राष्ट्रीय

Indo-Pak Border: जगह बदलते धोरे हैं सेना के सामने चुनौती, ना’पाक’ घुसपैठ का खतरा बढ़ा

Ravesh Gupta

भारत पाक सीमा कश्मीर से लेकर गुजरात तक फैली हुई है। यूं तो हर मोर्चे पर हमारे जवान तैनात रहते हैं लेकिन भौगोलिक समस्याए समय समय पर भारतीय सेना के सामने चुनौती बनकर सामने आते रहे हैं। ऐसी ही एक चुनौती है जैसलमेर की सरहद पर रेगिस्थान में हवा के साथ जगह बदलते धोरे यानि कि सिटिंग ड्यून्स। ये धोरे देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन गए हैं।

देश की सुरक्षा के लिए सरहद पर जैसलमेर, बाड़मेर और श्रीगंगानगर में सीमा पर तारबंदी की गई है। लेकिन ये तारबंदी कई बार धोरों के नीचे दब जाती है। तारबंदी का रेत में दबना भारत के लिए बड़ा खतरा इसलिए भी है कि रेत के जरिए पाकिस्तानी जासूस और अन्य आतंकी आसानी से तारबंदी के आरपार जा सकते हैं।

इंटेलिजेन्स से माना इसे बड़ा खतरा

ये धोरे यानि की सैन्ड ड्यून्स हवा के साथ जगह बदलते हैं और बार बार इनके नीचे तारबंदी के दबने की खबरे सामने आती रही है। हालांकि ये एक प्राकृतिक चुनौती है। इस चुनौती को बीएसएफ और सेन्ट्रल सिक्योरिटी एजेन्सी बड़ा खतरा माना है लेकिन अभी तक इस चुनौती का कोई स्थाई हल नहीं निकल पाया है।

राजस्थान प्रदेश इंटेलिजेंस ने आशंका जताते हुए कहा है कि पाकिस्तानी जासूस और अन्य आतंकी इसके आर पार आ जा सकते है।

फिलहाल अस्थाई हल के रूप में इंटेलिजेंस ने सीमा पर बंद की गई 24 चौकियों को दोबारा शुरू करने का प्रस्ताव राजस्थान गृह विभाग को भेजा था।इंटेलिजेंस ने ये प्रस्ताव सरकार को 2017 में भेजा था जिसे सरकार ने तभी से ठंडे बस्ते में डाला हुआ है।

बॉर्डर पर हैं 33 चौंकियां

सूत्रों के मुताबिक, राजस्थान सरकार ने जैसलमेर, श्रीगंगानगर, बाडमेर और बीकानेर में तारबंदी होने पर पाकिस्तान सीमा पर बनी इंटेलिजेंस की 57 में से 16 चौकियां वर्ष 1995 में बंद कर दी। । इसके बाद वर्ष 2009 में 20 चौकिया और बंद कर दी गई। वर्ष 2009 में ही 3 नई चौकियां खोलने की अनुमति दी गई। वर्तमान में सीमा क्षेत्र में इंटेलिजेंस की कुल 33 चौकिया बंद हैं।

पूरी तरह रेत में दब जाती है तारबंदी

जैसलमेर, बाडमेर और श्रीगंगानगर जिलों में सीमा क्षेत्र में रेत के टीले (धोरे) हवा के रुख के साथ बदलते रहते हैं। सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े सूत्र बताते हैं कि सीमा पर तारबंदी अचानक तेज हवा के साथ आई रेत के नीचे कब, कहां दब जाए, पता ही नहीं चलता। कई जगह तो पूरी तारबंदी काफी दूर तक रेत के टीलों के नीचे दब जाती है। इसके बाद बॉर्डर पूरी तरह असुरक्षित हो जाता है क्योंकि सीमा निर्धारण के संकेत रेत में दब जाते हैं और आवाजाही आसान हो जाती है।

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