़ने का सीधा मतलब है मरीज पर बोझ बढ़ना, क्योंकि इसके पैसे मरीज चुकाता है। यहीं पर मेडिकल इंश्योरेंस कंपनियों को बिजनेस का मौका दिखा। सभी 23 हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों ने अलग-अलग नाम से कोरोना से जुड़ी पॉलिसी लॉन्च कर दीं।
मेडिकल इंश्योरेंस जगत की प्रमुख 23 कंपनियां कोविड-19 कवच किस्म की पॉलिसी लेकर आईं। इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी IRDA के अनुसार पहली लहर में ही अगस्त 2020 तक 7.5 लाख नए लोगों ने 215 करोड़ रुपए की कोरोना कवच पॉलिसी खरीद ली थी।
दूसरी लहर के बारे में ऐसा कोई आधिकारिक डेटा तो अभी नहीं आया है, लेकिन फोन पे ने कहा कि कोविड के बाद उनके यहां से खरीदे गए हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में 75% से ज्यादा छोटे शहर या गांव के लोग थे। इनमें लगभग सभी वो पॉलिसी चुन रहे थे जिनमें कंज्यूमेबल्स को कवर करने की बात होती थी।
लेकिन कंपनियों ने बड़ी चालाकी से सीधे तौर पर कंज्यूमेबल्स कवर करने की बात करने के बजाय कोविड कवच और इस तरह के अन्य शब्दों का इस्तेमाल किया, जिसमें मेडिक्लेम देने के वक्त गोल-गोल बातें कर के घुमाया जा सके। अब ऐसे कई केस सामने आ रहे हैं, जिनके पास कोरोना से जुड़ी पॉलिसी होने के बाद भी कंज्यूमेबल्स के पैसे मरीज से ही ऐंठे जा रहे हैं।
जिसका मामला है उसे खुद ही अपना पक्ष रखना होता है। यह नियम बीमा कंपनी पर भी लागू होता है। यानी बिना वकील अधिकारी को लोकपाल सुनवाई में आना होता है।
यहां पर केस दर्ज होते ही आपको ऑटो जेनरेट मैसेज आ जाएगा। साथ ही सुनवाई का नोटिस भी मोबाइल पर आ जाता है। पहली बार सुनवाई के लिए आरोप लगाने वाले शख्स को खुद जाकर अपना पक्ष रखना होता है। फिर लोकपाल बीमा कंपनी को सेल्फ कंटेंट नोट भेजता है। इसमें वो पूछता है कि क्यों इस शख्स की बात को नहीं सुना गया। इसके बाद कंपनी को बीमा लोकपाल नियम 2017 के अनुसार 90 दिन में केस का निस्तारण करना होता है।
अमित छाबड़ा का कहना है कि अब हर शख्स को पूरी पड़ताल के बाद ही मेडिकल इंश्योरेंस या कोरोना कवच जैसी पॉलिसी में पैसे डालने चाहिए। इनमें सबसे पहले यह जानना चाहिए कि आपको कंज्यूमेबल्स कवर मिल रहा है या नहीं? अगर नहीं, तो एजेंट कितनी भी बातें करे आपको ऐसी पॉलिसी नहीं लेनी चाहिए।