राष्ट्रीय

आतंक के साये में अपनी जन्मभूमि पर तीन दशक से डटे हुए हैं कश्मीरी पंडितों के कुछ परिवार, हर समय रहता है मौत का खौफ

Kunal Bhatnagar

जम्मू-कश्मीर देश का वो हिस्सा जो जन्नत जितना खुब सूरत है। खुला आसमां, बर्फीली वादियां और बहुत कुछ जो इसको खास बनाता है। लेकिन क्या आपने कभी यहां पर रह रहे कश्मीरी पंडितो के बारें में सुना है कि आखिर वो लोग यहां पर कैसे रहते है। जितना खुबसूरत कश्मीर हमें दिखाई देता है। यह जगह उतनी ही खौफनाक उन कश्मीरी पंडितो के परिवारों के लिए है जो जानते हुए भी अपनी जान का जोखिम लिए अपनी जन्मभूमि को नहीं छोड़ना चाहते है, लेकिन अपनी जन्मभूमि पर रहते हुए कब कौन आंतकी कहां से आकर उनको महज इस लिए मौत के घाट उतार दे क्योकि वो कश्मीरी पंडित है। आखिर क्यों जन्नत जैसी जगह पर रहकर भी पंडितो को जहन्नुम जैसा जीवनयापन करना पड़ रहा है। यह कोई काल्पनिक बातें नहीं बल्कि हकीकत है।

आतंक के बीच बिना दहशत के अपनी जन्मभूमि में डटे कश्मीरी पंडित का दर्द

घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों की हत्या से यहां के कश्मीरी पंड़ित समुदाय के लोगों में डर पैदा हो गया है। सबसे खतरनाक दौर जब 1990 के दशक में एक खतरनाक स्थिति का सामना करते हुए लोकतांत्रिक देश में अपना ही घर छोड़ने पर इनको मजबूर किया गया। कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के मुताबिक, कश्मीर घाटी में करीब 800 पंडित परिवार हैं जिन्होंने कभी कश्मीर नहीं छोड़ा। ये परिवार तीन दशकों तक आतंकवाद के बीच बिना दहशत में रहे।

पिता को उतार दिया मौत के घाट... फिर भी नहीं छोड़ा घर

कुमार वांचू भी एक ऐसे ही कश्मीरी पंडित हैं, जो लगभग तीन दशकों से श्रीनगर में रह रहे हैं। एक मीडिया को दिए अपने इंटरव्यू में वांचू कहते है कि इस क्षेत्र में कभी कश्मीरी पंडितों की एक बड़ी आबादी थी, लेकिन 90 के दशक में, वांचू सहित कुछ परिवारों को छोड़कर, सभी कश्मीरियों ने घाटी छोड़ दी।

कुमार वांचू के पिता की यहां पर हत्या कर दी गई थी लेकिन जन्मभूमि से प्रेम ऐसा की कश्मीर में रहने और काम करते रहने का संकल्प लिया। आज के हालात से दुखी वांचू कहते हैं- कुछ लोग कश्मीर को बेहतर होते नहीं देख सकते। हिंसा रुकेगी तो उन्हें भुगतना पड़ेगा, उनकी कमाई रुक जाएगी। यह एक राजनीतिक खेल है। कुमार ने कहा- मुस्लिम पड़ोसी हमारी ताकत हैं। वे कहेंगे, तभी हम यहां से निकलेंगे।

कश्मीरी पंडित का दर्द, कहा- डर के मारे घर वालों को जम्मू भेजा

एक मीडिया को दिए अपने इंटरव्यू में उत्तरी कश्मीर में रहने वाले एक कश्मीरी पंडित ने कहा- एक बार कश्मीर में सैकड़ों आतंकवादी थे। जब हम बाहर गए तो देखा कि आतंकवादी बंदूक चला रहे हैं, लेकिन किसी ने हमें छुआ तक नहीं। वे हमें जानते थे और हम उन्हें। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। हम नहीं जानते कि बंदूक वाला आदमी कौन है। पुलिस का कहना है कि हमलावर युवक हैं जो कभी किसी पंडित के साथ रहा ही नहीं, इसलिए उन्हें पंडितो को मारने में कोई दिक्कत नहीं होती है। वह कहता है- मैंने पहले ही अपने परिवार को जम्मू भेज दिया था।

हालात बिगड़े तो मैं भी चला जाऊंगा

उत्तरी कश्मीर में रहने वाले यह कश्मीरी पंडित कहता है कि हालात बिगड़े तो मैं भी चला जाऊंगा। लगता है कश्मीर में हमारा भविष्य सुरक्षित नहीं है। आतंकवाद बदल गया है। विडंबना यह है कि घाटी में रहने वाले पंडितों के पास कोई सुविधा नहीं है। जबकि उनके पास नौकरी, शिक्षा या मासिक सहायता जैसी कोई सुविधा नहीं है, जो विस्थापित पंडितों को मिलती है।

हत्यारे आतंकी की पहचान, संपत्ति कुर्क

पुलिस ने आदिल वानी नाम के एक आतंकी की संपत्ति को कुर्क कर लिया है। उसने एक दिन पहले शोपियां में एक सेब के बाग में सुनील कुमार भट की हत्या कर दी थी और बाद में कुटपोरा के घर में शरण ली थी।

घर से हथियार और गोला-बारूद बरामद

यह आतंकी संगठन अल-बद्र से जुड़ा है। इसके पिता और तीन भाइयों को भी आश्रय देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। तलाशी के दौरान वानी के घर से हथियार और गोला-बारूद बरामद किया गया। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजय कुमार ने कहा, वानी और उसके साथी को या तो गिरफ्तार किया जाएगा या मार दिया जाएगा।

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