चुनावों के दौरान मुफ्त उपहारों की घोषणा के मामले में बुधवार 3 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नीति आयोग, फाइनेंस कमीशन, भारत सरकार, विपक्षी दल, रिजर्व बैंक और सभी हितधारक मिल कर मुफ्त घोषणाओं के लाभ हानि पर विचार करके सुझाव दें, क्योंकि इन मुफ्त घोषणाओं का अर्थ व्यवस्था पर बहुत असर पड़ता है। केन्द्र सरकार ने राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त की घोषणा पर रोक की मांग वाली याचिका का सुप्रीम कोर्ट में सैद्धान्तिक तौर पर समर्थन किया। गौरतलब है कि मुफ्त की घोषणा पर रोक की मांग वाली याचिका पर पिछले कई दिनों से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है।
केंद्र सरकार ने कहा इस तरह की घोषणा से अर्थव्यवस्था पर बोझ पड़ता है। ये अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी है। केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि लोकलुभावन घोषणाएं मतदाता को फैसला लेने की क्षमता को विकृत करती है। एक मतदाता को यह पता चलना चाहिए कि मुफ्त की घोषणा का उस पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है। तुषार मेहता ने कहा कि इससे हम आर्थिक आपदा की ओर बढ़ रहे हैं। तुषार मेहता ने सुझाव दिया कि भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को इस मामले पर अपना दिमाग लगाना चाहिए और वे फिर से विचार कर सकते हैं।
3 अगस्त को सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि उसके हाथ शीर्ष अदालत के मुफ्त उपहारों के फैसले से बंधे हुए हैं। इस मामले में शामिल एक वकील ने सुझाव दिया कि क्या कोई मॉडल घोषणा पत्र है, जिसमें राजनीतिक दल कहते हों कि इससे कोई नुकसान नहीं होने वाला है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह सब कोरी औपचारिकताएं हैं। तुषार मेहता ने दोहराया कि हम आर्थिक आपदा की ओर बढ़ रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है और चुनाव आयोग और केंद्र सरकार यह नहीं कह सकती कि वे इस मामले में कुछ नहीं कर सकते।
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा सार्वजनिक धन से तर्कहीन मुफ्त सुविधाएं देने के वादों पर नियंत्रण होना चाहिए। चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाएं देने के मामले में CJI एनवी रमना ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से भी राय मांगी थी। उस पर कपिल सिब्बल ने कहा था कि यह एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन इस मामले में राजनीतिक रूप से नियंत्रित करना मुश्किल है। वित्त आयोग जब विभिन्न राज्यों का आवंटन करता है, तो वो राज्य के कर्ज और मुफ्त सुविधाओं को ध्यान में रख सकता है। वित्त आयोग इस मामले को निपटने के लिए उपयुक्त विभाग है। हम इस समस्या से निपटने के लिए आयोग की मदद ले सकते हैं।